
अपनों ने ज़ख्मों को रोज कुरेदे है
( Apno ne zakhmon ko roj kurede hai )
किसने दामन के ग़म दर्द समेटे है !
अपनों ने ज़ख्मों को रोज कुरेदे है
कैसे ख़ुशबू फैले फ़िर ये उल्फ़त की
रूठे फूलों से क्यों यार बगीचे है
सबने ज़ख्मों पर रगड़ा रोज नमक
किसने ग़म पर हल्दी तेल लपेटे है
उल्फ़त के खाए है इतने जुल्म यहां
नफ़रत की दिल में अब प्यास उलीचे है
कोशिश में हूँ जुल्म हुऐ बचपन में जो
जाने क्यों दिल में यादें सी ऐठे है
पत्थर फेंके जिसने छापर वालों पर
देखो भी आज वही बंद दरीचे है
कोई तो हाथ मगर आज़म का थामे
जीवन में ही हम तो खूब अकेले है
शायर: आज़म नैय्यर
(सहारनपुर )
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