चार लाइनें
चार लाइनें

जुनून

मंजिल यूं ही नहीं
मिलती राही को
पूछो चिड़ियों से
घोंसले की कहानी
तिनका तिनका चोंच
उठाए उड़ती रहती ।

शेखर कुमार श्रीवास्तव
दरभंगा,बिहार

अकेला

रंग नही है अब कोई भी, जीवन की रंगोली में।
जाने कितने जहर भरे है, अब लोगी की बोली में।
चेहरे पर भी इक चेहरा है, कैसे किसको पहचाने,
भीड मे भी हुँकार अकेला, अब लोगो की टोली में।

कवि :  शेर सिंह हुंकार

 

करनी चाहिए

घर के हर एक कोने से मुलाकात करनी चाहिए,
कभी-कभी दीवारों से भी बात करनी चाहिए !!
वक़्त रुकता नहीं कभी भी एक जगह टिककर,
सूखा हो मन यादों की बरसात करनी चाहिए!!

डी के निवातिया

गुलाबों की तरह

सीख लो गुलाबों की तरह खिलने का हुनर,

ज़िन्दगी से भी मुस्कुराकर मिलने का हुनर !

आसान हो जयेगा सब कुछ जीवन में उसके,

आ गया जिस पर कांटो पे चलने का हुनर !!

डी के निवातिया

 

जय श्री राम!

अदब से, मुहब्बत से, इखलास ओ मुरव्वत से , प्यार से
हर ज़ेहन से जिंदिक (नास्तिक) रावण को,अदावत को, रकावत को राम करते चलो

तेरे दिल में , मेरे दिल में नक़्श-ए-तौहीद( imprint of unity )
कर ,बस ,राम करते चलो

 Suneet Sood Grover

 

मत पूछो

मत पूछो ! कहाँ कहाँ से टूटा हूँ मैं,
यहाँ-वहाँ, जहाँ-तहाँ, से फूटा हूँ मैं,
यक़ीन न हो तो, आकर देख लेना,
किस कद्र बेतहाशा गया लूटा हूँ मैं !!

डी के निवातिया

 

घूमकर आओ

गुलशन में खिलते गुलों को चूमकर आओ,
बहारों की गालियों में ज़रा झूमकर आओ,
क्या रखा है बंद महलों की आरामगाह में,
बाहर निकलो जरा दुनिया घूमकर आओ!

डी के निवातिया

 

लेखनी

कागज को पंख बना करके, मै चला लेखनी ले उडने।
अवनि से लेकर अवतल तक, विस्तृत जीवन को जीने।
मेरा कोई आधार नही,और आदि अन्त का ना अनुभव,
इक नयी आस मंजिल की, हुंकार हृदय निकला छूने।

कवि :  शेर सिंह हुंकार

 

आशीष

आशीष से झोली भरूं, दुआओं से भरूं भंडार।
बुजुर्गो की सेवा करता हूं, मिलता है खूब प्यार।
धरती से जुड़ा रहता हूं, संभाले पावन डोर को।
महकती है मन की बगिया, खिलता घर संसार

रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन

 

किरदार

दिल में बसा सके हम वो किरदार निभाएंगे।
आसमा की बातें छोड़ो दिलों पे छा जाएंगे।
शब्द सुधारस घोल के हम सबको पिलाएंगे।
हम अपनी मस्ती में यारों झूम झूमके गाएंगे।

रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन

 

मेरी धरती

वीरों रणधीरों भरी प्यारी वीर प्रसूता मेरी धरती।
कितनी प्यारी फुलवारी सी महकती मेरी धरती।
कुदरत के रंगों से सजी ओढ़ ली धानी चुनरिया।
हरियाली से हरी भरी जब मुस्काती मेरी धरती।

रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन

 

चंचल

चंचल मनवा झूम रहा नाच रहा है मन मोर।
चंचल चितवन सी लगे मन चंचल चितचोर।
प्रिय अंखियां खोल दर्श चंचल चप्पल नैन।
कुदरत नजारे मनभावन मधुर सुहानी भोर।

रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन

 

तेरी मोहिनी मुस्कान

केशव मुरली मोहन प्यारे, मधुर बहे पुरवाई।
तेरी मोहिनी मुस्कान, मुरलिया अधर सजाई।
लीलाधारी तेरी लीला, है सारे जग से न्यारी।
इस दुनिया का तू रखवाला, तू है प्रेम पुजारी।

रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन

 

यादों के संदूक

यादों के संदूक को खंगाला,
देखो मुझे आज क्या मिला,
कुछ पुरानी भूली बिसरी यादें
जिन्हें था मैं कब का ही भूला!

कवि : सुमित मानधना ‘गौरव’

 

हो गया करिया हूँ!

 

ग़म के समंदर में हास्य का दरिया हूँ,
मुस्कान लाने का मैं भी इक जरिया हूँ ,
गोरा था मैं बहुत रंग मेरा भी था साफ
धूप में रह रह कर हो गया करिया हूँ!

कवि : सुमित मानधना ‘गौरव’

जिंदगी

 

रही जिंदगी बाकी तो मिलते रहेंगे
होगी जब भी बारिश फिसलते रहेंगे
कौन जानता है कब टिकट कट जाए
तब तलक हाथों में ले हाथ चलते रहेंगे।

रचनाकार: नवाब मंजूर

 

कामना

 

कामना पूर्ण कहाँ हो पायी मन, अतृप्त अभी भी।
नयन की क्षुदा मिटी ना,प्यासा सा अतृप्त अभी भी।
भटकते मन मे मेरे, शायद कुछ तो लोभ छुपा है,
तभी तो विचलित है मन मेरा,और अतृप्त अभी भी।

कवि :  शेर सिंह हुंकार

 

निग़ाहे

 

निग़ाहे से न देखें वो तिरछी यूं
करे उल्फ़त बयां मैं चाहता हूँ

अकेले व़क्त कटता अब नहीं है
बने कोई सफ़र हां मैं चाहता हूँ

शायर: आज़म नैय्यर

 

मेरा सफ़र

 

मुहब्बत के उधर से गुल न आये
बहुत ही आ रही नफ़रत इधर है

ख़ुदा आसान कर दे राह मेरी
मुसीबत से भरा मेरा सफ़र है

शायर: आज़म नैय्यर

 

फक़्त इक दर्द

फक़्त इक दर्द हैं जो, दिल से जाता ही नही है।
मोहब्बत है जो उसको,तो बुलाता क्यो नही है।
झलकता प्यार आँखों से, जताता पर नही है।
फक़्त इक दर्द है कि वो, बताता क्यों नही है।

कवि :  शेर सिंह हुंकार

 

मौन रहे जो 

मौन रहे जो भीष्म की तरह, तो इतिहास दोहराओगे।
कौरव कुल के नाश करोगे, महाभारत फिर लिखवाओगे।
सत्य को सत्य जो कहाँ नही, संतति के मोह मे जाओगे,
कृष्ण पुनः ना आएगे, कुल वंश का नाश कराओगे।

कवि :  शेर सिंह हुंकार

 

मुक्ति मार्ग

घायल मन से रक्त बिन्दुओं को अब तो बह जाने दो।
मुक्ति मार्ग के पथ पर चल करके निज ताप मिटाने दो।
कब तक फंसे रहोगे तम रूपी इस मोह के बन्धन मे,
अन्तर्मन के दिव्य चक्षु को खोल मोह मिट जाने दो।

कवि :  शेर सिंह हुंकार

 

बहने दो मुझको

बहने दो मुझको यादों का, अब ना ही कोई पहरा हैं।
चंचल मन को बांधे तेरी, याद बहुत ही गहरा है।
कौन कहेगा क्या मुझको,इन बातों का क्या मतलब,
शब्द लेखनी कागज भर गए, जख्म बडा ही गहरा है।

कवि :  शेर सिंह हुंकार

 

हसरत

हसरत थी उनकी हमें मिटाने की
ले आए खंजर भर जमाने की
तू भी तो कोई चीज़ है नवाब
हुए चकनाचूर सारे उनके ख्वाब!

