Kavita Bhookh aur Bhagwan
Kavita Bhookh aur Bhagwan

भूख और भगवान

( Bhookh aur Bhagwan )

 

भूख और भगवान में,
कौन बड़ा?
कौन छोटा ?
छिड़ी जंग है।

भूख है कि,
मिटने में नहीं आती ,
बार-बार पेट,
भरना पड़ता है ।

एक बार भूख लगने पर,
खाने के बाद भी,
फिर बार बार,
खाना पड़ता है।

भगवान की कथा,
सुनाने वाले भी,
पेट की भूख शांत कर,
कथा सुनने जाते हैं।

उनके लिए भी,
भगवान नहीं बल्कि,
पेट की भूख ,
बड़ी होती है।

भूख सबको लगती है ,
क्या आस्तिक ,
क्या नास्तिक ,
क्या अमीर,
क्या गरीब,
भगवान का नाम भी,
भूख मिटने पर लेते हैं ।

कहावत है कि ,
भूखे भजन ना होई गोपाला,
ले लो अपनी कंठी माला।

कमबख्त पेट की भूख ,
जिस्म बूढ़ा होने पर भी,
नहीं बूढ़ी होती हैं,
बल्कि बुढ़ापे में ,
और बढ़ जाती है।

भूख पर ही,
सियासत की कुर्सी,
टिकी हुई है।

सैकड़ो वर्षों से सियासत,
गरीबी और भूख,
मिटाने की योजनाएं ,
बना रहा है ,
भूख है कि,
मिटती नहीं है ।

भूख ही ,
सत्य है ,
शाश्वत है ,
भक्त और भगवान,
कल्पना आधारित है ,
भूख ही वास्तविक है ।

अगर भूख खत्म हो जाए,
ना भक्त रहेंगे ,
ना भगवान ।
भूख ही ,
शाश्वत और वास्तविक है ।

भगवान के बिना ,
हम जिंदा रह सकते हैं ।
लेकिन भूखे पेट,
जिंदा नहीं रह सकते हैं ।

भगवान पर जितना प्रवचन,
दिया जाता है ।
अगर भूख पर,
दिया जाता तो,
सियासत को,
आज भी ,
भूख मिटाने की ,
योजनाएं ना बनानी पड़ती।

भगवान की भक्ति का सारा खेल, भूख पर टिका हुआ है।
जो भगवान मनुष्य को,
रोटी नहीं दे सकता ,
मरने के बाद ,
स्वर्ग क्या देता होगा?

जीते जी भले ही ,
साफ पानी भी नसीब ना हो ,
मरने के बाद ,
गारंटी है कि ,
शराब की नदियां मिलेंगी ।
मन बहलाने के लिए ,
खूबसूरत स्त्रियों मिलेंगी ।

अजब तमाशा,
धर्म गुरुओं का है।
धरती पर जीवित व्यक्ति की, कोई गारंटी नहीं लेता,
मरने के बाद की ,
गारंटी लिए बैठे हैं ।

अक्सर जीवित लोग ही,
मरने के बाद की,
गारंटी देते हैं ।

न जाने कैसा भगवान है ,
धरती पर गरीबों को,
दो वक्त की रोटी ,
नहीं दे पाता है ।
लेकिन स्वर्ग में ,
पूरी गारंटी लेता है ।

यही कारण है कि,
भगवान के नाम पर ,
मरने के बाद भी,
धर्मगुरुओं द्वारा ,
मुर्दों से भी,
वसूली करना जारी हैं।

जो कि सामान्यतः ,
सभी धर्म में ,
समान रूप से ,
पाई जाती रही है ।

कभी समझ नहीं आता कि, जीवित धर्म गुरु कैसे ?
मरे हुए इंसान के नाम पर ,
अपने घर में ,
चूल्हे जलाने का जुगाड़ करता है।

यह सच है कि ,
भगवान के नाम पर,
जितना मूढ़ ,
बनाया जा सकता है ,
उतना और किसी से,
नहीं बनाया जा सकता है ।

अक्सर भगवान नाम की,
दुकान चलाने वाले ,
मालामाल हो जाते हैं ।
जनता बेचारी ,
भगवान के नाम पर ,
ठगी रह जाती है ।

भगवान के नाम पर ,
ठगी का कारोबार ,
हजारों वर्षों से ,
चला आ रहा है ।
जो इस ठगी पर,
प्रश्न चिन्ह लगाता है ,
उसे विधार्मिक कहकर,
मुंह बंद कर दिया जाता है।

भूख और भगवान का,
धंधा जारी है ।
सियासत भूख का ,
धंधा करती है तो ,
धर्मगुरु भगवान का ,
फिर भी भूख,
भगवान पर भारी है।

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

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