Kavita bade log

बड़े लोग | Kavita bade log

बड़े लोग

( Bade log )

 

मैं बहुत बड़ी कवियत्री हूँ
ऐसा उसने मुझसे कहा
एक दिन कवि सम्मेलन में
मुझे भी साथ ले चलो कहां
बहुत बड़ा कवि सम्मेलन है
ऐसा उसने प्रत्युत्तर में कहा
वहां बहुत बड़े बड़े आते हैं
छोटे लोगों की वहाँ पूछ नहीं
लिखती तो मैं भी थी थोड़ा
शायद जिस से पूछा था उससे
पहले लिखना शुरू किया था
पर प्रदर्शित कर ना पाई थी
सोचा मन छोटा कर लिया
अंतर्मन ने फिर मुझसे कहा
यह छोटा बड़ा क्या होता है
जब जागो तब सवेरा होता है
मैं बड़ी ना सही छोटी ही सही
अपने मन की बात लिखूंगी
कभी ना कभी कोई तो पड़ेगा
अच्छा ना सही बुरा तो कहेगा
फिर शुरू हो गई लेखन यात्रा
धीरे धीरे कदम दर कदम
सुकून मैंने बड़ा नहीं लिखा
सब कुछ छोटो पर लिखा
धन्य है वह बड़ों की सभा
जहां प्रारंभ करने वालों को
नहीं मिलती कोई जगह
टूटा फूटा जो मैंने लिखा
पतिदेव के प्रोत्साहन से
शुरू हो गई , लेखन विधा
ज्ञान कविता का है नहीं
मुझको कुछ भी जरा
ऐसा हंसकर इन्होंने कहा
बस बता सकूंगा अच्छा बुरा
लिखा मैंने फिर पूछा सदा
सुनकर बताया कसर है जरा
शब्दों को फिर से संजोया गया
फिर मिले कुछ मुझे सज्जन
आने का उन्होंने न्योता दिया
कदम रखने को स्थान दिया
श्रोता पाठकों ने साथ दिया
कर रही हूँ अब मे सब को
हौसला अफजाई के लिए
आप सभी बंधुओं का
आभार धन्यवाद शुक्रिया

❣️

डॉ प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार
टीकमगढ़ ( मध्य प्रदेश )

यह भी पढ़ें :-

मौन | Laghu katha maun

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *