लक्ष्मण मूर्छित | Kavita lakshman moorchhit
लक्ष्मण मूर्छित
( lakshman moorchhit )
मेघ समान गर्जना करता हुआ मेघनाथ जब आया।
अफरा-तफरी मची कटक में रचता मायावी माया।
आया इंद्रजीत रणयोद्धा बाणों पर बाण चले भारी।
नागपाश बंधे राम लखन भयभीत हुई सेना सारी।
देवलोक से आए नारद जी गरूड़ राज को बुलवाओ।
रघुनंदन नागपाश बंधन को प्यारे रामभक्त हटवाओ।
महासमर में अतुलित योद्धा इंद्रजीत पुनः आया।
लड़ रहे संग्राम लक्ष्मण जी तीरों पे तीर बरसाया।
कभी गगन में कभी मेघ में घननाद गर्जना करता था।
भीषण चला समर दोनों में शेषनाग हूंकार भरता था।
राघव भैया आज्ञा दो मुझको ब्रह्मास्त्र अभी चलाता हूं।
रामादल में खलबली मची संकट को अभी मिटाता हूं।
बोले राम रघुकुल रीति हम पीछे से वार नहीं करते।
ब्रह्मास्त्र का लेकर सहारा सच्चे रणवीर नहीं लड़ते।
लक्ष्मण के तीखे बाणों से फिर इंद्रजीत भी घबराया।
एक अमोध शस्त्र शक्ति का शक्ति बाण लेकर आया।
शक्ति की महिमा को नमन जो शेषनाग अवतार किया।
नतमस्तक हो गए लखनजी जब इंद्रजीत प्रहार किया।
मूर्छित होकर गिरे धरा पे रघुकुल राघव नयनतारे।
बजरंगबली गोद में लाए सन्मुख जब रामचंद्र सारे।
भ्रात लखन की देख दशा करुणासागर करते विलाप।
क्या जवाब दूं मैं माता को कैसे मिटे रघुनंदन संताप।
बोले विभीषण जा ले आओ तुरंत लंका नगरी जाओ।
वैद्य सुषेण आस आज की लक्ष्मण के प्राण बचाओ।
द्रोणगिरी पर्वत जाना है संजीवनी बूटी को लाना है।
रामभक्त हनुमान जी धाये सूर्योदय पहले आना है।
कालनेमि मायावी असुर चला रहा जब दांव।
तुरंत आकाशवाणी हुई चल पड़ा हनुमत पांव।
दिव्य ज्योति जगमग सी दमक रही सारी पर्वतमाला।
बजरंगबली ना जान सके सारा पहाड़ ही उठा डाला।
पवन वेग से पवन तनय गिरी पर्वत को उठा लाए।
संजीवनी बूटी लक्ष्मण को दे बजरंगी प्राण बचाए।
रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )