Ramakant Soni Hindi Poetry
Ramakant Soni Hindi Poetry

जख्म कहीं नासूर ना बन जाए

मन की पीर कहीं चूर ना कर जाए।
दर्दे जख्म कहीं नासूर ना बन जाए।

कह दो मन की बातें गांठे पड़ जाएगी।
कर देगी बवाल बात जो अड़ जाएगी।

व्यथा व्यर्थ कर देगी हर सुख और चैन।
घुटन भरा माहौल मन तब होगा बेचैन।

दिल का दर्द सुनाने से हल्का हो जाए।
प्यार भरे दो बोल मीठे मरहम हो जाए।

खुली हवा में आकर देखो चैन आ जाए।
मंद मंद मुस्कुरा कर देखो रैन भा जाए।

अंतर्मन की ये उथल-पुथल दूर हो जाए।
दबी हुई पीड़ा कही बढ़ नासूर हो जाए।

पीपल की ठंडी छांव में

बैठकर थोड़ा सुस्ता लो, पीपल की ठंडी छांव में।
बहती मधुर सी पुरवाई, आकर देखो मेरे गांव में।

 

दूर-दूर से तोते आते, डाल-डाल पर वो गीत गाते।
मोर नाचता मन को भाता, राहगीर उधर से जाते।

 

तपस्वी सा अचल खड़ा, लोग कहते बहुत बड़ा है।
पंछियों का आश्रय स्थल, तूफानों से खूब लड़ा है।

 

सुकून मिल जाता यहां, पीपल की ठंडी छांव में।
चौपालें रोज चलती यहां पे, हरे भरे मेरे गांव में।

 

वो चिड़िया का चहकना, पखेरू बैठते हैं डाल पे।
वो बच्चों का खेलना, रौनक रहती नन्हे गाल पे।

 

पीपल बड़े प्यार से, आसरा जहां सबको देता है।
सुख दुख की कहानी सारी, मौन रह सुन लेता है।

गर्मी से व्याकुल हो, ठौर ठिकाना नजर ना आए।
पीपल का पेड़ अडिग, हमें बहारों से पास बुलाए।

पांच साल बाद रौनक

आए आज गली में मेरे जब हाथ जोड़ते नेता।
श्वेत वस्त्र छवि मनमोहक पूरे लगते अभिनेता।

मैं प्रत्याशी खड़ा हुआ हूं वोट अमूल्य दे देना।
बहां दूंगा विकास की गंगा वोटर देख लेना।

लोकतंत्र में लोकहित जनादेश बड़ा जरूरी।
सत्ता सुख पाने को नेता शक्ति लगा दे पूरी।

पांच साल बाद यूं रौनक सड़कों पर आई।
शतरंजी मोहरों की देखो चुनावी रंगत छाई।

जनहित में जनता को भी वोट डालना होता।
चुनावी दंगल में उतरे हैं भांति भांति के नेता।

चुनावी समर का देखो शंखनाद हुआ भारी।
सियासी पारा गर्म हुआ चली चुनावी तैयारी।

राजनीति का बाजार सजा कुर्सी की चाहत में।
रणभेरी बिगुल बज रहा है वोटो की आहट में।

शीतल जल सा मन मेरा

शीतल जल सा तर हो जाऊं बहती हुई बयार सा।
झोंका मस्त पवन बन जाऊं मांझी की पतवार का।

शीतल जल सा शिव चरणों में वारि-वारि जाऊं।
श्रद्धा भक्ति भाव गीत की ज्योत बनूं जल जाऊं।

शीतल जल सा मन मेरा गंगा धारा बन जाए।
प्रीत के छेड़े तराने ये दिल दीवाना बन गाए।

वाणी की शीतलता से रिश्तों को महकाता जाऊं।
गीतों गजलो छंदों में प्यारे शब्दों के फूल खिलाऊं।

मेरे होठों पर मुस्काने हो हंसी तेरे लब पे पाऊं।
रौनक आ जाए चेहरे पे मौसम ऐसा बन जाऊं।

मृदुल विचारों का संगम मुस्कानों के मोती बांटू।
मैं बनजारा मनमौजी बन पल सुहाने से छांटू।

हंसी खुशी के प्रीत तराने गाऊं गलियों मैदाने में।
मस्त बहारें नगमे सुनाऊं गीतों गजलों गानों में।

ठंडी ठंडी मस्त हवाएं छूकर जाए तन मन को।
बन जाए रसधार कविता गुंजे व्योम गगन वो।

ओ मैया शेरांवाली

कुछ भी छुपा नहीं है माता हाल मेरा तू जाने।
तु शक्ति की दाता अंबे, आजा कष्ट मिटाने।
ओ मैया शेरांवाली

अपनों में हुआ अकेला, भक्त तेरा अलबेला।
झोली मेरी भर दे माता दरबार सजा है मेला।
अष्ट भुजाओं वाली सुन ले, लाल चुनरिया धारी।
आठों याम ध्यान धरूं, आओ करके सिंह सवारी।
ओ मैया शेरांवाली

हाथों में त्रिशूल विराजे, हे शक्ति स्वरूपा माता।
विद्या बुद्धि यश दाता, हम सबकी भाग्य विधाता।
बल वैभव भंडार भरे, दिव्य अलौकिक वरदानी।
तेरा ध्यान धरे निशदिन, मां ऋषि मुनि नर ग्यानी।
ओ मैया शेरांवाली

शंख चक्र त्रिशूल हाथ ले, अभय दान वर देती।
भक्तों की प्रतिपाली मैया, दुखड़े सारे हर लेती।
तेरी शरण में सुख की गंगा, मन की पीर तू जाने।
सुंदर सजा दरबार निराला, मां भाए भजन सुहाने।
ओ मैया शेरांवाली

दुनिया के मेले में हर शख्स अकेला

अकेले ही चलना बंदे दुनिया का झमेला है।
दुनिया के मेले में यहां हर शख्स अकेला है।

आंधी और तूफानों से बाधाओं से लड़ना है।
संघर्षों से लोहा लेकर बुलंदियों पर चढ़ता है।

हिम्मत हौसला जुटा लो धीरज भी धरना है।
रंग बदलती दुनिया में संभल कर चलना है।

मुश्किलों भरा सफर है हर हाल में ढलना है।
रोशन हो जाए जमाना दीपक बन जलना है।

दो दिन की जिंदगानी चंद सांसों का रेला है।
दुनिया के मेले में यहां हर शख्स अकेला है।

प्यार के मोती लूटा लो संग ना जाए धेला है।
कारवां जुड़ता जाए जहां का हसीन मेला है।

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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