Karwa Chauth Poem in Hindi
Karwa Chauth Poem in Hindi

करवा चौथ पर कविता

( Karwa Chauth par kavita )

( 3 ) 

आता करवा चौथ का त्यौहार,
संग लाता है खुशहाली अपार,
साल भर करती सभी सुहागिनें
इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार ।

सजना संवरना सोलह सिंगार,
पिया मिलन को हो के बेकरार,
भले हो जाती भूख से व्याकुल
फिर भी करती सिर्फ फलाहार।

सुहागिनों को इससे विशेष प्यार,
सबसे अनूठा इनका त्यौहार,
रात को करके पूजा चंद्रमा की
पति को नज़रों से करती प्यार।

संग मिलकर दोनों लेते आहार,
इसी से बढ़ता उनके बीच प्यार
यही होती परिणीता की कामना
खुशियों से भरा रहे उसका संसार।

 

कवि : सुमित मानधना ‘गौरव’

सूरत ( गुजरात )

( 2 ) 

कार्तिक मास की चतुर्थी का दिन है शुभ आया,
सब सुहागिनों देखे इस दिन चांद में पति की छाया।

करवाचौथ के व्रत में जो भी करवा मां का पूजन करे,
अमर सुहाग रहे उसका पति नित नव उन्नति करे।

करक चतुर्थी का यह दिन कहलाता है करवाचौथ,
इससे पति पत्नि के प्रेम समर्पण का उगता नया पौध।

करवाचौथ का यह पावन व्रत जो भी नारी रखे,
व्रत के प्रताप से पति को संकटों से दूर रखे।

दिन भर भूखी प्यासी रह पत्नि व्रत पूजन करे,
रात्रि में चंद्र दर्शन करके पति संग पूजन करे।

सुहागिनों के इस व्रत पूजन को पूर्ण करने आते चंद्रदेव,
देते आशीष सदा सलामत सुहाग रहे सदैव सुखी पतिदेव।

करवाचौथ का यह व्रत है निश्चित फल देता,
पति पत्नी के जीवन को प्रेम प्यार से भर देता।।

 

रचनाकार  –मुकेश कुमार सोनकर “सोनकर जी”
रायपुर, ( छत्तीसगढ़ )

( 1 ) 

उपासना परम स्तर,अखंड दांपत्य वर पाने को

कार्तिक कृष्ण चतुर्थी बेला,
नारी जगत मंगल पथ ।
स्पंदन विमल उर भाव,
खुशहाल वैवाहिकी मनोरथ ।
करवा चौथ व्रत अद्भुत सेतु,
जन्म जन्मांतर साथ निभाने को ।
उपासना परम स्तर,अखंड दांपत्य वर पाने को ।।

करवा चौथ इतिहास अनूप,
नारी पतिव्रता अग्नि परीक्षा ।
सुफलित व्रत स्तुति दिव्यता ,
वचन अटल जीवन रक्षा ।
तदंतर परंपरा भव्य निर्वहन,
पति अथाह प्रेम जताने को ।
उपासना परम स्तर,अखंड दांपत्य वर पाने को ।।

कर श्रृंगार भव्य हिना,
देह मनमोहक परिधान ।
मुस्कान मोहिनी धर अधर,
आलिंगन धर्म आस्था विधान ।
परिवेश अप्रतिम जगमगाहट,
उरस्थ अनंत खुशियां रमाने को ।
उपासना परम स्तर,अखंड दांपत्य वर पाने को ।।

पत्नी पति अंतर भावना,
नित समानता अभिवंदन
परस्पर स्नेह आदर सम्मान,
संबंध आत्मिक सुरभि चंदन ।
कदम नित्य अग्र तत्पर,
अतरंग वाटिका महकाने को ।
उपासना परम स्तर, अखंड दांपत्य वर पाने को ।।

 

महेन्द्र कुमार

नवलगढ़ (राजस्थान)

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