बिन मानवता | Kavita Bin Manavta
बिन मानवता
( Bin Manavta )
मैं घंटा शंख बजाऊं,या मंदिर मस्जिद जाऊं।
बिन मानवता के एक पल भी,मानव न कहलाऊं।।
पहले हवन बाद में दहन,क्यों दुर्गति करवाऊं।।
सीधा सादा जीवन अपना,मानव ही कहलाऊं।।
दिन में रोजा रात में सो जा,मुर्गी मुर्गा खाऊं।
अपनों की परवाह नहीं,दूजा घर भात पकाऊं।।
जाति धर्म और भाई भतीजा,क्यों बेमतलब का गाउं।
मानव हूं मानव के खातिर, मानवता दिखलाऊं।
न मैं हिंदू न मैं मुस्लिम न मैं सिक्ख कहाऊं।
ईश्वर के बंदे हम सब मिल,मानव मानव गाऊं।।
पनघट को पानी से धोकर,बदन में प्रेम दिखाऊं।।
ऊंच नीच की बात न करके,मानव ही बन जाऊं।
मानव के खातिर मानव बन मानवता दिखलाऊं।।
कार हवेली और एसी का,क्यों मजाक बन जाऊं।
खुली हवा में जीते पंछी,इनसे सीख कर आऊं।।
चोर चुराते धन दौलत हैं,मैं बस मन भर ही चुराऊं।।
मानव की चाहत में अब तो,मानव ही बन जाऊं।
मानव के खातिर मानव बन, मानवता दिखलाऊं।।
अवधेश कुमार साहू”बेचैन”
हमीरपुर यूपी प्रवक्ता हिन्दी
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