रमाकांत सोनी की कविताएं | Ramakant Soni Hindi Poetry
भर दे नाथ झोली मेरी
तेरे नाम लिखूं जीवन ये लिख दूं सारी सांसे।
ढूंढ रहा हूं तुझको भोले शुरू करूं कहां से।
तेरा ध्यान धरूं निशदिन जपता तेरी माला।
डमरू वाले औघड़दानी नीलकंठ मतवाला।
तेरे भजन मन को भाते मंदिर जाता महादेव।
महाकाल शिव जग पालक सब देवों के देव।
तेरी पूजा भक्ति में शिव भव भय जाते भाग।
किस्मत खुल जाती है भाग्य तारे जाते जग।
हर हर भोले किरपा तेरी पाकर होऊं निहाल।
भर दे नाथ झोली मेरी शिव करदे मालामाल।
तुझसे जुड़ा नाता मेरा मैं तेरे चरणों की धूल।
सृष्टि का करतार शंकर मत जाना बाबा भूल।
एक लोटा जल तुझको अर्पण श्रद्धा है विश्वास ।
सारी दुनिया रूठ जाए शिवशंकर तुझसे आस।
तेरे भरोसे मनमौजी मतवाला होकर फिरता।
शिवशंकर का नाम जपूं तेरे चरणों में गिरता।
जहां शिवालय शिवशंकर मन वहां रम जाता।
तेरा नाम लेकर चलूं कारवां वहां बन जाता।
मनमंदिर
मन मंदिर में दीप जलाओ पूजन थाल सजा लो।
मीठी मीठी वाणी जुबां से सबको अपना बनालो।
सत्य सादगी शिष्टाचार के भाव सुमन खिला दो।
मन का कोना कोना महके सौरभ को फैला दो।
मन मंदिर में उजियारा हो प्रेम का मधुर तराना।
श्रद्धा और विश्वास का हो जीवन में अफसाना।
जोश जज्बा भर लो घट घट में उमंगे हो हृदय में।
मन मंदिर में पुष्प सजा लो हर्ष खुशी आनंद के।
विषय विकार मिट जाए सारे मन मंदिर हो जाए।
पावन गंगा धारा बहती मन भावों में बहती जाए।
मन का मेल मिटे सारा मानव मन मंदिर हो जाता।
ह्रदय हिलोरें ले सुख की धारा जीवन में नर पाता।
मनमंदिर में बसे भगवन मानव जरा पहचान लो।
ईश्वर का साकार रूप हर जीव जीव में जान लो।
मन काशी मथुरा वृंदावन सारे तीर्थो का धाम है।
मनमंदिर में झांककर देखो बैठे राम घनश्याम है।
भारती के लाडले अटल जी
मशहूर राजनेता थे भारत के सजता था दरबार सदा।
भारती के लाडले अटल जी धरा से करते प्यार सदा।
कारगिल युद्ध में जीत दिलाई राजनीति भी चमकाई।
कुशल वक्ता लेखक कवि हो कविता की धूम मचाई।
राजनीति का ध्रुव तारा पूर्व प्रधानमंत्री थे राष्ट्र सितारा।
अटल बिहारी वाजपेई हस्ती अटल इरादा नाम प्यारा।
भारत रत्न पद्म विभूषण बेस्ट सांसद सम्मान मिला।
शुभ कर्मों से सम्मानों का चलता निरंतर सिलसिला।
पोकरण परमाणु परीक्षण सफल कार्यकाल रहा।
शिक्षक कृष्ण बिहारी घर अटल प्रिय लाल रहा।
जीवन सारा राष्ट्र समर्पित तन मन धन वार दिया।
सच्चे सपूत भारत मां के सपनों को साकार किया।
दिया संदेश जनता को कदम मिलाकर चलना होगा।
संघर्षों की परिभाषा में आंधियों में भी पलना होगा।
आओ फिर से दीप जलाए हम अटल जी की याद में।
गीत नहीं गाता हूं श्रद्धा सुमन समर्पित है फरियाद में।
हमने जब अपना हक मांगा
हमने जब भी अपना हक मांगा तो हैरानी हो गई।
बोल पड़े तो परिवार में तगड़ी खींचातानी हो गई।
मुंह फेर लिया अपनों ने रिश्तेदार भी रूठ गए।
बड़े जतन से बांध रखा वो प्रेम के मोती टूट गए।
घर में दीवारें खिंच गई मकान बिकाऊ हो गया।
समझदार थे उनका अब पुत्र कमाऊ हो गया।
कैसे बांध सके वो डोरी जलन पड़ी थी पांवों में।
तुच्छ स्वार्थ से शूल बिछाए सूनी सी इन राहों में।
संभल संभलके चलते फिर भी धोखा मिलता है।
पांव से जमी खिसकती कभी फैसला हिलता है।
जिसका पलड़ा भारी होता लोग उधर हो जाते हैं।
सलाह मशवरे आकर हमको रोज देकर जाते हैं।
रिश्तेदारों को भी जाने क्यों ये परेशानी हो गई।
हमने जब अपना हक मांगा तो हैरानी हो गई।
अपनी मेहनत हक का खाना बेईमानी हो गई।
न्याय की खातिर टूट पड़े तो खींचातानी हो गई।
याद बहुत आती है हमको
वो हंसना मुस्काना, वो भी कितना इठलाती है।
जी करता है बातें करूं, मेरे दिल को भाती है।
दिल से दिल के तार जुड़े, गीत मधुर सुनाते है।
याद बहुत आती है हमको, वो अधूरी सी बातें।
वो आंखों की बेचैनी, वो दिल से दिल का करार।
अधरों से बरसती है, जब प्रीत की मधुर फुहार।
धड़कनें संगीत सुर, लब सुरीले साज बन जाते।
याद बहुत आती है हमको, वो अधूरी सी बातें।
छुप-छुपकर मिलना शर्माना, इशारे दिखाती है।
कोरे कागज में दिल का, सारा हाल सुनाती है।
नैन ताकते रस्ता देखे, हम भी कैसे उन्हें बताते।
याद बहुत आती है हमको, वह अधूरी सी बातें।
रह रहकर ख्वाबों में आती, वो मुस्कानों की बातें।
भोली भाली सूरत में वो, खूबसूरती दिख जाती।
सात जनमों का जुड़ा रिश्ता, हम भी जान जाते।
याद बहुत आती है हमको, वो अधूरी सी बातें।
बसंत अब दूर नहीं
चली गई बरसात अब तो पतझड़ भरपूर नहीं।
महक उठेगा उपवन सारा बसंत अब दूर नहीं।
भांति भांति के पुष्प खिलेंगे मस्त बहारें भावन।
रंग बिरंगे हो गीत तराने अधरों से सुरीले पावन।
फगुनिया धुन गूंजेगी मुरलिया की वो मधुर तान।
चेहरों पर रौनक आएगी लबों पर मीठी मुस्कान।
मनमयूरा झूम उठेगा हरियाली फिर से आएगी।
काली कोयलिया डाली पर बैठ राग सुनायेगी।
मस्त पवन के झोंके तनमन पुलकित कर जाएंगे।
झूम झूमकर नर और नारी फाग उत्सव मनाएंगे।
अलमस्ती का आलम होगा मौसम रंग दिखाएगा।
प्रीत रंग में मोहन गिरधारी मुरली मधुर बजाएगा।
पीली सरसों ओढ़ चुनरिया धरती जब लहराएगी।
उर उमंगें खुशियों की घर-घर में रौनक आएगी।
वासंती बहार मधुरम सी छूकर तन महकायेगी।
रोम रोम खिल जाएगा मस्त बहारें गीत गाएगी।
दोन्यू हाथां म लाडू राखै
( राजस्थानी भाषा )
दोन्यू हाथां म लाडू राखै कद पलटी खा ज्यावै।
बिन पिंदा को लोटो ज्याणी गुड़तो गुड़तो ज्यावै।
जद चालै तलवारां दुधारू दोन्यू कान्या सूं काटै।
होय दोगला मिनख धरां प आपसरी न बै बांटै।
कदे आपणा बणै हेतुला भेद लेण र हिवड़ा रो।
कदे स्यामी हो ज्या ईस्या माण्ड लेव बै पाळो।
किरकांट भी रंग बदळतो थोड़ी टैम घड़ी लगावै।
नकटां को के नाक कटै है बै अपणो रंग दिखावै।
ओलो छानो आवै घणों घर घर म फूट करा दे।
भला भला न चोखी तरियां म्हारा मोटा मरा दे।
करै दोगळी बातां मिनख सूं रहणो थोड़ो संभळकै।
च्यार कोस दूर बसै ज्याणो बात लेणो ना हळकै।
चित भी म्हारी पट भी म्हारी बिलड़ी सी राखै सोच।
खीर खांड मिलै तो थारा नाही पड़ज्या आं कै मोच।
मनमीत मेरे तू आजा
मनमीत मेरे तू आजा, दिल का हाल बता जा।
नयनों को चैन मिले, झलक जरा दिखला जा।
मनमीत मेरे तू आजा
ढूंढ रही है तुझको निगाहें, ताक रही है रस्ता राहें।
अपने दिल के राजमहल में, दे दो थोड़ी हमें पनाहें।
कह रही है धड़कने तुमसे, प्रीत के गीत सुना जा।
नैन बिछाए बैठे हम भी, प्रेम सुधा रस बरसा जा।
मनमीत मेरे तू आजा
तेरी बातें तेरे वादे, मन को लुभाते हसीं इरादे।
तुम कितने भोले भाले हो, मीत मेरे सीधे-साधे।
मन मयूरा झूम रहा, धड़कनों की राग सुना जा।
भावों का सागर उमड़े, शब्द सिंधु गोते लगा जा।
मनमीत मेरे तू आजा
हंसी चेहरा मन लुभाता, प्रेम का सावन बरसाता।
मनमौजी मतवाली अदा, दस्तक दिल पर दे जाता।
कविता की इन कड़ियां में, पुष्प प्रेम के खिला जा।
गीतों गजलों छंदों की,आकर मस्त बहार बहा जा।
मनमीत मेरे तू आजा
हर चौखट पे जड़े पत्थर
हर चौखट पे जड़े पत्थर आशियाना आलीशान।
जमी मकान महंगे हो गये सस्ता हो गया इंसान।
घर के आगे गाड़ी दिखती चौखट खड़ा दरबान।
दरवाजे पे ताले मिलते विलायती मिलेंगे श्वान।
ना बुजुर्गों का बोलबाला ना चौखट पर वो रौनक।
जहां चहकता था आंगन प्यार की मीठी महक।
सिमट गई है चौखट अब तो सिकुड़ हुए दिलों सी।
लिपट गई स्वार्थ की डोरी शिकवा और गीलो सी।
होती थी चौखट पर रौनक विवाह मंडप सजता।
बाराते दूल्हा और बाराती बैंड बाजा फिर बजता।
गेस्ट हाउस मैरिज गार्डन शानो शौकत हुए भारी।
घर की चौखट सूनी रह गई लो शादी हो गई सारी।
हर चौखट पर सुख दुख के मिल जाते अफसाने।
कभी नैन में नीर बरसता कभी खुशियों के तराने।
हर चौखट पर मारा मारा दर-दर ना कभी भटकना।
घोड़ा बिकता ठांव पे साथी अधर झूल ना लटकना।
विदा चाहते अब
बीत गई अंधियारी रात विदा चाहते हैं अब।
ना रही वो सुहानी बात विदा चाहते हैं अब।
तिनका तिनका जोड़ बनाया घर सुंदर सा।
सपनों का महल सजाया वृक्ष हुआ बड़ सा।
घर के कितने मालिक है घर रहा ना घर सा।
सबको रोटी देने वाला आज ग्रास को तरसा।
आंगन में दीवारें खिंची विदा चाहते हैं अब।
तानों से कान पक गए विदा चाहते हैं अब।
उमर हुई आंखों से धुंधला धुंधला दिखता।
बहुत कमाया हमने देखा सबकुछ बिकता।
बांट लिया औलादों ने हमको बांट ना पाए।
काल चक्र की तीव्र चाल हम काट ना पाए।
सब देखा हाथों से जाते विदा चाहते अब।
परिवार में प्रेम का सिलसिला चाहते अब।
शिक्षा और संस्कार दिए हमने भी भरपूर।
अपने दम पर दुनिया में हुए बहुत मशहूर।
जाने कैसी हवा लगी मतलबी हो गए सारे।
संघर्षों से बढ़ जाते पर अपनों से हम हारे।
जीर्ण शीर्ण काया ले अलविदा चाहते अब।
जब तक सांसे जीने की विधा चाहते अब।
नीम की ठंडी छांव यूं मिलती नहीं
नीम की ठंडी छांव यूं मिलती नहीं।
चेहरों की रवानी अब खिलती नहीं।
अपनापन प्रेम को तरसते लोग यहां।
मस्त बहारें मनभावन बहती है कहां।
नीम के नीचे पाठशाला मिलती नहीं।
मजबूत थी बुनियादें जो हिलती नहीं।
गांव की हवाएं अब बदलने लगी है।
स्वार्थ की आंधियां यूं चलने लगी है।
नीम तले गोरी अब झूला-झूलती नहीं।
दिलों की खिड़कियां भी खुलती नहीं।
हो गया प्रेम अब दिखावे का बाजार।
प्रीत की कहां बरसती मधुर रसधार।
नीम की निंबोली नीचे झुकती नहीं।
खुशियों की घटा आके रुकती नहीं।
उमड़ती नेह धारा अब सबके दिलों में।
वक्त निकला जाता शिकवा गिलो में।
निशानी छोड़ जाएंगे
कलम की हम रवानी छोड़ जाएंगे।
हम रहे ना रहे कहानी छोड़ जाएंगे।
लेखनी की धार निशानी छोड़ जाएंगे।
यादों भरा नयनों में पानी छोड़ जाएंगे।
गीत ग़ज़लें सबकी जुबानी छोड़ जाएंगे।
कविता की दुनिया दीवानी छोड़ जाएंगे।
शब्दों का जादू कविता गानी छोड़ जाएंगे।
भाव की रसधार हम सुहानी छोड़ जाएंगे।
किताबें न सही कागज पन्नी छोड़ जाएंगे।
हर जुबान पे अपनी कहानी छोड़ जाएंगे।
प्रीत की बहती धारा शैतानी छोड़ जाएंगे।
याद करेगी दुनिया निशानी छोड़ जाएंगे।
महकता समां बयार सुहानी छोड़ जाएंगे।
छाप छोड़ती बहार मस्तानी छोड़ जाएंगे।
तुम डाल डाल
तुम डाल डाल हम पात पात क्या करतब दिखाओगे।
तुम उछल कूद कर लो पूरी औंधे मुंह ठोकर खाओगे।
तुम खेलो मनमर्जी की चालें सतरंजी चाहे हो जितनी।
तुम हद पार कर जाओ कूटनीति भरी मन में कितनी।
तुम नयन तीर चलाकर देखो अंगारे बरसा लो चाहे।
मुस्कान अधरों पर ही होगी रसधार बरसती निगाहें।
ईर्ष्या द्वेषता नफरतों की तुम कैसी मूरत बन गये हो।
बेईमानी की राहे चुनकर क्यों अकड़ में तन गये हो।
खुद काली करतूतों की इमारत खड़ी क्यों करते हो।
बारूद के ढेर पर बैठे फिर चिंगारी से क्यों डरते हो।
तुम जहां-जहां भी जाओगे हमको यूं भूल ना पाओगे।
हमसे जो तुम टकराओगे फिर लाख बार पछताओगे।
तुम कांटों के बाग लगाते हो हम प्रीत पुष्प बरसाते हैं।
तुमसे दुनिया दूर रहती हम प्रेम भरी रसधार बहाते हैं।
तुम चाहे जितने जतन करो बराबरी कहां कर पाओगे।
तुम डाल डाल हम पात पात बचके कहां तक जाओगे।
शिव साकार ढूंढता हूं
तू है निराकार मै आकार ढूंढता हूं।
तू अंतर्यामी रूप साकार ढूंढता हूं।
शिव साकार ढूंढता हूं
घट-घट का वासी अगम अविनाशी।
पार ब्रह्म परमेश्वर महादेव कैलाशी।
दर्शन का हे शंकर आधार ढूंढता हूं।
औघड़ दानी भोले करतार ढूंढता हूं।
शिव साकार ढूंढता हूं
तेरी जटा में गंगा चंद्र ललाट पे सोहे।
गले में सर्प माला नीलकंठ मन मोहे।
विश्वनाथ वरदानी दातार ढूंढता हूं।
पार लगा दो नैया किनार ढूंढता हूं।
शिव साकार ढूंढता हूं
भांग धतूरा बाबा भस्म तन पे राजे।
नटराज नृत्य प्यारा डम डमरू बाजे।
हर हर तेरी भक्ति का भंडार ढूंढता हूं।
तू अगम अगोचर सुख सार ढूंढता हूं।
शिव साकार ढूंढता हूं
देवाधिदेव भोला करे नंदी की सवारी।
दुखों को हर लेते हो शिव त्रिशूलधारी।
तेरी कृपा शिव शंकर भंडार ढूंढता हूं।
भोलेनाथ दयानिधि साकार ढूंढता हूं।
शिव साकार ढूंढता हूं
बाबुल कहे बेटी तू है पराई।
तू घर की फुलवारी है, तुझसे घर में खुशियां आई।
तू आंखों का तारा बेटी, सुख दुख में तू ही सहाई।
दुनिया की रीत हमने निभाई, बाप ने बेटी परणाई।
खुश रहना तू सदा ही, बाबुल कहे बेटी तू है पराई।
बाबुल कहे बेटी तू है पराई।
सजी घर की देहरी आंगन, बाजा ले बारात आई।
मंगल गीत सब गावे, द्वार पर बज उठी शहनाई।
तोरण द्वार रोशन सारे, सखियों ने मेहंदी लगाई।
घर तेरा आबाद रहे, बाबुल कहे बेटी तू है पराई।
बाबुल कहे बेटी तू है पराई।
अरमानों से डोली सजाई, दुआएं दी गोद भराई।
मां की आंखें भर आई, कैसे करूं मैं तेरी विदाई।
लाडो से पाला गले लगाऊं, गोद में बिटिया आई।
खुशियां मिले अपार, बाबुल कहे बेटी तू है पराई
बाबुल कहे बेटी तू है पराई।
राम रस प्याला
राम धुन रमता हनुमत राम नाम मतवाला।
आठो याम जपो रघुनंदन राम रस प्याला।
राम राम श्रीराम हमारे अंतर्यामी प्रभु राम।
तिर जाते पत्थर पानी में लिखा राम नाम।
रोम रोम में राम बसे सीना चीर दिखा देते।
रामनाम रस प्याला पी श्रीराम दर्शन पाते।
राम रसायन औषध राम कृपा है सुखकारी।
रामनाम माला फेरो मिट जाए विपदा सारी।
राम जगत तारनहारे आराध्य है प्रभु हमारे।
करुणासागर रामजी सबकी आंखों के तारे।
राम यज्ञ राम पूजा राम सिवा ना कोई दूजा।
पियो रामरस प्याला राम ही भक्ति राम पूजा।
रघुवर राम गुण गा सुख संपति कीर्ति पाओ।
राम नाम जपो झूमो राम शरण में हो जाओ।
पीकर रामरस प्याला झूम रहा बजरंग बाला।
रक्षक राम गुसाई बाल बांका ना होने वाला।
एक नई परीक्षा जिंदगी की
जिंदगी के मोड़ भी कैसे बदल बदलकर आते हैं।
हरेक मोड़ पर एक नई परीक्षा जिंदगी की पाते हैं।
हर मुकाम पर हौसलों की हमको भारी जरूरत है।
जोश जज्बा उमंग उत्साह लगन ही शुभ मुहूर्त है।
सुख-दुख खुशियां मिले कभी गमों का चलता दौर।
कभी नयन नीर बरसाते कभी नाचता मन का मोर।
टूट जाते रिश्ते नाते अपने भी हमको लगते बेगाने ।
कभी रात भर महफिलें हो कभी चलते अफसाने ।
खिल जाते हैं ख्वाब सुनहरे महके हुए चमन से।
संघर्षों से ही दमकते है मोती अनमोल सृजन से।
जीवन की जंग में हमको हिम्मत खूब दिखलानी।
एक नई परीक्षा जिंदगी की सबको देकर जानी।
प्रश्न पत्र समय के पन्ने जीवन का होता इतिहास।
कर्म हमारे यश वैभव को बना देते स्वर्णिम खास।
परीक्षक खुद कुदरत होती हाथ ना कॉपी ना पेन।
कड़ी परीक्षा होती है तब मिलता कहीं नहीं चैन।
रुक जाना नहीं कहीं तू हार के
चलते जाना सृष्टि का नियम रहा।
चांद ठहरा कहां पे बता दो कहां।
गीत रचना स्नेह भरी रसधार के।
रुक जाना नहीं कहीं तू हार के।
समझो ना अकेला इस संसार में।
बदलेगा ये मौसम मस्त बहार में।
पथरीली राहें पथिक करो पार रे।
रुक जाना नहीं तू कहीं हार के।
मंजिले सुहानी हमें मिल जाएगी।
बढ़ते रहना सफलता भी आएगी।
आंधियों से भीड़ जाना हर बार रे।
रुक जाना नहीं तू कहीं हार के।
हजारों बाधाएं आती है राहों में।
सपना सुनहरा रखना निगाहों में।
बांटो जग में मोती जरा प्यार के।
रुक जाना नहीं तू कहीं हार के।
क्या अमृत भी
विष क्या अमृत भी पाएगा सेवा से संस्कार से ।
टूट रही रिश्तो की डोरी आपस की तकरार से।
जहर घोलने वाले घोले तुम अमृत रस बरसाओ।
बरस रहे अंगार जहां तुम प्रेम सरिता बन जाओ।
मीठे बोल मधुर वाणी की सौरभ महका दो सारी।
ईर्ष्या द्वेष कटुता कम हो स्नेह सुधा सबसे भारी।
शिव ने विष का पान किया अमृत बांटा देवन को।
सत्य सनातन सदाचार से हर्षित सारा तन मन हो।
विष क्या अमृत मिलता है सकल इस संसार में।
तीखी वाणी विष उगले अमृत बरसता प्यार में।
छल छद्म बैर भाव मानस गरल उगलते भावों में।
मन चंगा तो बहती गंगा खुशहाली होती गांवों में।
रिश्तों में सदा प्रेम ही पालो वाणी की रसधार से।
सुख शांति समृद्धि आती अपनापन और प्यार से।
पावन शब्दों को गीतों को उन भावों को चुन लेना।
काव्य की सरिता रस बरसे कविता ऐसी बुन लेना।
जिस चेहरे पर गुमान था
जिस चेहरे पे गुमान था विश्वास नेह अभिमान था।
हद से ज्यादा चाहा जिसको दिल का अरमान था।
जिसको देख हसीं चेहरे पर मुस्कानें छा जाती थी।
हंसी-खुशी रौनक मुस्कानें होठों पर आ जाती थी।
भोर सुहानी खिल जाती थी शामें रंगीन नजारा थी।
जिसकी हर अदाएं भावन सी जो संसार हमारा थी।
मन का कोना-कोना सूना वीरान जमाना लगता था।
जो ना आया तो दिन खाली खारा खाना लगता था।
मीठी बातों से रस घुलता महफिलें सज जाती थी।
दिल के तार बज उठते धड़कने प्रीत राग गाती थी।
उनके आ जाने से मन को मिल जाता करार कभी।
जाने कैसे बदल गए वो बरसती प्रीत रसधार कभी।
वक्त बदला मौसम बदला कितना हसीं चेहरा भी।
जिस चेहरे पर गुमान था धुंधला हुआ सुनहरा भी।
भावों ने करवट बदली अपनी डफली अपनी राग।
वो बहारे कहां रही उपवन में उमड़ता था अनुराग।
रिश्तो के बीच धुंध
रिश्तो के बीच धुंध ये कैसी छाने लगी है।
दूरियां अपनों में भी देखो यूं आने लगी है।
नफरतों का दौर स्वार्थ का जहर घोलता।
अपनापन अनमोल हृदय तराजू तोलता।
ईर्ष्या द्वेषता कटुता घर-घर आने लगी है।
घर की दीवारें अब घर को खाने लगी है।
कुलदीपक ही आग का दरिया बनने लगा।
चांद सा टुकड़ा सुखद शांति निगलने लगा।
भाई-भाई के झगड़े आम बात होने लगी है।
बंट रहे घर जमीनें आबरू भी खोने लगी है।
झूठ चालाकियां नस-नस में समाने लगी है।
दिखावे में दुनिया है चकाचौंध छाने लगी है।
गिरना यूं गिराना नियत बिगड़ जाने लगी है।
धोखा जालसाजी बहुत रंग दिखाने लगी है।
रिश्तो में मर्यादाएं भी सारी ढह जाने लगी है।
कपट की बुनियादें कैसा रंग दिखाने लगी है।
निराकार में आकार हूं
