हनुमान जी | Kavita Hanuman Ji
हनुमान जी
( Hanuman Ji )
मैं नादान मैं नकारा आया आपके द्वार हे प्रभु हनुमान,
तेरी मुआख़जा में रहूं मुवाजहा हो मेरे प्रभु हनुमान।
तू नबी है क़ासिद है विष्णु का मुझे नशा तेरा नबीज़ जैसा,
मैं तेरी अमानत रहूं सदा वदीअत भी हो तेरी प्रभु हनुमान।
मैं फ़ाजिर हूं तेरा तलबगार हूं मैं और ग़ैर मुहज़्ज़ब हूं प्रभु,
औलाद अंजनी की आज सारे जगत में तेरा प्रभु हनुमान।
मैं गलतकारी कर बैठा खुल्लम खुल्ला कह रहा हूं आप से,
सुगंध आती है मुझे आपकी मुहब्बत की मेरे प्रभु हनुमान।
बराबर जपूंगा नाम हनुमान मंदिर में जाकर करूंगा इबादत,
हकीर हूं मैं हक़्कियत है हूं तेरा आधार है मेरा प्रभु हनुमान।
अख़ीर में हूं तेरा ये इरादा है मेरा औज आवाज़ से कहता हूं,
दुश्वारी ना हो मुझे दग़ाबाज़ी से मुक्त कर मेरे प्रभु हनुमान।
रोज़गार पर तेरा हाथ रख सादा मिज़ाज वाला बना दें,
खान मनजीत ज़ीनत अमान कर ज़ीरक कर प्रभु हनुमान।
मनजीत सिंह
सहायक प्राध्यापक उर्दू
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय ( कुरुक्षेत्र )