कविता जीवन की परिभाषा है

कविता जीवन की परिभाषा है

कविता जीवन की परिभाषा है

दिल को छूकर कविता धड़कन बन जाती है
जुदाई में किसी रूह की तड़पन बन जाती है
बच्चा हंसता है तो कविता होठों पर मुस्काती है
हर किसी की आह में खुदा का खत बन जाती है।

जब कोई बच्ची बस पानी पीकर सो जाती है
भूख की दारुण दशा देख कविता रो जाती है
कविता किसान खून -पसीना पानी बनती है
कभी फौलादी कदमों से बढ़ती हुई जवानी बनती है।

कविता ही विवश हो फूल से अंगारा बनती है
कविता सत्य – अहिंसा प्रेम -शांति क्रांति जनती है
कविता मां के मुख से निकलकर लोरी बन जाती है
कविता ही बच्चे की हठ बनकर ठन जाती है।

तब ऐसी तपती धरा पर गिर बूंद छन बन जाती है
कभी धरती की ओर देखती विरह दृष्टि घन बन जाती है
कविता मां के मुख में आकर लोरी हो जाती है
कविता सुर की लेखनी से माखन चोरी हो जाती है।

कभी तुलसी का राम रसायन संजीवन बन जाती
मीरा के प्याले में विष से अमृत हो जीवन बन जाती
कभी शिवाजी की तेग राणा का भाला है कविता
कभी घनानंद की सुजान, बच्चन की हाला है कविता।

कविता का कोई समय कोई सीमा नहीं होती
कविता है धड़कन जो कभी भी नहीं है सोती
कविता दीप है आंधी में जो कभी नहीं बुझता
कविता स्वाभिमान है हिमालय का जो कभी नहीं झुकता।

कविता शिव के मृत्युंजय जाप- सी होती है
कविता सहज सरल तरल आलाप सी होती है
कविता पत्थर को भी पल में मोम बना देती है
कविता मंथन से विष को भी सोम बना देती है।

कविता धरती को स्वर्ग , स्वर्ग को धरती पर ला सकती है
कविता दर्द तकलीफ जख्म में भी मुस्कुरा सकती है
क्या कहूं- कविता तो जीवन की परिभाषा है
जीवन हो कविता सा सहज सरल यह अभिलाषा है।


डॉ चंद्र दत्त शर्मा

रोहतक

यह भी पढ़ें:-

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *