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ऐसे है हमारे पापा | Kavita hamare papa

ऐसे है हमारे पापा

( Aise hai hamare papa )

 

 

बदन पे खाकी वर्दी घुमते-रहतें गर्मी चाहें सर्दी,

दिल में है जिनके दया-भाव और यह संवेदना।

ऐसे है हमारे पापा जो है एक सैनिक एवं कवि,

लिखतें है कविता पर नहीं करतें ये आलोचना।।

 

पिछलें कई वर्षों से कर रहें है यह लेखन-कार्य,

तैनात रहतें है वो ड्यूटियों में क्राईम के सामनें।

हम को फ़क्र है कि हम ऐसे पिता की संतान है,

सेवा निष्ठा से कर्तव्य निभा रहें पुलिस महकमें।।

 

वतन की आंतरिक सुरक्षा या सरहद की ड्युटी,

जान से भी प्यारी है इनको हिन्दुस्तां की माटी।

हर-कदम जिनकी कठिन परीक्षाएं होती रहती,

समझातें ही रहतें रहों मिलकर सभी सहपाठी।।

 

भीषण गर्मी व सर्दी को सहतें है हमारी खातिर,

भूल जातें पर्व त्यौहार स्वयं की ड्यूटी बताकर।

ऐसे ही न सोते है सभी अपनें घरों में आराम से,

सीमा पर रहतें है सर्वदा जान हथेली में लेकर।।

 

रहतें है घर-परिवार को छोड़कर कई मीलों दूर,

और आतें है छुट्टी साल में एक बार वह ज़रूर।

ज़िन्दगी ने बहुत बार दी है इन्हें सुनहरी दस्तक,

लेकिन देश सेवा में हों रखें है यह ऐसे मगरूर।।

 

 

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

 

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