Katha Jeevan Soona Soona sa

जीवन सूना सूना सा | Katha Jeevan Soona Soona sa

सुदूर दक्षिण प्रांत में एक मास्टर जी है । उनकी जिंदगी बड़े आराम से गुजर रही हैं । पति पत्नी बहुत ही हंसी खुशी से रहते हैं। उनके दो बेटे एवं दो बेटियां हैं। बेटे की शादी करने के बाद मास्टर जी को लगता था कि जीवन की जिम्मेदारी से मुक्ति मिली।

उन्होंने एक दिन अपनी पत्नी से कहा-” देखो मास्टरनी जी ! अब तो सब जिम्मेदारी से पूर्ण हो गए । अब सोचते हैं कि एक बार तुम्हें भी परिवार हरिद्वार के दर्शन करवा दे तो अच्छा रहे। जिंदगी में पता नहीं क्या होने वाला है ? तुझे कभी कहीं घूमा नहीं सका । अब सोचता हूं तुम्हारी इच्छा पूरी कर दूं।”

उनकी पत्नी ने कहा-” आप ही जाओ खूब दर्शन सत्संग करो। देखते नहीं हम चल तो पाते नहीं। घर के काम धंधा करब मुश्किल लागत है। दर्शन कैसे जा सकते हैं?”

बेटे की शादी करने के बाद मास्टरनी जी को भी लगने लगा के जिंदगी की जिम्मेदारी पूरी हो गई । हमहू सोचत रहे की बेटवा के ब्याह कैसे हो जाए हमहू अपनी जिम्मेदारी से मुक्ति पाए।

भारतीय समाज में बच्चे चाहे जितने बड़े हो जाएं लेकिन उनकी शादी विवाह करना माता-पिता अपना फर्ज समझते हैं । जैसे ही सभी बच्चों की शादी विवाह हो जाता है। उन्हें लगता है कि जिम्मेदारियों से अब मुक्ति मिल गई है।

दोनों पति-पत्नी का जीवन हंसी खुशी से बीत रहा था। लेकिन एक दिन जैसे दुखों का पहाड़ टूट गया। मास्टरनी जी को ह्रदयाघात हो गया । एक तो वैसे भी उन्हें चलने फिरने में दिक्कत हो रही थी। ऊपर से अब वह बिस्तर पकड़ ली।

ह्रदयाघात का असर होने से खाने पीने की दिक्कत होने लगी । गले के नीचे कुछ भी नहीं जा रहा था । खाना पीना बंद हो जाने से वह और भी कमजोर होने लगी।

मास्टर जी उनकी सेवा में कोई कमी नहीं रखते थे। शहर के बड़े से बड़े हॉस्पिटलों में उनका इलाज कराया लेकिन कमजोरी धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी।
उनका बेटा बहू आ गये थे । जिसने मां की सेवा में कोई कमी नहीं रखी ।

आखिर कोई व्यक्ति बिना भोजन के कितने दिनों तक जीवित रह सकता है । मास्टरनी जी ने आखिर दम तोड़ दिया देखते-देखते उनके प्राण पखेरू उड़ गए।

मास्टर जी को लगा जैसे उनके ही प्राण सूख गए हो । वह भगवान से प्रार्थना किया करते थे कि अब हम जी कर क्या करेंगे? उनके कंठ से आवाज नहीं निकल रही थी । वह अपलक मास्टरनी जी को निहार रहे थे।

वे अतीत में जैसे खो गए थे कि किस प्रकार से मास्टरनी जी उनके जीवन में आई थी। उस समय वे कोई ज्यादा काम धंधे नहीं करते थे । घर में पैतृक जो खेती बाड़ी थी । जो उपज होती थीं उसी से काम चला लेते थे। मास्टरनी जी बहुत ही संस्कारी घर की थी । वह कभी भी उन पर दबाव नहीं डालती थी।

कुछ वर्षों बाद उन्हें गांव के ही एक प्राइवेट स्कूल में शिक्षक की नौकरी मिल गई। जहां पर उन्होंने दो दशकों तक अध्यापन कार्य कराया।

एक प्रकार से अपनी जवानी उन्होंने विद्यालय में गुजार दिया। फिर भी मास्टर जी को लगता था कि जहां विद्यालय में पढ़ाते समय शुरू में थे आज भी वही है । कहीं किसी प्रकार से कोई परिवर्तन नहीं दिख रहा है।
उनको भविष्य अंधकारमय दिखने लगा।

भारत में प्राइवेट मास्टरों की हालत तो मजदूर से भी गई गुजरी हो चुकी है । एक मजदूर भी यदि नियमित रूप से उसे कम मिले तो उसके सामने चार मास्टर पानी फिरते दिखेंगे।

