बनना है सेना का जवान
( Banna hai sena ka jawan )
जन्म हुआ था जब मेरा इस धरती पर,
खुशियाॅं नही थी परिवार के चेहरों पर।
लेकिन ख़ुश था यह सारा प्यारा जहां,
ये धरती अंबर प्रकृति और गगन यहां।।
ख़ुशी थी मेंरे माॅं एवं बापू के चेहरे पर,
लेकिन झलकी न ख़ुशी दादू दादी पर।
फिर भी अहसान ईश्वर का हमनें माना,
थी बेटी लेकिन ये लक्ष्य मेंने भी ठाना।।
मुझको नहीं चाहिए अब ऐसा परिवार,
नही करना बड़ी होकर सोलह श्रृंगार।
क्यों कि हमें बनना है सेना का जवान,
जिससे प्यार करता है ये सारा जहान।।
नही पहनना मुझे कगंना और पायल,
जिसकी वजह से दिल हुआ है घायल।
अब रचना है मुझे झाॅंसी सा इतिहास,
करना है मुझको अब यह एक प्रयास।।
सेना में लड़कें एवं लड़की होते समान,
देनी पड़ी देश के खातिर दे दूंगी जान।
अपनों की नहीं वतन की बनूंगी शान,
देशों में यही देश है भारत एक महान।।
रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )