हस्ती | Kavita Hasti
हस्ती
( Hasti )
बरसती बूंदों को गिनते हो क्यों
लहराते सागर को देखिये
व्यक्तिगत मे झांकते हो क्यों
उसके परिणामों को देखिये
माना कि वह आज कुछ नहीं
उसके मुकाम को तो देखिये
कदमों को उसके देखते हो क्यों
कर रहे उसके प्रयासों को देखिये
रोक पाने की उसे हस्ती नहीं तुम्हारी
वह बिकाऊ नहीं, लक्ष्य से अपने.
तुमने खरीदी होगी बाज़ार भले
दौलत से कहीं बड़े हैं उसके सपने
परिंदा है, अंबर का जिगर रखता है
अंधेरे मे भी वो सहर रखता है
समझिये न उसे फूल किसी कोठे का
जबान मे शिला दिल में गंगा रखता है
फ़ानी जहाँ मे जीत हि मुकम्मल नही
बदल जाते हैं मौसम वक्त के साथ
गुमां रह न पायेगा तुम्हारा हि सदा
आज तुम्हारे साथ कल हमारे हाथ
( मुंबई )
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