निराकार में आकार हूं सत्यमेव ओंकार हूं।
सत्य सनातन सदाचार सृष्टि शिल्पकार हूं।
आस्था श्रद्धा विश्वास दीपों में उजास हूं।
मन मंदिर का उजाला देवों में मैं खास हूं।
प्रलय हूं विनाश हूं उन्नति और विकास हूं।
काल महाकाल शिव कारण हूं समास हूं।
परिवर्तन का पांव हूं भूत वर्तमान काल हूं।
हरियाली भरा गांव हूं पार लगा दे नाव हूं।
खुशियों का खजाना हूं नूतन जमाना हूं।
गीतों का तराना हूं मैं कोई अफसाना हूं।
शब्द संगीत ताल हूं मैं बड़ा बेमिसाल हूं।
याद करके देखो जरा मिलता हर हाल हूं।
कर दूं मालामाल हूं जैसे कोई कमाल हूं।
हिला दूं सारी दुनिया कोई माया जाल हूं।
सभ्यता भी संस्कार हूं सहमति प्रतिकार हूं।
जीवन का आधार खुशियों भरा उपहार हूं।
कभी-कभी हम हारे हैं
हारकर भी जीते हम, रिश्तो की तकरार में।
कभी-कभी हम हारे हैं, जानम तेरे प्यार में।
कोई रूठा कोई टूटा, मुंह फिराकर चल दिया।
कोई दिखा बेरुखी सी, दर्दे दिल हमको दिया।
अपने बेगाने होकर, अपनापन को छोड़ चले।
खून का रिश्ता पुराना, अपने रिश्ता तोड़ चले।
हमने भी प्रेम कमाया है, रिश्तो के बाजार में।
कभी-कभी हम हारे हैं, जानम तेरे प्यार में।
दिलों दीवारें टूटी, दिल के टुकड़े हुए हजार।
वर्षों पूराना प्रेम हमारा, हो गया तार तार।
अपनी डफली थामें, अपने रस्ते चल दिए।
किसको दोष कहां, कान किसी ने भर दिए।
वक्त की आंधी में, खुद को संभाला हार के।
कभी-कभी हम हारे हैं, जानम तेरे प्यार में।
कहीं खो ना जाए हम
सपनों की दुनिया में कहीं खो ना जाए हम।
भागदौड़ भरी जिंदगी यंत्र हो ना जाए हम।
चकाचौंध के कायल हो धन के पीछे दौड़े।
सच का करो सामना थामो मर्जी के घोड़े।
बेबुनियाद ख्वाहिशों के वशीभूत ना होना।
मेहनत के दम पे बढ़ना सपनों में ना खोना।
भीड़ भरी दुनिया में कहीं खो ना जाए हम।
अपनी भी पहचान बना लो चीज क्या हम।
शुभ कर्मणा सौरभ से महका दो जीवन को।
मधुर वाणी से रसधार तर सारा तन मन हो।
सबसे मिलो मुस्कुराकर जोश भरा दम हो।
तुम दुनिया के हीरो नहीं किसी से कम हो।
भावों की बहे सरिता कहीं खो ना जाए हम।
शब्दों से खुशियां बरसे आंखे हो जाती नम।
लेखनी की धार से कविता की कड़ियां बुनो।
मोतियों की माला गुंथे शब्द कुछ ऐसे चुनो।
बचपन से दूर होता बचपन
ना रहे वो खेल खिलौने अब बदल गए हालात।
बचपन से दूर होता बचपन मोबाइल पर बात।
भारी भरकम बस्ता अब तो पढ़ें पढ़ाई अंग्रेजी।
वीडियो गेम मोबाइल चैटिंग मार्केटिंग में तेजी।
शतरंज कैरम बोर्ड खेलना अब किसको भाता।
खो खो कबड्डी कहो भला अब किसको आता।
सतोलिया मारधड़ी चोर सिपाही अब खेले कौन।
बचपन से दूर होता बचपन मात पिता बैठे मौन।
कंप्यूटर की शिक्षा हुई किताबें भी अब पूछे कौन।
मैदान में खिलाड़ी कहां खेल कूद क्रीडा हुई गौण।
वो अल्हड़पन भोलापन वो बचपन भी कहां गया।
साथियों संग उधम मचाना बालपन भी कहां गया।
नन्हे-नन्हे बाल चेहरों की मुस्काने ना खो जाए।
नन्हे-नन्हे हाथों की मधुर करामाते ना खो जाए।
बचपन को मिट्टी के घरोंदे भी बनाने होंगे लोगों।
बच्चों को हाथों से सितारे चमकाने होंगे लोगों।
दिन सलोने बचपन के
कहां गए वो मधुर मधुर दिन सलोने बचपन के।
याद बहुत आते हमको बीते पल वो बचपन के।
खेल खिलौने हंसना मुस्काना रूठना और मनाना।
सैर सपाटा स्कूल जाना टोली संग उधम मचाना।
वो भोलापन और नादानी शरारतें सारी मस्तानी।
वो पगडंडी बड़े हुए हम खाकर खूब दाना पानी।
अठखेलियां याद आती वो आंँगन दीवारें भाती।
बैठ पिता के कंधों पर फरमाइशें पूरी हो जाती।
वो पीपल की छांव सुहानी जहां चलती मनमानी।
कबड्डी खो खो साथी संग खाते गुड़ और धानी।
वो बचपन का प्यार सलोना वो हंसना मुस्काना।
मां की डांट फटकार फिर आंचल में छुप जाना।
मौज मस्ती मस्तानों की मोहल्ले में जमती धाक।
शौक सारे पूरे हमारे हम इठलाते पहन पोशाक।
कैसे भूले जा सकते हैं वो दिन सलोंने बचपन के।
आनंदित कर जाते हमको पल सुहाने बचपन के।
देवभूमि उत्तराखंड
देवभूमि उत्तराखंड खूबसूरत राज्य है भारत का।
हसीं वादियां दर्शनीय मोहक नजारा कुदरत का।
हिमालय की तलहटी बसा दुनिया भर में मशहूर।
देहरादून मसूरी घूमो प्रकृति का है आनंद भरपूर।
हरिद्वार ऋषिकेश पावन गंगा तट है मन भावन।
भव्य मंदिर आश्रम बरसता है श्रद्धा का सावन।
हिमालय पर्वतमाला खूबसूरत मस्त सारा नजारा।
केदारनाथ शिव मंदिर महाकाल भक्तों का प्यारा।
चार धाम बदरीनाथ विष्णुजी का मंदिर मनभावन।
धर्म आस्था सत्य सनातन पुनीत हृदय भरा पावन।
प्राकृतिक सुंदरता सुखदायक दिव्य विरासत भारी।
बर्फ लदी पहाड़िया घाटियां सुंदर सी लगती सारी।
धरती का स्वर्ग जहां धरती हरियाली से है भरपूर।
संस्कृति सभ्यता समाए उत्तराखंड बहुत मशहूर।
नैनीताल भीमताल चलो उत्तर काशी बड़ी कमाल।
मुक्तेश्वर बागेश्वर देख लो फूलों की घाटी हर हाल।
झीलों सुरम्य वादियों भरा सुंदर प्यारा उत्तराखंड।
ईश्वर प्रेम धर्म का दीप जलता जहां सदा अखंड।
महकते ख्वाब
महकते ख्वाब है मेरे सुनहरे सपनों का संसार।
हसीं वादियां दिल की प्रेम की बरसती रसधार।
मगन हो नाचता है मौजी मन में उठ रही लहरें।
सुरीले सपनों में खोया अंतर्मन भाव बहे गहरे।
मन में भाव खुशियों के स्वप्न पुष्प खिले खिले।
उत्साह उमंगे उर उठ रही मोतियों से हमें मिले।
सपनों का संसार निराला ख्वाबों का गुलदस्ता।
हकीकत की दुनिया से हटकर पावन सा रस्ता।
महकते ख्वाब मन में पालो सुंदर करो प्रयास।
सच हो जाएंगे सपने सारे मन में रखो विश्वास।
महक जाए जीवन सारा महकते ख्वाबों सा।
चेहरे पर मुस्काने छाए रुतबा रहे नवाबों सा।
हर्ष आनंद की बरसाते प्रीत से जनमन हरसे।
घर में खुशियों भरी हो हर हृदय में प्रीत बरसे।
आशाओं की डोर
आशाओं की डोर सजीली थामें रखना मन में।
महक उठेगा जीवन सारा उमंग भरे जीवन में।
आशाएं उत्साह जगाती हिम्मत हौसला बढ़ाती।
चिंताएं हर लेती सारी खुशियों के दीप जलाती।
हंसी खुशी वैभव सुखी आशावादी नर हो जाता।
मुश्किलें खुद रस्ता देती सफलता चरणों में पाता।
कड़ी मेहनत पक्का इरादा प्रगति पथ की राहें।
जिंदगी की उलझने सारी हल कर देती आशाएं।
बदले मौसम और जमाना बदलावों की है धारा।
आशाओं की डोर संभालो जीवन में उजियारा।
आंधी तूफान विघ्न बाधाएं आती है और जाती।
आशाएं वो दीपक है मन में जोश नया जगाती।
अंधियारे में नई रोशनी हमको आशाएं दे जाती।
मन मंदिर में दिव्य ज्योत सी आशाएं बन जाती।
विश्वास प्रेम के पुष्प खिले चेहरे पर हो मुस्कान।
आशाओं के दम पर ही नजर चलता सीना तान।
सांसों का क्या ठिकाना
दो दिन की जिंदगी प्यारे सांसों का क्या ठिकाना।
छोड़कर सब कुछ यहां से एक दिन सबको जाना।
क्या लाया क्या ले जाएगा क्या तेरे साथ जाएगा।
कर भलाई दुनिया में शुभ कर्म बस काम आएगा।
चंद सांसों की डोर है प्यारे पल का नहीं भरोसा।
सेवा कर ले मात-पिता की जिसने पाला पोसा।
क्या खोया क्या पाया तूने जीवन यूं ही खोया।
परहित सेवा धर्म त्याग बस स्वार्थ को ही रोया।
माटी के पुतले को इक दिन माटी में मिल जाना।
जब तक सांसे जिंदा है सांसों का क्या ठिकाना।
सांसों की सरगम बोले जीवन का संगीत सुनाती।
हर पल को जी ले हंसी खुशी धड़कने राग गाती।
दुख दर्द बांट लो थोड़ा हंस लो मुस्कुरा लो थोड़ा।
कल को किसने देखा खुशियों को पा लो थोड़ा।
ठगा ठगा सा चांद गगन का
ठगा ठगा सा चांद गगन का,
आज हो गया बड़ा उदास।
कविराज न्याय करो अब,
शिकायत ले आया मेरे पास।
कभी ईद का चांद बनाते,
मुझे देख हंसते मुस्कुराते।
इक दूजे को वो गले लगाते,
ईद मिलन की रस्म निभाते।
करवाचौथ पर पूजा जाता हूं,
चपल चांदनी बिखरता हूं।
सुहागनों का सिरमौर होकर,
इठलाता हूं मैं बल खाता हूं।
धरती वाली भी कैसे हैं,
बड़े यहां केवल पैसे हैं।
काम हुआ आगे चल देते,
दुख तकलीफें हर पल देते।
चंदा मामा कह मुझे बुलाते,
खीर मलाई खुद खा जाते।
पूनम की चांदनी में नहाते,
प्रियतम को चांद कह जाते।
कहानी लिख रहा हूं
जीवन की अजब कहानी लिख रहा हूं।
लेखनी ले कागज जुबानी लिख रहा हूं ।
कहानी लिख रहा हूं
हमने लिखी है गीतों में रसधार औज की।
मनमौजी मतवाला सा ये जिंदगी मौज सी।
बस सीधा-साधा सा सबको दिख रहा हूं।
कहां है जौहरी मैं बिन भाव बिक रहा हूं।
कहानी लिख रहा हूं
वो भावों की गंगा सजी मोतियों की माला
शब्दों को पिरोया गूंथा इक गजरा निराला।
कविता की कड़ियों में खड़ा दिख रहा हूं।
मंचों पर गाता हूं कुछ नया लिख रहा हूं।
कहानी लिख रहा हूं
टूटे हैं सपने रूठे अपने अपनापन अनमोल।
दुनिया दीवानी चली वहां मिलते-मीठे बोल।
मैं अकेला ही कारवां सा बनकर दिख रहा हूं।
रोशनी हो जहां सुदर्शन रोशनी लिख रहा हूं।
कहानी लिख रहा हूं
भाई बहन का प्यार
इस दुनिया में सबसे प्यारा भाई बहन का प्यार।
खुशियां बरसाती आंगन में महकता घर संसार।
विश्वास प्रेम सद्भाव दिलों में होंठों पर मुस्कान।
इक दूजे पर जान लुटाते ये रिश्ता बड़ा महान।
लंबी उम्र जीएं मेरा भाई बहन मंगलाचार करें।
भरा रहे भंडार बहना शुभ कामना तिलक करें।
मुश्किलों में खड़ा रहूंगा फर्ज निभाता सदा रहूंगा।
बहना खुश रहे सदा तू खुशियों से झोली भरूंगा।
लाड प्यार स्नेह की धारा रिश्ता है अनमोल प्यारा।
पावन रिश्ता बहन भाई का यश गाता संसार सारा।
वो रूठना और मनाना संग संग हंसना और गाना।
बिना बताए समझ सके जो रिश्ता है बहुत पुराना।
दिल का दर्द जानती बहना भ्राता प्रेम मानती बहना।
दुआओं में खुशहाली की शुभकामना मांगती बहना।
चहल पहल रौनक रहती हर्ष खुशी उमंगे बहती।
अविरल प्रीत का झरना घर आंगन दीवारें कहती।
रिश्तो की अटूट डोर है प्रेम सदा यह सिरमौर है।
भावों का सागर उमड़ता मुस्कानों की ये ठौर है।
धन की देवी लक्ष्मी
धन की देवी लक्ष्मी, यश वैभव की दाता।
भर दो भंडार मेरे, वरदान दीजिए।
दीपों की सजी कतारें, सज रहे घर द्वारे।
धन बरसाने वाली, धन वर्षा कीजिए।
पूजन थाल दीपक, ले चंदन और बाती।
सुख समृद्धि खुशियां, झोली भर दीजिए।
पावन त्यौहार तेरा, खुशहाली है दिवाली।
घर घर में रोशनी, आगमन कीजिए।
रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान
रचना स्व रचित व मौलिक है
धनवंतरि देव
धनतेरस को धनवंतरि, अवतरण दिवस आया।
प्रादुर्भाव आयुर्वेद का, आरोग्य सुख जन पाया।
जिनकी चार भुजाएं हैं, शंख चक्र धारण किए।
विष्णु का अवतार रूप है, आयुर्वेद हमको दिए।
क्षीरसागर मंथन से जब, निकला हलाहल भारी।
शिव शंकर ने विषपान किया, जटा में गंगाधारी।
अमृत कलश ले धनवंतरि, जगत की झोली भरी।
आरोग्य प्रदाता आदिदेव आयुर्वेद रच कृपा करी।
आरोग्य आयु बल दाता, सुख संपदा वैभव पाता।
काशी कालजयी नगरी है, सुधारस इंद्रदेव वर्षाता।
जो हाथों में शंख धरकर, देते हम सबको संदेश।
सकारात्मक ऊर्जा से, हृदय श्वास दमा हो शेष।
सुख समृद्धि सदाचरण के, देव धन्वंतरि भगवान।
जड़ी बूटी नित्य नियम, आयुर्वेद में है रोग निदान।
साधु संत ऋषि मुनि ज्ञानी, बड़े बड़े हुए सुर ज्ञान।
जीवनदायिनी शक्ति देते, पूजन करें हम धर ध्यान।
आई है दिवाली
आई है दिवाली मनभावन, हम दीप सजाने वाले हैं।
चंदन अक्षत रोली मोली, सुंदर पुष्प चढ़ाने वाले हैं।
रोशन घर का कोना कोना, वंदनवार लगाने वाले हैं।
धन की देवी लक्ष्मीजी को, हम आज मनाने वाले हैं।
आई है दिवाली मनभावन
दीपों की सजी कतारों में, खुशियों चांद सितारों में।
गुलशन और बहारों में, महकाते हसीन नजारों में।
प्रीत की लेकर फुलझड़ियां, सबको हंसाने वाले हैं।
काव्य कलश अमृत रस बूंदे, गीत सुनाने वाले हैं।
आई है दिवाली मनभावन
सद्भाव प्रेम अनुराग उर, आलोकमय हो दीप जले।
धन वैभव यश की दाता, नर सन्मार्ग अविराम चले।
सुख संपदा बुद्धि विधाता, गणपति मनाने वाले हैं।
आओ मिलकर मनाएं दिवाली, दीप जलाने वाले हैं।
आई है दिवाली मनभावन
मुस्कुराने की वजह क्या
मुस्कुराने की वजह क्या बता दो जरा।
प्यार कितना है दिल में जता दो जरा।
हमने देखा चेहरा हसीन गुलशन सा।
पास आकर हमको भी हंसा दो जरा।
पलके राहों में हम कब से बिछाए हुए।
चमन में पुष्प हम कब से खिलाएं हुए।
खुशबुओं से महका दो महफिलें जरा।
गीत यादों में तेरी कब से सजाए हुए।
रोशन ये जमाना जवां दिल हमारा है।
तेरा नाम प्यारा लब पे एक सितारा है।
प्रीत के नगमे हमे आकर सुनाओ जरा।
दिल का राजमहल खाली आओ जरा।
तुम कहो तो चले हम भी हसीं वादियां।
तुम दिल की हो रानी हम तुम्हारे पिया।
खुशियों के दीप घट में जलाओ जरा।
खिल जाए समां तुम मुस्कुराओ जरा।
कैसे मनाऊं दिवाली
राग है रंग है मन में भरी उमंग है।
कैसे मनाऊं दिवाली हाल तंग है।
सजे बाजार है दीपों का त्यौहार है।
कैसे जलाऊं दीपक दिल बेजार है।
हंसी मुस्कान है लबों पे प्यारी तान है।
गीत कैसे लिखूं मैं मन मेरा बेकरार है।
अपना है सपना है रिश्तो का बाजार है।
कैसे संभालू भला हर भरोसे किनार है।
हसीन फिजाएं हैं चली मस्त हवाएं हैं।
कैसे बह जाऊं मैं हवाओं में खुमार है।
रोशनी उजाला है पैसे का बोलबाला है।
कैसे घर से निकलूं महंगाई की मार है।
गहने है कपड़े है वेशभूषा का अंबार है।
कैसे सजा लूं थाल पंडाल जो तैयार है।
सूरदास महाकवि
सूरदास महाकवि श्रेष्ठ कृष्ण भक्ति मे रहते लीन।
वात्सल्य रस में पद रचे सारस्वत वंश है कुलीन।
सूर सागर सूर सांवली साहित्य लहरी सुंदर ग्रंथ।
कृष्ण कृपा से दिव्य दृष्टि मोहन माधव माने पंथ।
सहज प्रेम माधुर्य रस बृज बिहारी लाल बखान।
गोपियां नंदलाल ग्वाल सुंदर चित्रण है सुरज्ञान।
कृष्ण लीला कृष्ण भक्ति केशव माधव गोपाल।
सूरदास शरण कन्हैया जय मुरलीधर नंदलाल।
माखनचोर मदनमुरारी मुरलीवाला नंदबिहारी।
सूरदास सुख पाते पल देख देख लीलाएं न्यारी।
भक्तिकाल अवतरित हुए सरस कवि सूरदास।
कृष्ण सुदामा प्रेम रस में रचा काव्य अनुप्रास।
बाल लीलाएं श्रीकृष्ण की गोपियों संग रास।
वृंदावन की कुंज गलियां पद पद में विश्वास।
घट द्वारिकाधीश बसे रोम रोम बसे श्री श्याम।
सूरदास नैनन बसे अधर मुरलीधर घनश्याम।
मेरा चांद मुझे आया है नजर
आज धरा पर धवल चांदनी उतर आई है निखर।
महक उठा मन ये मेरा चांद मुझे आया है नजर।
आया है त्यौहार पावन करवा चौथ सुहागन का।
चांद सा मुखड़ा दमकता आज मेरे साजन का।
पूजन का लेकर थाल गोरी चांद को मनाने चली।
प्रियतम प्रेम धारा में गौरी चांदनी में नहाने चली।
चंद्रमा की धवल चांदनी उर उमंग जगाने लगी।
ठंडी ठंडी पुरवाई सी हर्षित हो मन लुभाने लगी।
कर सोलह सिनगार सुंदरी चांद को मनाने लगी।
प्रीत की झड़ी निर्झर पिया मन को हरसाने लगी।
जुग जुग जिए जुगल जोड़ी नेह बांटते हम रहे।
खुशियों के दीप जलते रहे प्यार का झरना बहे।
बज उठे जब तार दिल के चांदनी में नहाया शहर।
मंगलगीत गाए गौरी मेरा चांद मुझे आया है नजर।
सुहागन सुधाकर पूजती प्रियतम छवि निहारती।
सौभाग्य सुखदाई व्रत पावन नारी रूप संवारती।
अजमीढ़ जी महाराज
नवसृजन आदिदेव सृजक,
अजमीढ़जी महाराज।
स्वर्ण औजार कल पूजा साधक,
करते पूर्ण काज।
स्वर्णकार करे ध्यान नित्य,
झोली विद्या से भरते।
स्वर्ण कला कौशल हुनर से,
नित्य साधना करते।
स्वर्ण आभूषणों में जड़े,
हीरे मोती जवाहरात।
मुंह बोले मीना कारीगरी की,
हो अनोखी बात।
सोनी साधक शरण आपकी,
देव सदा मनाते हैं।
आदि पुरुष अजमीढ़ देव,
यशगान तुम्हारा गाते हैं।
कृति, रचना, शब्दशिल्प,
बेजोड़ बने सुर लय ताल।
अजमीढ़ देव की कृपा से मिले,
यश,वैभव,उन्नति हर साल।।
कलम कहती है तुम्हे
कलम कहती है तुम्हें प्रेम के दीपक जलाओ।
राग द्वेष सारे मिटा अंधकार को दूर भगाओ।
कलम कहती है तुम्हें
अपनापन अनमोल बांटो सत्य की राहें चलो।
आंधी तूफान जो आए गुलिस्तां में तुम पलों।
नेह की खुशबू फैला दो समां महकाते चलो।
गीत कुछ ऐसे रचो तुम सच के सांचे में ढलो।
कलम कहती है तुम्हें
शब्दों का गजरा सजा काव्य के मोती चुनो।
साहित्य सिरमौर जग में कड़िया ऐसी बुनो।
लेखनी की धार ऐसी दमकती रहे संसार में।
कीर्ति हो व्योम में खुशियां बरसे त्यौहार में।
कलम कहती है तुम्हें
देशहित जज्बा दिखा दो लेखनी की धार हो।
दिग्गज सारे हिल जाए हिम्मत भरा वार हो।
रोशनी की बात हरदम दूर बस अंधकार हो।
नफरतें नहीं यहां बस हर दिलों में प्यार हो।
कलम कहती है तुम्हे
जीण भवानी भंवरा वाली
लाल चुनरिया वाली मैया जीण जगदंबा भवानी।
ऊंचे पर्वत मंदिर सुंदर तेरा ध्यान धरे सुर ज्ञानी।
भंवरा वाली जीण माता रानी चंडी मां भवानी।
सर्व सिद्धियां देने वाली जग जननी कल्याणी।
जोत अखंड नैवेद्य आरती बाजे नौबत बाजा।
खीर चूरमा भरे भंडारा भवानी भोग लगा जा।
शक्ति दायिनी सिद्धि दायनी वरदानी महारानी।
दानव दलनी संकट हरनी सौम्य रुप हे भवानी।
सिंह चड़ी जय मां दुर्गा चक्र त्रिशूल कर में धारे।
तेरी शरण जो भी आया करती माता वारे न्यारे।
भक्तों की रक्षक महाशक्ति दिव्य अलौकिक माया।
चैत्र आसोज लगे मेला भारी जन जन दर्शन पाया।
जात जड़ूला मैया दर पे तेरे भक्तों का लगता डेरा।
तेरी शरण का लिया आसरा संकट सब हरना मेरा।
रणविजय दिलाने वाली खुशियां बरसाने वाली।
सजा दरबार निराला जीण भवानी भंवरा वाली।
उठो राम जी धनुष बाण ले
उठो राम जी धनुष बाण ले रणभूमि में आओ।
दशानन दंभ भर रहा रावण घट घट से मिटाओ।
कलयुग ने अब पांव पसारे कलुष हुई मोह माया।
घर घर में अब रावण बैठा सुख चैन सारा खाया।
कहीं मंथरा कान भर रही खींच रही लक्ष्मण रेखा।
भाई-भाई के झगड़े होते कोर्ट में हो लेखा-जोखा।
सूर्पनखा अब स्वप्न सुंदरी मायाजाल रचती भारी।
ढोंगी बाबाओं ने हद करके मर्यादा ढहा दी सारी।
दल के दल स्वार्थ में खोए अंधकार का राज हुआ।