रचनाकार: नवाब मंजूर

 

इबारत

लेखनी लिख नई ताबीर नई इबारत हो जाए।
रच दे गीत कोई प्यारा शायर शोहरत को पाए।

प्यार के नगमे सुरीले बहा दे प्रीत की रसधार।
नैना देखे जिधर भी झलके बस प्यार ही प्यार।

रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन

 

अतुलित

 

अतुलित बल बुद्धि निधान
रामदुलारे महावीर हनुमान

पर्वत उठा लाए वो संजीवन
भ्राता लक्ष्मण के बचाए प्राण

रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन

 

जल है तो कल है

 

जल है तो जीवन धारा अपनापन प्रेम प्यारा।
पानी अनमोल बड़ा है जल से रिश्ता हमारा।

कुदरत की अनुपम सौगात पानी से बल है।
जल जीवन आधार बस जल है तो कल है।

रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन

 

दुआ

 

कितना सुकून मिलता, आंचल की छांँव मिले।
मृदुल दुलार मांँ का, दुआओं से झोली भरती।

डांँट फटकार प्यारी, झरना स्नेह का बहाती है।
मां की दुआएं हमारी, सब पीड़ायें हर जाती है।

रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन

 

कन्या

 

मार दिया कन्या को जिसने, माता के ही कोख में।

वह घर घर कन्या ढूंढ रहा है, नवरात्री के भो

कवि :  शेर सिंह हुंकार

 

जीवन पथ

 

जीवन पथ कें दोराहें पर, खडा बेचारा सोच रहा।
किस पथ जाए वो संसय में, पडा बेचारा सोच रहा।

जिसकों उसकों अपना माना,उसके मन में और कोई,
इस दुविधा में व्याकुल है मन,खडा बेचारा सोच रहा।

कवि :  शेर सिंह हुंकार

 

 

समोसे

( Samose ) 

 

चटपटे मसालेदार खाओ जी मजेदार
गरमा गरम समोसे लाया बड़े प्यार से

महफिले सजाओ समोसे मंगवा लो
चाटते रह जाओगे खाओगे प्यार से

 

रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन

 

नशेमन

( Nasheman ) 

 

नशेमन में चलके बातें प्यार की करें।
आशियां सजा प्रीत दिलदार से करें।

गुलशन हो गुलजार यार बैठो यहां।
प्यार का दीदार दीवाने बहार से करें।

 

रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन

 

क्या जानो

( Kya jano )

 

दीया बुझने से पहले जलने का एहसास क्या जानो।
किसी के दिल मे उठते प्यास का एहसास क्या जानो।

नही जज्बात तुम मे न तडप,ख्वाहिश को पाने की,
सुनो हुंकार के उलझन के तुम, एहसास क्या जानो।

कवि :  शेर सिंह हुंकार

 

 

अजब एहसास

( Ajab ehsaas ) 

 

अजब एहसास दिल को हो रहा है, तुमको देखा जो।
पुराने दिल के सारे ख्वाब जागे, तुमको देखा जो।

नजर को पढ तो ले फिर से, वही हसरत पुरानी है,
दबी हर बात उभरी फिर से दिलवर, तुमको देखा जो।

कवि :  शेर सिंह हुंकार

 

 

अभिमान है

( Abhimaan hai ) 

 

गर्व करता हूं अपने देश पर
अभिमान है भारतीय सभ्यता और संस्कृति पर
गुमान है अपने संस्कारों का
गुरूर है स्वाभिमान का

रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन

 

प्रकृति

( Prakriti ) 

 

चाहें पेड़ पौधे जीव जन्तु अथवा कोई हो इन्सान,
इस प्रकृति से हम है और हमसे ही इसकी शान।

कुछ भी तो नही मांगती प्रकृति सदैव देती रहती,
अपना‌ सर्वस्व लुटाकर भी समझती है यह शान।।

रचनाकार : गणपत लाल उदय

 

धरा एवं भाग्य

( Dhara awam bhagya ) 

जिसने जो भी खेत में बोया वह वैसा फल पाया,
धरा एवं भाग्य का कोई स्वभाव समझ ना पाया।

जीवन की वास्तविक माया है समय-श्वास भाया,
खुश रहना मुश्किल में भी ध्यान रखना है काया।

रचनाकार : गणपत लाल उदय

 

लड़ सकती हूँ

( Lad sakti hoon ) 

 

लड़की है यही सोचकर हमसे कोई भिड़ नही जाना,
लड़ सकती हूॅं मैं भी यह बात कोई भूल नही जाना।

पढ़ लेना हमारी बहनों के तुम बहादूरी ‌के वो किस्से,
मिट जाऊंगी या मिटा दूंगी बात हमेंशा याद रखना।।

रचनाकार : गणपत लाल उदय

 

आने वाला है

( Aane wala hai ) 

 

आनें वाला है कुछ दिनों में अब होली का त्योंहार,
लाज शर्म रखना मेरे भाई सबसे अच्छा व्यवहार।

खो ना देना संबंधों को जबरदस्ती से रंग लगाकर,
घूमना नाचना गाना बजाना तुम सब राग मल्हार।।

रचनाकार : गणपत लाल उदय

 

वाह रे प्रेम

( Wah re prem )

 

वाह रे प्रेम वाह तुम्हारा तो हर कोई दिवाना है,
यह माॅं भारती और ये देवलोक भी तुम्हारा है।

दोस्त-परिवार एवं रिश्तेदार ने भी यह माना है,
तुझ में डूब जाये तुम्हारा तो नशा ही न्यारा है।।

रचनाकार : गणपत लाल उदय

 

दारू इतनी मत पीना

( Daru itni mat peena )

दारू इतनी मत पीना कि वह तुम्हें पीने लग जाएं,
बिन आग व श्मशान के तुम्हारा शरीर जल जाएं।

सुधर जाना संभल जाना सभी पीने वाले वक्त पर,
शत्रुओं से भी बुरी है ये इससे दूरियां बनाते जाएं।।

रचनाकार : गणपत लाल उदय

 

सूरत

( Soorat ) 

 

दिल की सारी खिड़की खोलो सूरत पर ना जाओ
दो पल की जिंदगानी प्यारे प्रेम सुधारस बरसाओ

क्या अपना है और पराया मन की सब गांठे खोलो
सूरत बदल दे संस्कारों की सब प्रेम से मीठा बोलो

रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन

 

 

चेतन मन

( Chetan man ) 

 

चेतन मन में प्रेम प्रसून का अंकुर होना तय है।
जो मन तुझको देख ना पिघले, समझो वो निष्ठुर है।

कोमल भाव नयन से जागृति अन्तर्मन झिझोंर रहे,
शेर हृदय तुमसे मिलने को हर पल ही आतुर है।

कवि :  शेर सिंह हुंकार

 

शतरंज

( Shatranj ) 

 

शतरंज की चालो का शह मात का खेल सारा।
भागदौड़ भरी जिंदगी बदल रही जीवनधारा।

शतरंजी मोहरें भी पल-पल यूं रंग बदल रहे।
कुर्सी के लोभी बैठे हैं चालों पे चाले चल रहे।

रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन

 

भर पिचकारी

( Bhar pichkari )

 

संग गोपियां राधा आई लो आया मोहन मतवाला।
थिरक थिरक बिरज में नाचे मुरलीधर बंसी वाला।

मीरा पी गई विष का प्याला कृष्ण प्रेम दीवानी।
खेल रही है भर पिचकारी मोहन संग राधा रानी।

 

रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

 

माहिया

( Mahiya ) 

फागुन आया रंग रंगीला आजा माहिया।
बरसा रही रंगों की प्यारी फुहार माहिया।

महके उपवन सारे बहती बहार माहिया।
फागुनी गीत होली बहे रसधार माहिया।

 

रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

 

आंगन की तुलसी

( Aangan ki tulsi ) 

छोटे-छोटे है हाथ मेरे रोटी गोल मटोल।
पापा की हूं लाडली मुस्कानें देती घोल।

आंगन की तुलसी खुशियों की बयार हूं।
बेटी रौनक घर लाती महकती बहार हूं।

 

रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

 

फागुनी बयार

( Faguni Bayar ) 

 

झूम झूमके नाचो गाओ, फागुनी मस्त बयार भी देखो।
महका देंगे चमन सारे, गुल गुलशन गुलजार भी देखो।

मधुर प्रेम की बहती धारा, अपनो का वो प्यार भी देखो।
दीवानों की ये बस्ती है, तरानो की रसधार भी देखो।

 

रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

मतवारी होली मे गोरी

 

मतवारी  होली  मे गोरी, मस्ती करे धमाल।
बडे बडों का धर्म बदल है, मादक ऐसी चाल।

घटते बढते सांसो की गति, नीला पीला लाल।
ऐसा  कोई  बचा नही जो, बगडा ना इस साल।

 

कवि :  शेर सिंह हुंकार

*

पलकों पे रूका है जैसे

 

पलकों पे रूका है जैसे, समन्दर खुमार का।
कितना अजब नशा है दिलवर, इंतजार’ का।

दिन  दोपहरी रात हो गयी, गुजरे माह वर्ष,
अब  भी  है इंतजार मुझे, शायद बहार का।

 

कवि :  शेर सिंह हुंकार

*

राधा का संगम ना होगा

 

राधा  का  संगम  ना  होगा,  मीरा भी तरसी है।
इकतरफा ये प्रेम पतित है, क्यो इसमें उलझी है।

कोई  कुछ  भी  कहे  मगर,  पीडा  इसमे ज्यादा है,
शेर हृदय की मान सजनिया,प्रेम मे क्यो पगली है।

 

कवि :  शेर सिंह हुंकार

*

इश्क़ में निगाहों को मिलती है बस बारिशें

इश्क़ में निगाहों को मिलती है बस बारिशें।
फिर  भी दिल को है बस आपकी ख्वाहिशें।

कोई  आंसू  कोई  शबनम कोई मोती कहता है,
शेर नयन से बहता पानी,बिछडी हुई मोहब्बतें।

 

कवि :  शेर सिंह हुंकार

*

बदल गये हो आप तो

 

बदल  गये  हो  आप तो, हम भी कहाँ पुराने रहे ।
ना खुद ही आप आने से रहे,ना हम ही बुलाने से रहे।

वर्षो गुजर गए है यहाँ, अब रौशन नही सितारे रहे,
चेहरे पे लकीरें है बढी, जुल्फों भी खिंजाबी से रहे।

 

कवि :  शेर सिंह हुंकार

*

जब मै दर्द लिखता हूँ

 

कि जब मै दर्द लिखता हूँ,तो पढते है सभी दिल सें।
कोई  ढाढंस  नही देता, सभी  वाह वाह  कहते  है।

कोई शब्दों को गिनता है, कोई भावों में उलझा है,
मेरे जख्मों से है अन्जान सब, वाह वाह कहते है।

 

कवि :  शेर सिंह हुंकार

*

धीरे धीरे रेत सा

धीरे धीरे रेत सा, वक्त हाथों से मेरे….. फिसलने लगा।
मेरे चेहरे की कमसिन लकीरें,दिन ब दिन…बढने लगा।

देख सकते हो तो देखो दोनो को,एक कल है तो दूजा सबेरा।
एक  ढलता हुआ सांझ है तो, दूजा निखरता हुआ है सबेरा।

 

कवि : शेर सिंह हुंकार अपने पुत्र के साथ
कवि : शेर सिंह हुंकार अपने पुत्र के साथ
कवि :  शेर सिंह हुंकार
शेर सिंह हुंकार जी की आवाज़ में ये कविता सुनने के लिए ऊपर के लिंक को क्लिक करे

 

मतवारी होली

 

मतवारी होली मे गोरी, मस्ती करे धमाल।
बडे बडों का धर्म बदल है,मादक ऐसी चाल।
घटते बढते सांसो की गति,नीला पीला लाल।
ऐसा कोई बचा नही जो, बगडा ना इस साल।

 

कवि :  शेर सिंह हुंकार
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मेरा नम्बर भी आएगा

 

कोई भी जतन कर लो हाथों से, फिसलता जरूर है।
जब वक्त का पहिया चलता है तो, बदलता जरूर है।
आज तेरा बदला है कल, मेरा नम्बर भी आएगा,
तप ले करले इन्तजार खुशबू है तो, महकता जरूर है।

 

कवि :  शेर सिंह हुंकार

 

राधा

परिपक्व प्रेम की परिभाषा में,  मीरा है या राधा।
या रंगी वैष्णवी राम रंग में,  कलयुग बीता आधा।
उलझा मन है संसय ज्यादा, राम श्याम की गाथा,
तन यौवन श्रृंगार करे पर,  शेर हृदय सम साधा।

 

कवि :  शेर सिंह हुंकार

 

ज्वाला

 

बुझी  नही श्मशान  चिता के, राख में ज्वाला बाकी है।

जलता तन और तपते मन के,भस्म में ज्वाला बाकी है।

किसने क्या देखा क्या समझा,ये उसका जीवन दर्शन,

हूंक  लिए  हुंकार हृदय में, क्रोध  की ज्वाला बाकी है।

 

कवि :  शेर सिंह हुंकार

 

वैराग्य

 

उसका  महिमामंडन  कैसा, जिसने मन वैराग्य लिया।

सोती नारी को अर्धरात्रि में,संतति के संग त्याग दिया।

मूढ  अहिसंक  धर्म  राष्ट्र  की, रक्षा  क्या  कर पाएगा,

राम ने धनुष नही त्यागा,साकेत का वैभव त्याग दिया।

 

कवि :  शेर सिंह हुंकार

 

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