मास्टर जी बहुत स्वाभिमानी किस्म के व्यक्ति हैं। किसी की क्या मजाल मास्टर जी के स्वाभिमान पर चोट कर दे और वह सहते रहे । विद्यालय की प्रधानाचार्या बहुत शालीन महिला थी। उनके कहने पर वे लंबे समय तक टिके रह सके। लेकिन उनके हाथ में भी कुछ नहीं था जिससे वो कुछ कर सकती। क्योंकि व्यवस्था कोई और देख रहा था।

इसके पश्चात भी वे कई विद्यालयों में अध्यापन कार्य करते रहे । लेकिन स्वाभिमानी व्यक्तित्व के कारण मास्टर जी की स्कूलों में ज्यादा दिनों तक निर्वाह नहीं होता और वह विद्यालय छोड़ देते थे।

वैसे प्राइवेट नौकरी का पेशा चापलूसी पसंद ज्यादा होता है। स्वाभिमानी व्यक्ति अक्सर नौकरी में मात खा जाते हैं।
उनका घर भी पुराने खपरैल का बना हुआ था । कभी-कभी पानी घरों में घुस जाता था। कभी इतनी बचत नहीं हो पाई कि वह घर की छत डाल सके।

समय का पहिया अपनी गति से बढ़ता ही जा रहा था । कब बच्चों के पिता मास्टर जी बन गए पता ही नहीं चला।
कहते हैं कि बच्चों के जन्म के साथ ही स्त्री के जीवन की सार्थकता होती है। मां बनना प्रत्येक स्त्री के जीवन की अभिलाषाओं में प्रारंभिक अभिलाषा होती है।

मास्टरनी जी का संपूर्ण समय बच्चों की देखभाल खेती-बाड़ी घर परिवार के कामों में खत्म हो जाता था । कई बार उन्होंने तीर्थ दर्शन का प्रोग्राम बनाया। लेकिन प्रोग्राम प्रोग्राम ही रह गया। गृहस्थी के माया जाल से कभी इतनी फुर्सत ही नहीं मिली कि वे जा सकते।

बेटी धीरे-धीरे विवाह के योग्य हो गई थी।मास्टर जी की कमाई ही क्या थी जिससे बेटी की शादी हो सकती लेकिन मास्टरनी जी के असीम धैर्य या एवं पारिवारिक कुशलता के कारण बेटी की शादी संपन्न हो गई।

मास्टर जी अपने जिंदगी की यादों में ऐसे खो गए कि मास्टरनी जी के साथ बिताए लगभग चार दशक से अधिक का समय आंखों के सामने नाच जा रहा था। कैसे उन्होंने बड़ी बेटी की शादी किया यह मास्टर जी और मास्टरनी जी ही जानते हैं।

मास्टर जी के लिए उनकी पत्नी साक्षात अन्नपूर्णा थी। उनके साथ कैसे जीवन के चार दशक से अधिक बीत गए पता ही नहीं चला । देखते-देखते कैसे उनके सभी बच्चों की शादी विवाह हो गए।

कहते हैं कि पति-पत्नी में यदि अटूट प्रेम हो तो वह पहाड़ जैसे दुःख को भी सहन कर ले जाएगी । भारतीय संस्कृत में पति पत्नी को सात जन्मों का जीवन साथी माना गया है।

पूर्व काल में ऐसी मान्यता थी कि माता-पिता जब किसी लड़की की शादी कर देते थे तो वह यही कहते थे कि पति का घर ही अब उसका घर है। तू ही घर की इज्जत है। माता-पिता के घर से शादी की डोली उठती है तो पति के घर से अंतिम विदाई की डोली उठती है।

जैसे चार दशक पूर्व मास्टरनी जी को डोली में बिठाकर लाएं थें आज वही मास्टर जी अंतिम विदाई दे रहे थे। मास्टरनी जी के जाने के बाद जीवन जैसे सूना सूना सा लगने लगा था। हर क्षण उनके सामने मास्टरनी जी का चेहरा दिखाई देता था।

कहते हैं कि प्रत्येक मनुष्य के जीवन में जन्म से शादी तक मां का प्रभाव होता है और शादी से अंतिम यात्रा तक पत्नी का साथ होता है। उन्हें लगता था कि जो साथ-साथ जीने मरने की कसमें खाई थीं ।वह बीच मझधार में छोड़कर कैसे जा सकती हैं।

मास्टर जी को अब जिंदगी जैसे काट रही हो। जीने की आस जैसे खो सी गई हो। सच है जीवनसाथी के साथ उन्होंने जीवन के चार दशक से ज्यादा जीवन को गुजारा था।

अब बुढ़ापे में सोचा था कि छोटे बाबू की शादी करने के बाद थोड़ा तीर्थ दर्शन करेंगे। लेकिन उसके पहले ही मास्टरनी जी ऐसी यात्रा पर निकल गई कि जहां से जा तो सकते हैं लेकिन लौटा नहीं जा सकता।

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

यह भी पढ़ें :-

सुर असुर | Katha Sur Asur

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *