करवा चौथ का व्रत ( दिकु के लिए )
करवा चौथ का व्रत
आज मैंने अपनी दिकु के लिए व्रत किया है,
उसकी यादों में हर पल को जीया है।
वो दूर है, पर दिल के पास है,
उसके बिना हर ख़ुशी भी उदास है,
अपनी दिकु को सर्वस्व सौंप दिया है,
मैंने अपनी दिकु के लिए करवा चौथ का व्रत किया है।
कहते हैं, ये त्योहार केवल स्त्रियों का है,
पति की लंबी उम्र की दुआओं का है।
पर क्यों बस वो ही भूखी-प्यासी रहे,
सांझ तक चाँद के दीदार की आस वो सहे,
उसकी खातिर हर ज़ख्म मैंने सीया है,
मैंने अपनी दिकु के लिए करवा चौथ का व्रत किया है।
वो सरल है, निष्कपट है, मन को प्यारी है,
हर बात में उसकी दुनिया न्यारी है।
वो दूर रहे या पास मेरे,
उसकी रूह हरदम है मुझ को घेरे,
उसके लिए प्रेम का संकल्प लिया है,
मैंने अपनी दिकु के लिए करवा चौथ का व्रत किया है।
उसकी सलामती के लिए दुआ करता रहूँगा,
हर पल उसकी खुशी की राह तकता रहूँगा।
दूरी चाहे कितनी भी बढ़ जाए,
उसके इंतज़ार में सांसे ही क्यों ना थम जाएं।
उसको अपने जीवन का हमसफ़र किया है,
मैंने अपनी दिकु के लिए करवा चौथ का व्रत किया है।
कवि : प्रेम ठक्कर “दिकुप्रेमी”
सुरत, गुजरात
यह भी पढ़ें :