सुबह | Kavita Subah
सुबह
( Subah )
अंधकार से उत्पन्न हुई एक किरण
आकाश की गहराई से आई है।
शिद्दत से प्रयास जारी रखकर,
आशा की रोशनी संग मुसकाई है ।।
ओस के सुखद स्पर्श से लबरेज
पंछियों के कलरव सी मन को भाई है ।।
सुबह की मंद मंद चल रही हवा
पी के देस की महक ले आई है ।।
कल की थकान को अलविदा कहती
नई उमंग से फिर जोश भर लाई है।।
आज के लिए उनींदीं सी रूहों को जगाती
नई उम्मीदों की डोर बांध लाई है ।।
ऊंचाईयां नापते हैं जो उनके लिए आकाश कहां चुनौती है।
आसमान से धरती तक नज़रें उसने बिछाई हैं।
सुकून को नहीं तनाव कोई है, शैतान को भिड़ने का है शौक।
कांटों की चुभन से संघर्ष करे जो उसने गुलाबों की क्यारी लगाई है।
चढ़ते सूरज को सलाम मिलते हैं, इसमें कोई शुबा नहीं।
हर कदम प्रयास और उत्साह ने ही कर्म की विजय पताका लहराई है।
जीने के सबक बिखरे हैं जीवन के हर कदम पर। तैयार हों जो हर जंग के लिए तो ये भी इक सिखलाई है।
शिखा खुराना