Ghazal Ishq - e - Junoon
Ghazal Ishq - e - Junoon

इश्क़ ए जुनूँ.

( Ishq – e – Junoon )

 

दिले कैफियत में तुम्हारी
खैरियत मिलाए बैठे हैं
अपने अर्श में तुम्हारा
अक्स मिलाए बैठे हैं
क्या हुआ जो आसमाँ
का चाँद हो तुम साहब
फिर भी शिद्दत से तुम्ही
पर नज़रें गड़ाए बैठे है।

 

इश्क़ जुनून बना है जाने
क्या असर ये हुआ है
अरमानों का रंग दिलों
को सराबोर कर रहा है
महबूब की पनाहों में
जन्नत सा सुकूं मिला है
चाँदनी रात, सितारों की
शिरकत जुगनू टिमक रहे है।

 

तारों का टूटना देखना है
तुम्हारी बाहों में गिरफ्त होके
इक दूजे की हथेलियों को
मिला दुआ में माँगना तुम्ही को
हमारे खिलाफ नफरत
सुलग रही है इस फिजा में
बेखौफ रह इनके मिजाज से
तुम्हारी बाहों में ही फ़ना होने
की अरदास लगाए बैठे हैं।

 

?

 

रचनाकार -शिल्पी सिंह
प्राथमिक विद्यालय औरंगाबाद कसेर
विकास क्षेत्र डिबाई , बुलंदशहर
( उत्तर प्रदेश )

यह भी पढ़ें :-

तेरे आंसू | Ghazal tere aansu

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here