Poem in Hindi on kasak
Poem in Hindi on kasak

कसक

( Kasak )

रौशनी की तलाश में हम बहुत दूर निकल आये
जहाँ तक निग़ाह गई बस अन्धेरे ही नजर आये

जिन्दगी ने हमें दिया क्या और लिया क्या
सोच के वक्त के हिसाब आँसू निकल आये

कसक दिल में रहती है अपनो को पाने की
समझ  नहीं  आता अपना किसे कहा जाये

अपनो  में  छिपे  बेगानों  को  देखकर
लगता  है  बस अब साँसे ही थम जायें

थक  गई  हूँ  जिन्दगी  के अकेले सफर में
ऐ -काश वक्त की ये रफ्तार ही ठहर जाये

जाना है बहुत दूर मंजिल का निशाँ कोई नहीं
इस बेनिशां सफर में कोई जाये तो कहाँ जाये

 

माहेनाज़ जहाँ ‘नाज़’
( नई दिल्ली )

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