
ईश्वर की मर्जी
( Ishwar Ki Marzi )
ईश्वर की मर्जी के आगे, कहाँ किसी की चलती है।
विधि मिटे ना भाग्य बदलता, होनी तो होकर रहती हैं।
सीता हरण हुआ राघव का,वधू वियोग पहले से तय था,
दश आनन को मारा जाना, राम के हाथों ही निश्चय था।
श्रवण मरे जब सतयुग में तब, कथा गढी रामायण की।
दशरथ के उस पुत्र मोह का,दुखद अन्त पहले से तय था।
हरि की इच्छा परम पुनिता, धर्म जगे सत सतत रहे।
कर्म में बध करके मानव मन, ईश्वर में ही रमा रहे।
जय विजय जो हरि सेवक थे, पुर्व जन्म में असुर बने।
वो ही हिरण्याकुश हिरणाक्ष्य तो, वो रावण कंस बने।
कर्म किए जा फल की इच्छा, मत कर ऐ इन्सान।
जैसा कर्म करेगा वैसा,तुमको फल देगा भगवान।
इसी मंत्र को जाप सदाशिव, रहेगे तेरे साथ।
ब्रहृमा विष्णु महादेव ही, सत्य है सत यह जान।
इनका ध्यान धरो और मन में अपने भर हुंकार।
हरि की इच्छा सर्वपरि है, धर्म का है आधार।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )