Kavita Jidhar Dekho Udhar

जिधर देखो उधर | Kavita Jidhar Dekho Udhar

जिधर देखो उधर

( Jidhar dekho udhar ) 

 

जिधर देखो उधर मच रहा कोहराम यहां भारी है।
चंद चांदी के सिक्कों में बिक रही दुनिया सारी है।

बिछ रही बिसात शतरंजी मोहरे मुखौटा बदल रहे।
चालें आड़ी तिरछी बदले बाजीगर बाजी चल रहे।

कुर्सी के पीछे हुए सारे राजनीति के गलियारों में।
वादों की हो रही है भरमार प्रलोभन सरकारों से।

मुफ्त की रेवड़ी बंट रही मुफ्त का ही इलाज सारा।
मेहनत की रोटी का फिर भी लगता है स्वाद न्यारा।

मुफ्त में शिक्षा दे सरकार हर युवा को रोजगार।
घर-घर ज्ञान का दीप जले खुशियों की भरमार।

खून पसीना परिश्रम करें मजदूर और किसान।
मेहनत ही मूलमंत्र हो मेहनत का ही हो सम्मान।

भागमभाग भरी जिंदगी चकाचौंध मची है भारी।
जिधर देखो भाग रही है दिखावे में जनता सारी।

 

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

यह भी पढ़ें :-

नैनो का अंदाज़ जुदा | Nain par Kavita

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *