Badal par Kavita
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बदरा अब तो बरसो रे

( Badra ab to barso re ) 

 

प्यारे बदरा अब तो बरसो रे,
काले बदरा यू नही तरसा रे।
तरस रही हमारी अंखियां रे,
झमा झम करते बरस जा रे।।

तुझे पूजे सारी यह दुनियां रे,
अब बरसों मेघों के राजा रे।
नही करो अब कल परसो रे,
तुमसे जीवन हम सब का रे।।

ये सावन निकल रहा ऐसे रे,
सूखे सारे खेत- खलिहान रे।
तेरे बिन प्यासे हम इंसान रे,
यह धरती बन रही बंजर रे।।

हमारी आशाऍं पूरी करदे रे,
ऐसा आज कुछ तू कर दे रे।
नदियाॅं तालाब सारे भरदे रे,
प्यारे बदरा अब तो बरसो रे।।

तेरे बिना कोई ख़ुशी नही रे,
ये बाग-बगीचे हरे नहीं है रे।
अब बरसो बदरा ये बदरी रे,
करो सबको ‌सुख-सम्पन्न रे।।

 

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

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