इज्जत चाहते हो तो इज्जत करो | Kavita izzat
इज्जत चाहते हो तो इज्जत करो
( Izzat chahte ho to izzat karo )
मिले मान मर्यादा हमको दुनिया में सम्मान मिले।
हौसलों को मिले सफलता ना कोई व्यवधान मिले।
सब करे सम्मान हमारा ऐसा कोई शुभ काम करो।
इज्जत चाहते हो जहां में सबका तुम सम्मान करो।
इज्जत करने वालों को इज्जत की दौलत मिलती है।
यश वैभव कीर्ति दुनिया में विनय बदौलत मिलती है।
सत्य स्नेह सादगी से ही उज्जवल आचरण रहता है।
होता है सम्मान उनका भावों में सदाचरण बहता है।
जिनके शब्द शब्द वाणी से झरती अमृतधारा है।
प्यार के मोती लुटाते जिनको अपनापन प्यारा है।
सेवा परोपकार प्रेम से जो निर्भय हो बढ़ते जाते हैं।
जिंदगी को गले लगाकर वो स्नेह सुधा बरसाते हैं।
औरों की इज्जत जो करते रखे प्रेम से गहरा नाता है।
सारी दुनिया में इज्जत बनती पहचान वही बनाता है।
आदर्श सेवा संस्कार रगों में नित बहती गंगा धारा है।
कीर्ति पताका जब लहराए बनते आंखों का तारा है।
रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )