Ghazal | करो शिकवा किसी से मत ग़मों को झेलना सीखो
करो शिकवा किसी से मत ग़मों को झेलना सीखो
( Karo Shikawa Kisi Se Mat Gamon Ko Jhelna Sikho)
कभी शिकवा नहीं करना ग़मों को झेलना सीखो।
लिखा तकद़ीर में रब ने उसी से जूझना सीखो।।
जो होता है उसे मर्जी खुदा की मान लेना तुम।
सदा ही अपनी मर्जी को परे तुम ठेलना सीखो।
बुरा ग़र दौर आता है उसे हँस के बिता लेना।
जिग़र में जज़्बा पैदा कर हमेशा जीतना सीखो।।
तभी तो रंग लाएगी तेरी कोशिश ज़माने में।
बङे- से ख्वाब पहले तुम जहां में देखना सीखो।।
ख़ुदा भी साथ देता है अगर नीयत सही हो तो।
दिलों को साफ कर अपनी दुआएं भेजना सीखो।।
नहीं कोई मुसीबत भी बङी होती इरादों से।
कभी डर के मुसीबत से न घुटने टेकना सीखो।।
भले अल्फाज़ से कितना ग़ज़ल में खेल लेना तुम।
कभी जज़्बात से तुम मत किसी के खेलना सीखो।।
वही हैं शे’र अच्छे जो दिलों पे चोट करते हों।
“कुमार”तुम भी ग़ज़ल से यूं जिग़र को भेदना सीखो।