अधर में आदमी | Kavita adhar mein aadmi
अधर में आदमी
( Adhar mein aadmi )
अधर आदमी लटक रहा नीचे विषधर फैले हैं।
भगवान रखवाला सबका जीवन के झमेले हैं।
जो दिग्गज है जोर उनका वही डोर हिलाते हैं।
जो कमजोर पड़ा वक्त पे धराशाई हो जाते हैं।
महंगाई ने कमर तोड़ दी भागमभाग जिंदगी सारी।
भ्रष्टाचार ने फन फैलाया रिश्वतखोरी बड़ी बीमारी।
जहरीले नागो का डेरा विषेले फन फैलाए बैठे हैं।
इधर कुआं उधर खाई अकड़ में अपनी ऐंठे हैं।
आज भंवर में अटकी नैया मझधार में डूब रही।
संघर्षों में तूफां सहते जनता मानवता भूल रही।
हे जग के करतार करो कुछ आओ बेड़ा पार करो।
मुश्किलों ने आकर घेरा हे ईश्वर अब उद्धार करो।
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )