Kavita he nari
Kavita he nari

हे नारी – तुझे नमन

( He nari – tujhe naman )

 

नारी तू नारायणी तु ही शक्ति अद्वितिया
तेरे हर रूप को नमन तु वंदनीया है पूजनीया

माँ का रूप धरा जब त्याग की प्रतिमूरत कहलाई
पत्नी बहन बेटी बनकर तूने खुश्बू सी फैलाई

तू सृष्टि की रचियेता है प्रकृति का अनुपम उपहार
तेरी ताकत को देवता भी करते नमन

तू संस्कारो की जननी तू ही अन्नपूर्णा कहलाई
ते रे ही आँसुओ से हर युग में प्रलय भचकार आई

तू अपने अस्तित्व की स्वमं निर्माता है
अपने भाग्य की स्वमं विधाता है

तुम्हें रुकना नहीं चलना होगा
तुम्हे माँगना नहीं लड़ना होगा

हे नारी हे नारायणी , तू ही शक्ति अद्वितिया
तेरे हर रूप को नमन, तू वन्दनीया है पूजनीया

तेरी कब कोई कहानी हुई है
जब हुई है औरो की जबानी हुई है

तू जीती रही औरो ही के लिए
आहत होती रही अपनों से सदा

कभी विश्वास कभी प्रेम में छली गई
कभी मुस्कुराई कभी भुलाई गई

औरत की कब कोई कहानी हुई है
जब हुई है और उनकी जबानी हुई है

 

डॉ. अलका अरोड़ा
“लेखिका एवं थिएटर आर्टिस्ट”
प्रोफेसर – बी एफ आई टी देहरादून

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