Kavita dekhoge tum
Kavita dekhoge tum

देखोगे तुम

( Dekhoge tum )

 

 

हँसता हुआ मधुमास जो देखे हो तुम तो,
मन के विरह की प्यास भी  देखोगे तुम।
आनन्दमय  झिझोंर के नाचे हो तुम तो,
मनभाव के नवरंग को भी  देखोगे  तुम।

 

मन  प्राप्त  करने को  तुझे बेकल हुआ है,
ऋतु शिशिर है पर ताप से जलता हिया है।
घी का दीया जलता हुआ चौखट पे जो है,
बुझता  हुआ  वह  आग  भी  देखोगे  तुम।

 

विधि का लिखा मिटता नही ये याद कर लो,
जो दोगे जग को तुम भी जग से वो ही लोगे।
सखियों के संग राधा ने वो जो रास की थी,
उनके   विरह   की  ताप   भी  देखोगे  तुम।

 

उस चहकते इतिहास  का दर्पण बनो तुम,
जो कर सको तो दम्भ का तर्पण करो तुम।
जो  जानकी  के  ब्याह पे  आनन्दमय  हो,
उनके  हरण  के  दर्द  पे  भी रोओगे   तुम।

 

पल भर की खुशियों पे यहाँ उत्सव हुआ है,
श्रृंगार  की  अनुपम  छंटा  निर्मित  हुआ है।
बढती  हुई  सीमाओं  पे  हर्षित हो तुम तो,
वैधव्य  और  जन संघार  भी  देखोगे  तुम।

 

सूरज  उगा  है  दिन  मे  तो ढलता भी वो,
नभ  छूने  वाले  भी  अमिट  होते नही है।
खण्डित  हुए  भारत  को देखे हो तुम जो,
ऐश्वर्यमय  मेरे   राष्ट्र   को   देखोगे   तुम।

 

हुंकार   अरू  ललकार  से  दुश्मन डरा है,
सीमाओ पे तन करके फौजी जो खडा है।
यदि शन्ति के परचम को लेकर हम खडे है,
शिव  ताण्डव  का  ताप  भी  देखोगे  तुम।

 

✍?

कवि :  शेर सिंह हुंकार

देवरिया ( उत्तर प्रदेश )

 

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शेर सिंह हुंकार जी की आवाज़ में ये कविता सुनने के लिए ऊपर के लिंक को क्लिक करे

 

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