बेजार | Kavita Bejaar

बेजार

( Bejaar )

पढ़ लिखकर अब क्या करे, होना है बेजार।
सौरभ डिग्री, नौकरी, बिकती जब बाजार।।

अच्छा खासा आदमी, कागज़ पर विकलांग।
धर्म कर्म ईमान का, ये कैसा है स्वांग।।

हुई लापता नेकियां, चला धर्म वनवास।
कहे भले को क्यों भला, मरे सभी अहसास।।

गिरगिट निज अस्तित्व को, लेकर रहा उदास।
रंग बदलने का तभी, करता है अभ्यास।।

समझाइश कब मानते, बिगड़े होश हवास।
बचकानी सब गलतियां, भुगत रहा इतिहास।।

Dr. Satywan  Saurabh

डॉo सत्यवान सौरभ

कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट,
333, परी वाटिका, कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी,
हरियाणा

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