कर्तव्य पथ पर | Kavita Kartavya Path Par
कर्तव्य पथ पर
( Kartavya path par )
मैं डट कर स्थिर खड़ी रहूँगी,
कर्तव्य पथ पर निरंतर चलूंगी।
किसी प्रहार से कोशिश छोडूंगी नहीं।
हाथ किसी के आगे जोडूंगी नहीं,
वरदान किसी भगवान से माँगूंगी नहीं।।
परिस्थितियां चाहे जो कर ले,
समय से मात खा कर गिरूँगी नहीं।
हवायें चाहे अपना रुख मोड़ ले,
मैं अपनी मज़िल छोडूंगी नहीं।
भूले-बिसरे अपनों से,
कोई द्वेष भाव रखूँगी नहीं।
अपने पुन्सत्व भरे दुखों का दामन,
किसी और के कंधे डालूंगी नहीं।
जीवन के उतार-चढ़ाव में,
किसी से साथ माँगूंगी नहीं,
सही-गलत के प्रादुर्भाव में,
अपनी सज्जनता छोडूंगी नहीं।
जहाँ कोई समझेगा नहीं,
वहाँ अपना मस्तक झुकाऊँगी नहीं,
झूठ को सच मान कर,
खुद को बेवजह बहलाऊँंगी नहीं।
दुखती रगों पर नमक छिड़क कर,
अपने हृदय को जलाऊँंगी नहीं।
खुद ही खुद को समाप्त कर के,
कायर बन कर दुनिया से जाऊंगी नहीं।
परमात्मा की बनाई सृष्टि में से,
लेष मात्र भी मुझे चाहिये नहीं।
समतल पर खड़े हो कर,
शिखर की उच्चता को कोसूँगी नहीं।
कोई कितना भी तोड़ दे मुझे
लेकिन
हार मैं मानूंगी नहीं
मस्तक मैं झुकाऊँगी नहीं।।
रेखा घनश्याम गौड़
जयपुर-राजस्थान
यह भी पढ़ें :-