Kavita ghar ka batwara
Kavita ghar ka batwara

घर का बटवारा

( Ghar ka batwara )

 

घर की चौखट दीवारें भी कांप उठी थी आज
जाने किसकी नजर लगी बरस पड़ी थी गाज

 

घर के बंटवारे को लेकर अब बैठ गए सब भाई
बाबूजी की पेंशन पर भी हिसाब जोडै पाई पाई

 

सारा आंगन थर्राया बहना का भी दिल भर आया
मां की आंखें देख रही डाली पत्ता बिखर आया

 

आज दरारे बड़ी हो गई सारी अड़चनें खड़ी हो गई
दुकान मकान बंटा मीठी मीठी बातें कहीं खो गई

 

बंटवारे में देश बट गया संस्कार दिलों में घट गया
एकता की डोर संभालो उजड़े चमन को बचा लो

 

सद्भाव की लेकर धारा बरसे हृदय में प्रेम प्यारा
अपनापन अनमोल रख लो घर बने सुंदर हमारा

   ?

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

यह भी पढ़ें :-

प्रतिज्ञा | Kavita pratiggya

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here