अरुणोदय काल | Kavita Arunoday Kaal
अरुणोदय काल
( Arunoday Kaal )
निगल रहा सूरज अंधियारी,
अहा भोर कितनी प्यारी,
उभरा सूर्य अक्स सरोवर,
छिटक गईं किरणें पानी पर,
अरुणोदय का काल सुहाए,
निखरी छटा प्रकृति की भाए,
खुली ऑख अंगड़ाई संग,
शुरू हुई जीवन की जंग,
भानू महायोग है लाया,
किरणों ने सब रोग भगाया,
नित प्रभात की किरणें सेंक,
नई दृष्टि से जीवन देख,
पड़ी दूब मे ओस रुपहली,
चमके पाकर किरणें पहली
ज्यों ज्यों सूरज ताप बढ़ाए,
गर्मी उसकी अंग जलाए।
रचना: आभा गुप्ता
इंदौर (म.प्र.)