Kathin Parishram
Kathin Parishram

कठिन परिश्रम

( Kathin parishram ) 

 

जो बीत गया दौर , वो लौट कर वापस नही आएगा ।
वो दौर नहीं फिर आएगा, जो दौड़ कर वर्दी पाएगा ।।

वो गया जमाना पीछे बहुत , जो देखेगा सिर्फ पछताएगा।
कल नही रुका किसी से , आज को कैसे रोक पाएगा ।।

अतीत को देख देख कर रोने वाले ।
तेरा हरसाने वाला वक्त ऐसे कभी नहीं आएगा ।।

कलम उठा कर विन स्याही की , कुछ भी न लिख पाएगा ।
कोशिश किए बगैर तू कैसे इतिहास लिख पाएगा ।।

सपनों में देख देख अमुख माया और काया को ।
भरी जवानी में कभी सफल नहीं हो पाएगा ।।

मस्तिष्क से लगा कर अपने कर कमलों को ।
लग्न लगा तनिक ईश्वर की , थोड़ा तू गुणगान कर ।।

उठा कलम को और मंजिल का ध्यान कर ।
आने वाली पीड़ा को कुछ सहन और गुमनाम कर ।।

तूफानों को हस हस कर जो पार कर जाएगा ।
मुश्किलों को लगा गले से , मंजिल वही तो पाएगा ।।
मुश्किलों…. , मंजिल वही तो पाएगा….!!

 

कवि: सुनील दत्त

कृषि स्नातक प्रथम वर्ष
अमर सिंह महाविद्यालय लखावटी
जनपद बुलन्दशहर ( उत्तर प्रदेश )

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