
साथ हरदम निभाती रही ज़िन्दगी
( Saath har dam nibhati rahi zindagi )
साथ हरदम निभाती रही ज़िन्दगी
आस दिल में जगाती रही ज़िन्दगी
जब हुआ दिल परेशान मेरा कभी
प्यार मुझपे लुटाती रही ज़िन्दगी
बन के मेरा सहारा खड़ी है सदा
आँधियों से बचाती रही ज़िन्दगी
लड़खड़ायें कदम जब भी मेरे कहीं
राह मुझको दिखाती रही ज़िन्दगी
छोड़ कर साथ जाने को जब भी कहा
मुस्कुरा कर लुभाती रही ज़िन्दगी
दिल के जज़्बात मैंने तो जब भी कहे
रात भर बस रुलाती रही ज़िन्दगी
देख जज़्बा मेरा वो भी हैरान है
इसलिए सर झुकाती रही ज़िन्दगी
ग़ै़र से हाथ अलका मिलाना नहीं
कौन कैसा बताती रही ज़िन्दगी
मेरठ (उत्तर प्रदेश )
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