रघुनंदन कटक अब सुना माया भ्रमित काज हुआ।
पूज्य गुरु मात पिता का होता बड़ा निरादर अब।
ढोंगी पाखंडियों का मंचों पर होता आदर अब।
कर रहा अट्टहास रावण दसों दिशाएं कांप रही।
धर्म ध्वजा श्रीराम संभालो गौ गंगा विलाप रही।
आओ राम अंत कर दो मन विकार मिटे सारा।
रामनाम धुन से होता है घट घट में उजियारा।
जगदंबा जगदंबा
जगदंबा जगदंबा, आओ महर करो मां अंबा।
तेरी शरण में तेरे चरण में, आया मां जगदम्बा।
जगदंबा जगदंबा
यश वैभव शक्ति दायनी, बल बुद्धि विधाता।
सिंह सवार चंडी भवानी, सब सिद्धियों की दाता।
रणचंडी सिद्धी दात्री, महाकाली गौरी अंबा।
ऊंचे पर्वत मंदिर मैया, ज्वाला जोत अचंभा।
जगदंबा जगदंबा
सात सुरों की मात शारदे, तुम शब्दों की दाता।
विमल मति बुद्धि दायनी, शक्ति स्वरूपा माता।
सबकी झोली भरने वाली, जग जननी जगदंबा।
सती साध्वी सुरसुंदरी, विष्णु प्रिया मां अंबा।
जगदंबा जगदंबा
ब्रह्मा वादिनी देवमाता, अनंता भव्या भवानी।
रत्नप्रिया जया दुर्गा, गुण गाते सुर मुनी ज्ञानी।
भक्त वत्सला भद्रकाली, मां मत करो विलंबा।
कालरात्रि काली कराली, संकट हरनी अंबा।
जगदंबा जगदंबा
ब्रह्मचारिणी
ब्रह्मचारिणी बुद्धि विधाता,
बल यश वैभव धारणी।
शक्ति स्वरुपा हे जग जननी,
वरदायिनी दुख निवारिणी।
ब्रह्म स्वरूपा मात भवानी,
कर कमंडल सुंदर साजे।
माला पुस्तक धारणी मैया,
द्वारे ढोल शंख मृदंग बाजे।
त्याग तपस्या मूर्त देवी,
सदाचार सिखलाती है।
ज्योतिर्मय रूप अनुपम,
सुख सरिता बह आती है।
हिमालय सुता शिव प्रिये,
सौम्य स्वरूप मां जगदंबे।
सौभाग्य वैभव सुखदाता,
कृपा करो भवानी मां अंबे।
भावों की फुलझड़ियो में
यूं ही बैठे-बैठे लिखता हृदय में उमड़ते भावों को।
दिल का दर्द कागज पर लिखता मन के घावो को।
मैं कविता की लड़ियों में गीतों की भावन कड़ियों में।
भावों की फुलझड़ियो में रसधार बरसती घड़ियों में।
शब्दों के सुमनहार लिए गुलजार सजाया करता हूं।
काव्य रस से सराबोर मैं फनकार सुनाया करता है।
शब्दों के मोती चुन चुनकर बहार बहाया करता हूं।
गीत गजल छंदों की भाषा बयार मैं गाया करता हूं।
लेखनी की लौ में जगमग दीप सजाता हूं मनमंदिर।
पूजन का नित थाल लिए शारदे मनाया मैं फिर फिर।
काव्य कलश में शब्द सुधा के मोती अगणित झरते।
वीणावादिनी हंस वाहिनी शारदे सुवन झोली भरते।
कलम पुजारी पूजन थाल सजाता शब्द सुमन से।
भावो की सरिता बहती हाल सुनाता हूं कलम से।
ज्ञान का दीप जलाता रहूं गुणगान वरदायिनी गाउं।
लेखनी की जोत जलती रहे घट में उजियारा पाऊं।
कागज कलम हाथ ले नित स्वप्न सजाया करता हूं।
तूफानों से टक्कर लेती शब्द धार चलाया करता हूं।
असल की पहचान
असल की पहचान अनूठी असल मुंह बोलता है।
कसौटी पर कस लो चाहे सच तराजू तोलता है।
खरा सोना तप तपकर भी कुंदन बन चमकता है।
असली हो किरदार जग में हीरा बन चमकता है।
असली की सौरभ महके नकली टिक कहां पाता।
हीरा मुख से ना कहे जौहरी ही कीमत कह जाता।
लाख छुपाए असलियत सच्चाई छुप नहीं सकती।
लाख दबाएं कोई कभी अच्छाई रुक नहीं सकती।
असली हीरा असली मोती सद्गुणों की पूजा होती।
सत्य राह चलने वालों की जय जयकार सदा होती।
जीते जो असल जिंदगी सत्य सादगी मन में धार।
ईश्वर भी मदद करते हैं तूफानों में करते बेड़ा पार।
छल कपट झूठ पाखंड की असलियत खुल जाती।
सच का परचम लहराता है अनीति सारी ढह जाती।
मायाजाल रच रावण ने मायामृग बन मारीच आया।
ढोंगी बना भिखारी रावण सीता जी को हर लाया।
हुई सत्य की जीत राम की दशानन का अंत हुआ।
सच्चे ह्रदय से हरि को पुकारे जग में वही संत हुआ।
यदि मैं शिक्षक होता
यदि मैं शिक्षक होता हाथ में मेरे डंडा होता।
छात्र अनुशासन का मेरे पास हथकंडा होता।
विनय सादगी सदाचार का पाठ पढ़ाता होता।
भूगोल गणित अंग्रेजी व्याख्यान सुनाता होता।
शालीनता की प्रतिमूर्ति शिष्टाचार दिखाता होता।
आचरण ज्ञान गंगा शब्दों की धार बहाता होता।
कक्षा में तीखे तेवर से फिर हो जाता मशहूर मैं।
विद्यालय नियम कायदों से हो जाता भरपूर मै।
बच्चों के भविष्य की होती हाथों में मेरे कमान।
खेलकूद संगीत कला में प्रवीणता पाते नादान।
सर्वांगीण विकास की धारा हृदय लेकर चलता हूं।
संवार सकूं भावी पीढ़ी सोचके घर से निकलता हूं।
विरहन बाट निहारती
विरहन बाट निहारती, पिया गए हैं परदेस।
पतझड़ सा सावन लगे, बिखरे बिखरे केश।
जियरा मोरा डोले, बुझे ना मन की प्यास।
प्रियतम कब आओगे, कब होगी पूरी आस।
ओढ़ चुनरिया गौरी, करती सोलह श्रृंगार।
हाथों में मेहंदी सजी, बिंदिया मस्तक धार।
प्रिय मिलन की बेला, नयन ताकते बाट।
हाथों का चूड़ा कहे, साजन हैं सब ठाठ।
राह निहारे मरवण, नयन सुध बुध खोई।
प्रिय बिन श्रंगार की, कब सराहना होई।
शीघ्र पधारो हे साहिबा, गौरी मन अकुलाय।
सावन हरियाला सनम, कही ना सूखा जाय।
तेरी बंसी की धुन पर
गोकुल में मुरली बजावे कन्हैया नंदकिशोर।
वृंदावन गाय चरावे मदनमोहन माखन चोर।
लीलाधारी तेरी लीला माधव मदन मुरारी।
तू जग करतार कन्हैया गोवर्धन गिरधारी।
पीतांबर सोहे तन पर अधर मुरलिया भावे।
तेरी बंसी की धुन पर राधा जी दौड़ी आवे।
नंदकिशोर यशोदा लाला द्वारिका के नाथ।
चक्र सुदर्शन धारी केशव माधव देना साथ।
सखा सुदामा की गाथा नटवर दुनिया गावे।
जय गिरधर गोपाल भक्त तेरा ध्यान लगावे।
वृंदावन बिहारी लाल मचा हुआ चहुं शोर।
मुरली मनोहर माधव कन्हैया है चितचोर।
गोवर्धनधारी कान्हा नटवरनागर किशोर।
केशव माधव बनवारी नाचे मन का मोर।
गोभक्त गौरक्षक प्यारे कर देते हो वारे न्यारे।
सच्चे मनसे जो पुकारे दौड़े आते प्रभु हमारे।
शब्दाक्षर की स्वर्ण सुशोभित
शब्दाक्षर से अल्फाजों में जोश जगाया करता हूं।
शब्द सुमन हाथ ले पूजन थाल सजाया करता हूं।
मैं कविता की हुंकारों से जगदीप जलाया करता हूं।
अंधकार में उजियारे की किरण दिखाया करता हूं।
शब्दाक्षर की स्वर्ण सुशोभित रीत निभाया करता हूं।
साहित्य की सरिता मधुरम मैं गीत सुनाया करता हूं।
शब्दाक्षर की गरिमा उपमा सम्मान जताया करता हूं।
काव्य कुंभ साहित्य उत्सव बढ़-चढ़ जाया करता हूं।
शारदे साधक सुदर्शन नित परचम लहराया करता हूं।
कविता गीत गज़लो से महफिल महकाया करता हूं।
मैं कलम का बना पुजारी शब्द हार सजाया करता हूं।
वीरों रणधीरों में साहस रण में जोश जगाया करता हूं।
शब्दाक्षर का सजग प्रहरी रसधार बहाया करता हूं।
ध्वज पताका हाथों में ले यश कीर्ति पाया करता हूं।
रवि आलोक विमल जग रोशन हो जाया करता हूं।
आन बान शान से जीता राष्ट्र गौरव गाया करता हूं।
अपनों का साथ
अपनों का साथ मिल जाए, नीलगगन छू जाऊंगा।
मन मुदित आनंद की घड़ियां, फूला नहीं समाऊंगा।
अपनों की महफिल में महके, रिश्तो के पुष्प प्यारे।
सुख की सरिता बहती, रहती हर्षित चलती पतवारें।
अपनेपन का भाव भर दे, मिले अपनों का संसार।
हर काम संभव हो जाए, यश कीर्ति वैभव अपार।
अपनों से ही खुशियां मिलती, अपनों से ही अनुराग।
अपनापन अनमोल जग में, नर जाग सके तो जाग।
दुख दर्द की दवा बन जाती, संकट में जो देते साथ।
मुश्किलों में तैयार खड़े हो, सिर पर हो बड़ों का हाथ।
प्रेम प्यार की सरिता बहती, बरसे मुस्कानों के मोती।
घर आंगन हरा भरा महके, मीठी मीठी सी बातें होती।
सुख समृद्धि के द्वार कई, संपन्नता से झोली भरती।
मिट जाते हैं क्लेश मन से, दुआएं सब संकट हरती।
तीन रंग में सजा तिरंगा
हर घर तिरंगा हो घर घर तिरंगा।
शान है तिरंगा अभिमान तिरंगा।
तीन रंग में सजा तिरंगा मान है।
गर्व हमें ये भारत की पहचान है।
वीरता शौर्य पराक्रम बलिदानी।
वीर शहीदों की रही है निशानी।
खुशहाली का पावन है प्रतीक।
अमन शांति की है गहरी लीक।
उन्नति का रहा है निशान तिरंगा।
प्रगति की हमारी पहचान तिरंगा।
सुख वैभव तिरंगा सम्मान तिरंगा।
राष्ट्र स्वर तिरंगा हो घर घर तिरंगा।
एकता की डोर है सद्भावों की धारा।
हरा भरा लहराए भारत देश हमारा।
क्रांतिकाल आजादी का भान तिरंगा
हम सबका गर्व है स्वाभिमान तिरंगा।
जो लक्ष्मण रेखा तोड़ेगा
पंचवटी में सोने का मृग, देख सिया जी हरसाई।
नंदनवन में चहल मची थी, मायामृग की चतुराई।
बोली राघव स्वर्ण मृग का, शिकार कर प्रभु लाओ।
कनक कुटी की सजा को, स्वर्ण चर्म से सजवाओ।
बोले राम प्राण प्रिए सीते, स्वर्ण मृग जग ना होते।
होनी तो होकर रहती, क्यों राम लखन निर्जन सोते।
मायाजाल रचा रावण ने, खुद रामचंद्र अवतारी नर।
चल पड़े पीछे मृग के तब, बीत चुका था तीन प्रहर।
अंधकार में असुर शक्ति, प्रबल प्रभावी हो जाती।
लक्ष्मण बचाओ प्राण मेरे, पंचवटी में ध्वनि आती।
जाओ लक्ष्मण प्राण प्रिय, रघुनंदन स्वामी मेरे हैं।
भाई की रक्षा करना, कर्तव्य लखन अब तेरे हैं।
मेरी चिंता छोड़ो लखन, स्वामी के प्राण बचाने है।
मेरी आज्ञा को मानो, अब तुमको फर्ज निभाने है।
ईश्वर यह कैसी माया है, रघुवर से कौन टकराएगा।
जो लक्ष्मण रेखा तोड़ेगा, तत्काल भस्म हो जाएगा।
जय हो तेरी गिरधारी
हर दिल में बसे कान्हा, सांवरी मूरत तेरी प्यारी।
दीवाना है ये जग सारा, झूमती ये दुनिया सारी।
जय हो तेरी गिरधारी
पांव में पैंजनिया बाजे, अधर मुरलिया साजे।
गले में वैजयंती माला, पीतांबर तन पर राजे।
सुदर्शन धारी श्री कृष्णा, तेरी लीला है न्यारी।
जय हो तेरी गोविंदा, अर्जी सुनो नाथ हमारी।
जय हो तेरी गिरधारी
राधा के प्यारे मोहन, मीरा के तुम ही घनश्याम।
केशव करो कृपा हम पर, संवारो बिगड़े काम।
नटखट कृष्ण कन्हैया, मन मोहन लीलाधारी।
सुदामा के सखा प्रिय, गोपियों के हो गिरधारी।
जय हो तेरी गिरधारी
यशोदा नंदन प्यारे, जग के तुम ही रखवारे।
माखन चोर तुम्ही कान्हा, तुम ही नंद दुलारे।
गीता ज्ञान के दाता, द्वारिकाधीश बनवारी।
विपद हर लेते हो कान्हा, हे गोवर्धन धारी।
जय हो तेरी गिरधारी
क्रांतिवीर रणभूमि के
चंदन तिलक लगा माथे पे बढ़ चले महावीर जहां।
क्रांतिवीर वो रणभूमि के हाथों में ले शमशीर यहां।
आजादी के दीवानों को शीश चढ़ाना आता था।
वंदे मातरम नारों से आकाश गुंजाना भाता था।
बुलंद हौसलों से बढ़ते वो दुश्मन से लोहा लेते थे।
बलिदानी पथ के राही प्राण न्योछावर कर देते थे।
सरहद के रखवाले भारतमाता के वो प्यारे लाल।
शौर्य पराक्रम वीरता से ऊंचा रखते शूरमां भाल।
ओज भरी हुंकार वीरों की बैरी सेनाएं थर्राती थी।
दुश्मन की छाती फटती हाहाकार मच जाती थी।
रणभेरी बजती रणभूमि महा भयंकर समर होता।
हर हर महादेव का नारा शूरवीर महा प्रबल होता।
माटी का कण कण चंदन वीरों की अमर कहानी है।
अमर सपूत भारत माता के लुटा गये जिंदगानी है।
देशप्रेमी मतवाले रणयोद्धा जो राष्ट्र प्रेम की धारा है।
शत शत वंदन है रणधीरों को जिन्हें तिरंगा प्यारा है।
भीगे भीगे मौसम में
भीगे भीगे मौसम में इन मस्त बहारों में।
दिन के उजालों में हसीं चांद सितारों में।
सावन की पुरवाई मेरे मन को लुभा गई।
दिल ने पुकारा तुझको याद तेरी आ गई।
भीगे भीगे मौसम में
सावन सुहाना आया मस्त बहार आई।
अंबर मेघा छाए रिमझिम फुहार आई।
खिली मन की बगिया पुष्प हजार लाई।
महफ़िल महकी अप्सरा उतरकर आई।
भीगे भीगे मौसम में
तन मन भीगा सारा मन में उमंगें छाई।
सुरीले गीतों की लड़ियां बह धार आई।
पायल की झंकार संगीत सुहाना लाई।
प्रीत बरसने लगी चेहरे पर रौनक छाई।
भीगे भीगे मौसम में
हम शीश नहीं झुकने देंगे
तीरों पर चाहे तीर चले तोप चले या कोई तलवार।
हम नैन नहीं चलने देंगे हम शीश नहीं झुकने देंगे।
गद्दारों को मार भगाओ अमन चैन शांति लाओ।
राष्ट्रभक्ति भाव फैलाओ दीनों को गले लगाओ।
जहर उगलती जो हवाएं वो बयार नहीं बहने देंगे।
राष्ट्रद्रोह चलने वालों को एक पल नहीं रहने देंगे।
फन फैलाए बैठे द्रोही हम हरदम नहीं टिकने देंगे।
शीश कट जाए भले ही हम शीश नहीं झुकने देंगे।
हम अलख जगाते राष्ट्रप्रेम की वंदे मातरम गाते हैं।
भारतमाता के चरणों में वंदन झुक शीश नवाते हैं।
चेतना की मशाल जला अंधकार मिटाया करते हैं।
घट घट हम सब देशप्रेम के भाव जगाया करते हैं।
जहरीले कांटों को राहों में कभी नहीं दिखने देंगे।
भारती के लाल दीवाने हम शीश नहीं झुकने देंगे।
देशप्रेम मतवाले है हम एक प्रलयंकारी ज्वाला है।
सारी दुनिया हिल जाए राणा का अभय भाला हैं।
हम दुश्मन के काले मंसूबे कभी पूरे नहीं होने देंगे।
जनता को वतन आन खून के आंसू नहीं रोने देंगे।
देशभक्ति का जज्बा जन मन से नहीं डिगने देंगे।
आन बान शान वतन हम शीश नहीं झुकने देंगे।
कर कर सोलह श्रृंगार
कर कर सोलह श्रृंगार मनाओ तीज का त्योहार।
उमड़े प्रीत की रसधार सावन आई मधुर फुहार।
बहती मंद मंद बयार चमन भी हो रहा गुलजार।
आंगन सजे घर द्वार आया है झूलों का त्यौहार।
कर कर सोलह श्रृंगार
हाथों में मेहंदी रच गौरी गले में नौलख हार।
बाजूबंद बोरला नथली नखराली है घर नार।
पांवों की पायलिया बाजे घुंघरू की झंकार।
कानों में झूमके सुनाते गोरे मुखड़े की बहार।
कर कर सोलह श्रृंगार
रिमझिम रिमझिम झड़ी बूंदें बरसे पुष्पहार।
हरियाली से गुलशन हुआ दिलों का संसार।
प्रेम भरा सावन बरसता उमड़े हृदय अपार।
तन मन भींगे प्रिये आया तीज का त्योहार।
कर कर सोलह श्रृंगार
वक्त थोड़ा थम जा जरा
खुशियों के बादल लहराए, मन का कोना कोना भरा।
आ रहा मस्त सावन सुहाना, वक्त थोड़ा थम जा जरा।
वक्त थोड़ा थम जा जरा
महक उठी हसीन वादियां, फैल रही अब हरियाली।
रिमझिम रिमझिम झड़ी बरसे, अंबर से बरसे पानी।
ओढ़ ली धरा चुनरिया, चमन लहराए होके हरा भरा।
मस्त पवन ले रहा हिलोरें, झूमा सावन ये मन मयूरा।
वक्त थोड़ा थम जा जरा
अपनों से समां महके, गीतों की लड़ियां लिख पाऊं।
हर दिल में अनुराग जगाता, संगीत सुरीला मैं गांऊ।
प्रेम के मोती बांट लू, खुशियों के दीप जला लूं जरा।
घूम लूं सारी दुनिया, पा लूं मंजिल का ठिकाना जरा।
वक्त थोड़ा थम जा जरा
भावना के बांध को फिर, थाम लूं हंस कर यहां।
महकती वादियां सुंदर, प्यारा लगे ये सारा जहां।
घट के पट खोलूं जरा मैं, देख लूं ये दुनिया जरा।
अंतर्मन की उथल-पुथल में, प्रेम का सागर भरा।
वक्त थोड़ा थम जा जरा
कावड़िया बोल बम बम भोले
गंगाजल से लोटा भरकर, शिव द्वारे चल पड़ होले होले।
कावड़िया बोल बम बम भोले, कावड़िया बोल बम बम भोले।
औघड़ दानी शंकर भोला, महादेव मतवाला।
भस्म रमाए डमरूधारी, गले सर्प की माला।
नटराज का नृत्य निराला, सकल चराचर डोले।
कैलाशपति सदाशिव शंभू, जय जय शंकर भोले।
कावड़िया बोल बम बम भोले
जटा में गंगा चंद्र शोभित, रूण्ड मुण्ड की माला।
बाघाम्बर धारी शिव भोले, ओढ़े मृग की छाला।
त्रिनेत्र त्रिशूलधारी, त्रिभुवन स्वामी हर हर भोले।
सच्चे मन से ध्यान लगा लो, मन की अंखियां खोले।
कावड़िया बोल बम बम भोले
डगर डगर कंकड़ कंकड़, हर हर महादेव शंकर।
पार्वती के प्यारे भोले, नीलकंठ शिव महा भयंकर।
सबकी झोली भर देते शिव, भक्त महाकाल का होले।
सुख का सावन आएगा, भक्त जप ले शिव शंभू भोले।
कावड़िया बोल बम बम भोले
बात कहने का अंदाज खूबसूरत रखें
अधरों पर मुस्कान लिए शुभ कामों का मुहूर्त रखें।
अपनी बात कहने का अंदाज जरा खूबसूरत रखें।
मधुर वाणी मन को भाती अपनापन अनमोल रखें।
मीठे शब्दों की माला दिल का दरवाजा खोल रखे।
हाव भाव भाव मन भावन नयन बरसता नेह रखें।
सत्य सादगी शिष्टाचार धर मनुज सबसे स्नेह रखें।
अभिवादन संबोधन सौम्य मान सम्मान पूर्ण रखें।
शब्दों के अनमोल मोती चुन चुन कर संपूर्ण रखे।
विषय वहीं हो खुली चर्चा सबके मन को भा जाए।
कथन हमारा ऐसा हो जो लब तक बार-बार आए।
समां महकता है वाणी से शब्दों की रसधार बहे।
महफिलें सज जाती प्यारे सुरीली से अंदाज रहे।
कलम दिखा दुनिया को दर्पण
सत्य शील सादगी संस्कार, राष्ट्र हित हो भाव समर्पण।
कलमकार की लेखनी, कलम दिखा दुनिया को दर्पण।
कलम दिखा दुनिया को दर्पण
राजनीति के हथकंडे सब, झूठे वादों की भरमार।
संस्कारों का हनन हो रहा, मर्यादा ढह हुई लाचार।
शिक्षा के मंदिर में होता, केवल धन का ही अर्पण।
पुरखों की सौगात भूल हम, भूल गए सब तर्पण।
कलम दिखा दुनिया को दर्पण
औरों की कविता लेकर कवि, क्यों मंचों पर चढ़ जाते।
साहित्य का ठप्पा लेकर, सम्मानित खुद को करवाते ।
युवाओं को आगे लाते तो, मिलता तुमको भी बड़प्पन।
रचनाकार रचो कुछ ऐसा, बुलंदियां छूए नित सृजन।
कलम दिखा दुनिया को दर्पण
उठा लेखनी सच की राहें, मन ज्ञान दीप जलाओ।
समाज की विसंगतियों पर, काव्य रसधार बहाओ।
ओजस्वी हुंकार भर लो, बोले माटी का कण कण।
आन बान शान वतन की, तन मन धन सब अर्पण।
कलम दिखा दुनिया को दर्पण
गरल समाया हृदय में
गरल समाया है हृदय भीतर, अब सुधारस रहा कहां है।
छल छद्मो की चालें चलती, कहो सुधाकर प्रेम कहां है।
ईर्ष्या द्वेष स्वार्थ ने घेरा मन, अपनापन वो मेल कहां है।
चहक उठता कोना-कोना, बचपन के वो खेल कहां है।
झर झर झरता नेह सलोना, नैनों में अब स्नेह कहां है।
घर आंगन में झड़ी प्रेम की, हृदय बरसता मेह कहां है।
अतिथि का आदर होता, संस्कार भरा वो गेह कहां है।
वज्र बनाया अस्थियों से, दानी दधीचि सी देह कहां है।
मान और मनुहार मानव, दिलों में वो जगह कहां है।
इंतजार मे राहें तकती, प्रीत भरी वो वजह कहां है।
चौपालें पीपल की छायां, दर्द बांटता गांव कहां है।
पक्की दीवारें है सबकी, प्रेम समाया ठांव कहां है।
हंसी खुशी आनंद के पल, भीनी सुबहें शाम कहां है।
इक दूजे पर जान लुटाते, प्यार भरे वो धाम कहां है।
दीप जलाते मन मंदिर में, शबरी के श्रीराम कहां है।
मजदूरी कर पेट भरते, मजदूरों को आराम कहां है।
अंत ही आरंभ है
भोर हुई सुबह का सूरज शाम ढले छिप जाता।
घनघोर अंधेरी रात ढले नया सवेरा फिर आता।
अंत ही आरंभ प्रिय नव सृजन नव प्रभात का।
जब उजाला हो जग में अंधियारा मिटे रात का।
उत्पत्ति विनाश चक्र सृष्टि में फिर चलता रहता।
वृद्धि और विकास क्रम कुदरत में पलता रहता।
जीवन सत्य मृत्यु है फिर किस बात का दंभ है।
बनना बिगड़ना चलता रहता अंत ही आरंभ है।
बचपन बीता आई जवानी बाद बुढ़ापा है तैयार।
भोर बाद दोपहर हुई शाम ढले छाया अंधकार।
रजनी रूप धरे निरंतर भोर का प्रकाश प्रारंभ है।
सूर्यदेव करें आलोक जगत में अंत ही आरंभ है।
नदिया पर्वत पवन घटाएं मस्त बहारें मन को भाए।
हंसी वादियां मन लुभाती कुदरत भी खुद पे इतराए।
जीवन चक्र चलता जाए बीज से तरु का प्रारंभ है।
समंदर समाती सरिताएं कहती अंत ही आरंभ है।
माहौल में घुल नहीं पाया
माहौल में घुल नहीं पाया,
विचारों से खुल नहीं पाया।
कैसे सो जाऊं भला नींद में,
कर्तव्यों को भूल नहीं पाया।
श्वेत मतंग नैनों से ओझल,
व्यर्थ प्रपंच लगते बोझल।
कैसे छल छद्म सह जाऊं,
सच की कसौटी मेरा बल।
स्नेह सुधा रस बरसाया,
अपनों से मिल हरसाया।
स्वार्थ से बचकर मैं रहता,
महफ़िल में अकेला पाया।
दर्द पीर नित सहता आया,
मैं औरों के हित दौड़ा धाया।
जब-जब काम पड़ा खुद का,
कोई मदद को नजर न आया।
वाणी नर का आभूषण
वाणी खूबसूरत आभूषण कंठों का श्रृंगार ।
अधरों से होकर बहती है शब्दों की रसधार।
भावों की धारा होठों से मधुर मिठास घोलती।
वाणी ही नर का आभूषण जुबा मधुर बोलती।
मीठी बोली मन भाती दिल जीत लेती सबका।
हंसी खुशी माहौल हो श्रेष्ठ परिवार घर तबका।
हंसमुख चेहरा प्यारा मधुर मुस्कान हो होठों पे।
खूबसूरती वाणी से खुशी मिलती नहीं नोटों से।
वाणी चरित्र का दर्पण है जीवन का सब सार।
ऐसी वाणी बोलिए नर झलके मधुर व्यवहार।
वाणी दिल को जीत ले है शीतलता की छांव।
हृदय में बसते वही गौरव करता है सारा गांव।
रिश्तो में रस घोल दे वाणी वो सुंदर उपहार।
सुख का सावन बरसे मधुर प्रेम की रसधार।
जबान तले जहर
मृदुभाषी मिलनसार भी जानता सारा शहर है।
विचारों में विष घोल रखा जबान तले जहर है।
माना मधु वाणी बोले जब महफिल में आते हैं।
तीखे तीर दिल तक लगते तिरछे बाण चलाते हैं।
औरों से हंस बदलाते तेवर पल में बदल जाते हैं
जाने क्या बिगाड़ा है हमने जहर उगलते जाते हैं।
अपनेपन का ढोंग रचा वो चालें नई चलाते हैं।
सभ्य सादगी दिखलाकर भीतर से घात लगते हैं।
कभी-कभी फन फैलाए विषधर वो बन जाते हैं।
क्या चलता है अंतर्मन में समझ नहीं हम पाते हैं।
पलकों की छांव तले
पलकों की छांव तले है नाजुक सा दिल ये मेरा।
धड़कनों का स्पंदन मधुर अहसास कराता तेरा।
ये झील सी आंखें मुझको पल पल पास बुलाती।
जाने कैसा जादू भरा है तू मुझको दिल से भाती ।
कारे कजरारे नैना तेरे घनघोर घटा बनके बरसे।
पलकों के साए में भी सावन क्यों प्यासा तरसे।
प्रीत भरी ये आंखें मुझको बार-बार बुलाती है।
झुकी झुकी ये नजरे तेरी जादू नया चलाती है।
इन नैनों में इन पलकों में सपनों का संसार पले।
कितने ख्वाब सुनहरे जाने भावो का अंबार चले।
मदहोशी की छाई रहती है पलकों की छांव तले।
खिला-खिला सा चेहरा मन में कितने ख्वाब पले।
खुशियां बांटने से बढ़ती है
चेहरे पर तब रौनक छा जाए,
काम किसी के हम आ जाए।
खुशियां चार गुनी हो जाती,
खुशी बांट मन प्रसन्न हो जाए।
देख किसी का खिलता चेहरा,
थोड़ा मंद मंद सा हम मुस्काए।
खुश रखे सबको खुशियों बांटे,
खुशी बांटे तो यह बढ़ती जाए।
हंस हंसकर प्यारे मिलो सबसे,
हंस कर सबसे मधुर बात करो।
प्रेम के अनमोल मोती लुटाकर,
जग में खुशियों से झोली भरो।
काव्य रस कलश कविता
भावो की अभिव्यक्ति है वाणी का उपहार है।
कलमकार की लेखनी कविता की फुहार है।
शब्दों की जयमाला गीतों की छटा बहार है।
सरिता बहती सी मनो भावों की रसधार है।
चेतना की ज्योति घट घट उमड़ता प्यार है।
दिलों तक दस्तक देती कविता सदाबहार है।
फूलों की खुशबू सी खुशियों का अंबार है।
महक उठती महफिलें गुलशन गुलज़ार है।
निर्बल की आवाज भी करूण की पुकार है।
ओज भरी महाशक्ति भी मंचों का श्रृंगार है।
धड़कनों का गीत सुंदर जीवन का सार है।
काव्य रस कलश भरा सुधा का भंडार है।
आनंद की अनुभूति सृजन का आधार है।
शब्दों के मोती दमकते विधाएं हजार है।
बोल सुरीले प्यारे जब भी गाता फनकार है।
झूम उठे साज सारे बजे वीणा की झंकार है।
सावन बरसता काव्य मोतियों की कतार है।
उर बहता निर्झर झरना लेखनी की धार है।
हम सब एक कश्ती के मुसाफिर
दुनिया के इस भवसागर में,
जीवन नैया में होकर सवार।
सब एक कश्ती के मुसाफिर,
हम सबको जाना है उस पार।
बंधी हुई है सांसों की डोर,
सिंधु का नहीं दिखता छोर।
मिल जाएगा जहां ठिकाना,
बीती शामें हुई कितनी भोर।
कुछ पलों का संग साथ है,
डोर बस ईश्वर के हाथ है।
हम कठपूतली वो बाजीगर,
आए बुलावा दिन हो रात है।
मुसाफिर को चलते जाना,
जग सराय है एक ठिकाना।
दुनिया छोड़ चले फिर जाना,
अब ना चले यहां कोई बहाना।
चार दिन की है ये जिंदगानी,
यह दुनिया बस आनी जानी।
किरदार हमारा ऐसा हो जाए,
हम सबको भूमिका निभानी।
चले गए वो दुनिया से,
लुटाकर मोती प्यार भरे।
सांसों की सरगम कहती,
आओ इक दूजे से प्रेम करें।
काम किसी के आते
रस्ता बतलाया था तुमको सही राह चलते जाते।
जीवन चंद सांसों का तुम काम किसी के आते।
काम किसी के आते
मद लोभ मोह के चक्कर में मंझधार में अटक गए।
सत्य सादगी स्वाभिमान तज राही क्यों भटक गए।
जीवन में आनंद भरा है तुम बैठ प्रेम से बतलाते।
दीन-दुखी निर्बल की सेवा हाथों से भी कर पाते।
काम किसी के आते
मृगतृष्णा के पीछे भागे चकाचौंध के कायल हो।
स्वार्थ में अंधे होकर क्यों धन के पीछे घायल हो।
वक्त बदलता मौसम बदले थोड़ा गर बदल जाते।
अपनापन अनमोल जरा सा जग में प्यार लुटाते।
काम किसी के आते
खुशियों के बादल छाए प्रेम भरा सावन बरसाए।
मीठे बोल लगे सुहावने चेहरे पर रौनक छा जाए।
आशीषो से झोली भर मानवता का धर्म निभाते।
भावों का सागर उमड़े शब्द सुमन थाल सजाते।
काम किसी के आते
मुझको ले डूबी कविता (2)
तुलसी डूबा रामचरित में मीरा मोहन दीवानी।
मोबाइल में दुनिया डूबी पढ़े लिखे सभ्य ज्ञानी।
डूब गया वो भर जाता है कभी नहीं रहता रीता।
श्याम रंग में राधा डूबी राम रंग में माता सीता।
मुझको ले डूबी कविता
आंधियों में कश्तियां गर्व में हस्तियां डूब जाती है।
डूब डुबकर ही कलम रोशनी का दीप जलाती है।
परिवर्तन सृष्टि का नियम कहती है ये पावन गीता।
परहित सेवा में जो डूबा सच्चे मन से दिल जीता।
मुझको ले डूबी कविता
कोई जप में कोई तप में कोई ध्यान में है डूबा।
कोई धन में कोई मद में कोई ज्ञान में भर डूबा।
गहराई में जो उतरा मोती माणक उसको मिलता।
हरि भजन में जो डूबा सुखी सुरभित हो खिलता।
मुझको ले डूबी कविता
मुझको ले डूबी कविता (1)
भावों में बहता रहता हूं, मन की पीर दर्द कहता हूं।
शब्दों की माला बुनता हूं, प्रीत भरे शब्द चुनता हूं।
काव्य कलश सुधारस बरसे, अमृत धारा रस पीता।
मनमौजी मतवाला फिरता, मुझको ले डूबी कविता।
मुझको ले डूबी कविता
लिख लेता हूं गीत गजल, लेखनी की धार लिए।
काव्य के मोती सजाता, मधुर मधुर रसधार लिए।
साहित्य सेवा में तत्पर, स्वाभिमान भरकर जीता।
एक अकेला काफिला हूं, मुझको ले डूबी कविता।
मुझको ले डूबी कविता
महक जाए समां सारा, दिल से दिल के है तार जुड़े।
महफिले रोशन हो गई, फिर कल्पनाओं में हम उड़े।
कागज कलम के दम पर ही, कलमकार नित जीता।
शब्द सुमन थाल सजा लूं, हंस वाहिनीं शरण रहता।
मुझको ले डूबी कविता
पापा के जाने के बाद
वीरानी सी छाई रहती दिल को सुकून नहीं मिलता।
पापा के जाने के बाद अब कोई हुकुम नहीं चलता।
घर आंगन चौखट सूने शीतल छांव कहां से लाऊं।
उंगली थामे चलना सिखाया वो पांव कहां से लाऊं।
छत्रछाया सर पर रहती ठंडी पीपल की छांव सी।
प्रेम का झरना बहता था मस्त पुरवाई थी गांव की।
चिंता फिकर छोड़ फिरता मनमौजी मतवाला सा।
संघर्षों में रहकर भी खुशियों से हमको पाला था।
जिम्मेदारियां सर पर लादे रोज काम पर जाता हूं।
पापा के जाने के बाद सुख चैन कभी नहीं पाता हूं।
यादों में रह-रहकर चेहरा आ जाता है याद मुझे।
संस्कार शिक्षा मर्यादा आशीष करें आबाद मुझे।
पूज्य पिता का स्नेह आशीष बगिया को महकाएगा।
घर आंगन फुलवारी में खुशियों के पुष्प खिलाएगा।
सिंधु मिलन चली नदियां
लहराती बलखाती आई।
मंद मंद मुस्कुराती आई।
सरिताएं आतुर सी बहती।
जलधाराएं चली पुरवाई।
कल कल मीठा राग सुनाती।
नदी पर्वतों से होकर जाती।
मैदाने में जब उतरे सरिताएं।
खलिहानों को तर कर जाती।
इठलाती सी आई जलधारा।
हर्षित मगन हुआ किनारा।
नदियों ने स्वर संगीत सुनाया।
मन को मोहित करता प्यारा।
शीतल नीर अविरल बहता।
देखो कल कल बहती धारा।
सिंधु मिलन को चली नदियां।
दृश्य मनोरम लगता है प्यारा।
खिल जाता फूलों सा दिल
शूल की हर चुभन से जागी चेतना।
दर्द जब दिल के उस पार हो गया।
खिल जाता फूलों सा दिल ये मेरा।
नाजुक सा दिल तो प्यार हो गया।
कांटों में रहकर भी मुस्कुराया सदा।
खुशबूओं से चमन महकाया सदा।
शूल चुभते रहे दर्दे दिल सहता रहा।
धड़कनों ने दर्दे संगीत सुनाया सदा।
उनके आने से आहत हुई थी कहीं।
मन के आंगन को भी सजाया सदा।
आंधियों ने हमें रूलाकर रख दिया।
पीर सहकर प्रीत रस बरसाया सदा।
नियति के खिलौने हम
नियति के खिलौने हम किरदार निभाना है।
कब पर्दा गिर जाए अभिनय कर जाना है।
यह रंगमंच दुनिया का परिधान बदलते हैं।
नियति के नियम यहां सदियों से चलते हैं।
कभी बोल बदलते हैं कभी रोल बदलते हैं।
मूखौटो पर मूखौटे धारे कई रोज बदलते हैं।
नियति खेल गजब क्या-क्या रंग दिखाती।
सुख का सिंधु उमड़े दुखों का पहाड़ लाती।
सांसों की सरगम है दो दिन का ठिकाना।
डोर उसके हाथों में फिर लौट वही जाना।
नियति ईश्वर माया जहां सारा खेल रचाया।
वही जीवन देने वाला वही रक्षक बन आया।
लक्ष्मण रेखा
टूट रही अब लक्ष्मण रेखा, मर्यादाएं ढहती सारी।
भेष बदलकर रावण बैठे, दहलीज लांघ रही नारी।
हद पार कर फैशन फैली, संस्कारों का हनन हुआ।
डूब रही है संस्कृति हमारी, सभ्यता का पतन हुआ।
अलबेला जोगी आया, झोपड़ी द्वारे अलख जगाई।
ज्यों ही रावण कदम बढ़ाता, पावन लपटे घिर आई।
लक्ष्मण रेखा भीतर माता, ताजा फल लेकर आई।
साधु भूखा ना जाए द्वार से, रक्षक जिसके रघुराई।
रघुकुल धर्म आन बान को, माता ने कदम बढ़ाया है।
मायावी मायाजाल रचकर, सीताहरण कर पाया है।
जब-जब लक्ष्मण रेखा टूटी, रावण की लंका दहकी है।
विनाश के बादल मंडराए, श्रीराम की बगिया महकी है।
मानवीय मूल्यों को जानो ,संस्कारों को महकाओ।
आदर्शों की लक्ष्मण रेखा, तोड़कर ना तुम जाओ।
मंचों का किरदार हूं
कलम का पुजारी, मनमौजी फनकार हूं।
साधक हूं शारदे का, वाणी की झंकार हूं।
शब्दों की माला बुनता, कोई कलमकार हूं।
गीतों की लड़ियों में, सुर छेड़ती सितार हूं।
कविता के बोल मीठे, बहती सी रसधार हूं।
आशाओं का दीपक हूं, ओज भरी हुंकार हूं।
चेतना की अलख जगे, कलम का सिपाही हूं।
मनमानस छाये कविता, लेखनी की स्याही हूं।
दिलों तक दस्तक देती, वो भावों की गहराई हूं।
महक उठता मन का कोना, मधुर सी पुरवाई हूं।
शब्दों का गुलदस्ता हूं, प्यारे गीतो की बहार हूं।
काव्य छलकता कलश सुधारस की फुहार हूं।
मनमौजी मतवाला सा, कोई सृजनकार हूं।
मन को छू जाए, वो ठंडी बहती सी बयार हूं।
जागरण की ज्योत जलाऊं, कोई रचनाकार हूं।
दुनिया को दर्पण दिखाता, मंचों का किरदार हूं।
जिंदगी की किताब में
जिंदगी की किताब में भरा प्यार का दुलार है।
सुख दुख धूप छांव सा अनुभवों का सार है।
हिम्मत हौसला श्रद्धा भक्ति आस्था विश्वास है।
ठोकरो की सीख है महकता हुआ मधुमास है।
प्रीत का बरसता सा सावन पतझड़ बहार है।
जीवन के रंग बदलते खुशियों का अंबार है।
जंग भी है जीत भी दुनिया की हर रीत भी।
संघर्षों की परिभाषा संबल है मन मीत भी।
सपने सुहाने बसे गीतों के सुरीले तराने है।
जीवन की धारा में प्यार भरे अफसाने है।
उमंगों की लहरें उठती भावों का सागर है।
बाधाएं मुश्किलें हैं आशाओं का भी घर है।
त्योहारों की रौनक दीपों की मस्त बहार है।
रंगों की छटा मनभावन अपनों का प्यार है।
साथ निभाए वही मीत है
जीवन की यही रीत है, साथ निभाए वही मीत है।
नैनों से नेह बरसे, दिल से दिल की यही प्रीत है।
साथ निभाए वही मीत है
जीवन पथ पर संग चले, सुख-दुख में साथी हो।
हर आंधी तूफानों में, प्रेम पाले दीपक बाती सो।
डगर डगर पे गुनगुनाते जाए, प्यार भरा गीत है।
जिंदगी की डगर सुहानी, धड़कने सुर संगीत है।
साथ निभाए वही मीत है
नैनों की भाषा जाने, दिल की धड़कनें पहचाने।
अधरो पर आने से पहले, शब्दों का संसार जाने।
संघर्षों में संबल हो, मिल जाती हर बार जीत है।
राहों में बढ़ते रहना, पथिक पथ की यही रीत है।
साथ निभाए वही मीत है
हौसलों की ढाल बन, हिम्मत हमको दे अपार।
हर मुश्किल बाधाओं में, प्रेरणा का हो भंडार।
बुलंदियों तक पहुंचाए, सुनहरा कर दे अतीत है।
खुशियों की रसधार बहा दे, संग चले मनमीत है।
साथ निभाए वही मीत है
जख्म कहीं नासूर ना बन जाए
मन की पीर कहीं चूर ना कर जाए।
दर्दे जख्म कहीं नासूर ना बन जाए।
कह दो मन की बातें गांठे पड़ जाएगी।
कर देगी बवाल बात जो अड़ जाएगी।
व्यथा व्यर्थ कर देगी हर सुख और चैन।
घुटन भरा माहौल मन तब होगा बेचैन।
दिल का दर्द सुनाने से हल्का हो जाए।
प्यार भरे दो बोल मीठे मरहम हो जाए।
खुली हवा में आकर देखो चैन आ जाए।
मंद मंद मुस्कुरा कर देखो रैन भा जाए।
अंतर्मन की ये उथल-पुथल दूर हो जाए।
दबी हुई पीड़ा कही बढ़ नासूर हो जाए।
पीपल की ठंडी छांव में
बैठकर थोड़ा सुस्ता लो, पीपल की ठंडी छांव में।
बहती मधुर सी पुरवाई, आकर देखो मेरे गांव में।
दूर-दूर से तोते आते, डाल-डाल पर वो गीत गाते।
मोर नाचता मन को भाता, राहगीर उधर से जाते।
तपस्वी सा अचल खड़ा, लोग कहते बहुत बड़ा है।
पंछियों का आश्रय स्थल, तूफानों से खूब लड़ा है।
सुकून मिल जाता यहां, पीपल की ठंडी छांव में।
चौपालें रोज चलती यहां पे, हरे भरे मेरे गांव में।
वो चिड़िया का चहकना, पखेरू बैठते हैं डाल पे।
वो बच्चों का खेलना, रौनक रहती नन्हे गाल पे।
पीपल बड़े प्यार से, आसरा जहां सबको देता है।
सुख दुख की कहानी सारी, मौन रह सुन लेता है।
गर्मी से व्याकुल हो, ठौर ठिकाना नजर ना आए।
पीपल का पेड़ अडिग, हमें बहारों से पास बुलाए।
पांच साल बाद रौनक
आए आज गली में मेरे जब हाथ जोड़ते नेता।
श्वेत वस्त्र छवि मनमोहक पूरे लगते अभिनेता।
मैं प्रत्याशी खड़ा हुआ हूं वोट अमूल्य दे देना।
बहां दूंगा विकास की गंगा वोटर देख लेना।
लोकतंत्र में लोकहित जनादेश बड़ा जरूरी।
सत्ता सुख पाने को नेता शक्ति लगा दे पूरी।
पांच साल बाद यूं रौनक सड़कों पर आई।
शतरंजी मोहरों की देखो चुनावी रंगत छाई।
जनहित में जनता को भी वोट डालना होता।
चुनावी दंगल में उतरे हैं भांति भांति के नेता।
चुनावी समर का देखो शंखनाद हुआ भारी।
सियासी पारा गर्म हुआ चली चुनावी तैयारी।
राजनीति का बाजार सजा कुर्सी की चाहत में।
रणभेरी बिगुल बज रहा है वोटो की आहट में।
शीतल जल सा मन मेरा
शीतल जल सा तर हो जाऊं बहती हुई बयार सा।
झोंका मस्त पवन बन जाऊं मांझी की पतवार का।
शीतल जल सा शिव चरणों में वारि-वारि जाऊं।
श्रद्धा भक्ति भाव गीत की ज्योत बनूं जल जाऊं।
शीतल जल सा मन मेरा गंगा धारा बन जाए।
प्रीत के छेड़े तराने ये दिल दीवाना बन गाए।
वाणी की शीतलता से रिश्तों को महकाता जाऊं।
गीतों गजलो छंदों में प्यारे शब्दों के फूल खिलाऊं।
मेरे होठों पर मुस्काने हो हंसी तेरे लब पे पाऊं।
रौनक आ जाए चेहरे पे मौसम ऐसा बन जाऊं।
मृदुल विचारों का संगम मुस्कानों के मोती बांटू।
मैं बनजारा मनमौजी बन पल सुहाने से छांटू।
हंसी खुशी के प्रीत तराने गाऊं गलियों मैदाने में।
मस्त बहारें नगमे सुनाऊं गीतों गजलों गानों में।
ठंडी ठंडी मस्त हवाएं छूकर जाए तन मन को।
बन जाए रसधार कविता गुंजे व्योम गगन वो।
ओ मैया शेरांवाली
कुछ भी छुपा नहीं है माता हाल मेरा तू जाने।
तु शक्ति की दाता अंबे, आजा कष्ट मिटाने।
ओ मैया शेरांवाली
अपनों में हुआ अकेला, भक्त तेरा अलबेला।
झोली मेरी भर दे माता दरबार सजा है मेला।
अष्ट भुजाओं वाली सुन ले, लाल चुनरिया धारी।
आठों याम ध्यान धरूं, आओ करके सिंह सवारी।
ओ मैया शेरांवाली
हाथों में त्रिशूल विराजे, हे शक्ति स्वरूपा माता।
विद्या बुद्धि यश दाता, हम सबकी भाग्य विधाता।
बल वैभव भंडार भरे, दिव्य अलौकिक वरदानी।
तेरा ध्यान धरे निशदिन, मां ऋषि मुनि नर ग्यानी।
ओ मैया शेरांवाली
शंख चक्र त्रिशूल हाथ ले, अभय दान वर देती।
भक्तों की प्रतिपाली मैया, दुखड़े सारे हर लेती।
तेरी शरण में सुख की गंगा, मन की पीर तू जाने।
सुंदर सजा दरबार निराला, मां भाए भजन सुहाने।
ओ मैया शेरांवाली
दुनिया के मेले में हर शख्स अकेला
अकेले ही चलना बंदे दुनिया का झमेला है।
दुनिया के मेले में यहां हर शख्स अकेला है।
आंधी और तूफानों से बाधाओं से लड़ना है।
संघर्षों से लोहा लेकर बुलंदियों पर चढ़ता है।
हिम्मत हौसला जुटा लो धीरज भी धरना है।
रंग बदलती दुनिया में संभल कर चलना है।
मुश्किलों भरा सफर है हर हाल में ढलना है।
रोशन हो जाए जमाना दीपक बन जलना है।
दो दिन की जिंदगानी चंद सांसों का रेला है।
दुनिया के मेले में यहां हर शख्स अकेला है।
प्यार के मोती लूटा लो संग ना जाए धेला है।
कारवां जुड़ता जाए जहां का हसीन मेला है।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )
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