बोलती आंँखें | Kavita bolti aankhen
बोलती आंँखें
( Bolti Aankhen )
बोलती आंँखें सब बातें, मन के भावों को दर्शाती।
हर्ष और आनंद मौज में, झूम झूमकर इठलाती।
आंँख दिखाते आज बेटे, बुड्ढे मांँ और बाप को।
संस्कारों को भूलकर, वो बड़ा समझते आपको।
मांँ की आंखों में नेह की वर्षा, हो रही आज भी।
उमड़ रहा प्रेम सलोना, झूमे संगीत के साज भी।
हर खुशी हर गम को, बयान कर देती है आंँखें।
नजरों में सब छुपाकर, पलके नम कर देती आंँखें।
नैन बिछाए राहें तकती, प्रियतम का इंतजार करें।
प्रीत भरी आंँखें बोलती, साजन कितना प्यार करें।
आचरण शिक्षा शालीनता, सज्जनता झलकती।
प्रेम के मोती झरते, विश्वास भरकर जब दमकती।
झील सी आंँखें होती, वो प्यार भरा सागर समूचा।
दया प्रेम सरिता बहती, स्वाभिमानी मस्तक ऊंचा।
मत मारो नजरों के तीर, दिल घायल हो जाता है।
नैनो से अंगार बरसते मन मेरा तब घबराता है।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )