मतवारी होली मे गोरी
मतवारी होली मे गोरी, मस्ती करे धमाल।
बडे बडों का धर्म बदल है, मादक ऐसी चाल।
घटते बढते सांसो की गति, नीला पीला लाल।
ऐसा कोई बचा नही जो, बगडा ना इस साल।
कवि : शेर सिंह हुंकार
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पलकों पे रूका है जैसे
पलकों पे रूका है जैसे, समन्दर खुमार का।
कितना अजब नशा है दिलवर, इंतजार’ का।
दिन दोपहरी रात हो गयी, गुजरे माह वर्ष,
अब भी है इंतजार मुझे, शायद बहार का।
कवि : शेर सिंह हुंकार
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राधा का संगम ना होगा
राधा का संगम ना होगा, मीरा भी तरसी है।
इकतरफा ये प्रेम पतित है, क्यो इसमें उलझी है।
कोई कुछ भी कहे मगर, पीडा इसमे ज्यादा है,
शेर हृदय की मान सजनिया,प्रेम मे क्यो पगली है।
कवि : शेर सिंह हुंकार
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इश्क़ में निगाहों को मिलती है बस बारिशें
इश्क़ में निगाहों को मिलती है बस बारिशें।
फिर भी दिल को है बस आपकी ख्वाहिशें।
कोई आंसू कोई शबनम कोई मोती कहता है,
शेर नयन से बहता पानी,बिछडी हुई मोहब्बतें।
कवि : शेर सिंह हुंकार
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बदल गये हो आप तो
बदल गये हो आप तो, हम भी कहाँ पुराने रहे ।
ना खुद ही आप आने से रहे,ना हम ही बुलाने से रहे।
वर्षो गुजर गए है यहाँ, अब रौशन नही सितारे रहे,
चेहरे पे लकीरें है बढी, जुल्फों भी खिंजाबी से रहे।
कवि : शेर सिंह हुंकार
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जब मै दर्द लिखता हूँ
कि जब मै दर्द लिखता हूँ,तो पढते है सभी दिल सें।
कोई ढाढंस नही देता, सभी वाह वाह कहते है।
कोई शब्दों को गिनता है, कोई भावों में उलझा है,
मेरे जख्मों से है अन्जान सब, वाह वाह कहते है।
कवि : शेर सिंह हुंकार
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धीरे धीरे रेत सा
धीरे धीरे रेत सा, वक्त हाथों से मेरे….. फिसलने लगा।
मेरे चेहरे की कमसिन लकीरें,दिन ब दिन…बढने लगा।
देख सकते हो तो देखो दोनो को,एक कल है तो दूजा सबेरा।
एक ढलता हुआ सांझ है तो, दूजा निखरता हुआ है सबेरा।

कवि : शेर सिंह हुंकार
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मतवारी होली
मतवारी होली मे गोरी, मस्ती करे धमाल।
बडे बडों का धर्म बदल है,मादक ऐसी चाल।
घटते बढते सांसो की गति,नीला पीला लाल।
ऐसा कोई बचा नही जो, बगडा ना इस साल।
कवि : शेर सिंह हुंकार
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मेरा नम्बर भी आएगा
कोई भी जतन कर लो हाथों से, फिसलता जरूर है।
जब वक्त का पहिया चलता है तो, बदलता जरूर है।
आज तेरा बदला है कल, मेरा नम्बर भी आएगा,
तप ले करले इन्तजार खुशबू है तो, महकता जरूर है।
कवि : शेर सिंह हुंकार
राधा
परिपक्व प्रेम की परिभाषा में, मीरा है या राधा।
या रंगी वैष्णवी राम रंग में, कलयुग बीता आधा।
उलझा मन है संसय ज्यादा, राम श्याम की गाथा,
तन यौवन श्रृंगार करे पर, शेर हृदय सम साधा।
कवि : शेर सिंह हुंकार
ज्वाला
बुझी नही श्मशान चिता के, राख में ज्वाला बाकी है।
जलता तन और तपते मन के,भस्म में ज्वाला बाकी है।
किसने क्या देखा क्या समझा,ये उसका जीवन दर्शन,
हूंक लिए हुंकार हृदय में, क्रोध की ज्वाला बाकी है।
कवि : शेर सिंह हुंकार
वैराग्य
उसका महिमामंडन कैसा, जिसने मन वैराग्य लिया।
सोती नारी को अर्धरात्रि में,संतति के संग त्याग दिया।
मूढ अहिसंक धर्म राष्ट्र की, रक्षा क्या कर पाएगा,
राम ने धनुष नही त्यागा,साकेत का वैभव त्याग दिया।
कवि : शेर सिंह हुंकार