मन के भाव | Kavita Man ke Bhav
मन के भाव
( Man ke Bhav )
करूँ मैं कैसे व्यक्त भाव मन के
ठहरते नहीं जब भाव मन के
भावों ने ही तोड़ दिया रिश्ते सारे
बिखर गए भाव के मनके मनके
मर सी गई हैं भावनाएं मन की
सूख सी गई हैं शाखे जीवन की
अपनापन तो कहीं दिखता नहीं
दिल से दिल कहीं मिलता ही नहीं
मतलबी धागे ही बांधे हैं सबको
कहें क्या हम इनको या उनको
मिठी बातों में भी जहर भरा है
धकियाने को हर इंसान खड़ा है
मन ने की सदा मनमानी मन की
मानी न इसने कभी बात किसीकी
प्रथम प्रमुख हि माना हरदम खुद को
तर्कों से खुद की हि बात सही की
करूँ मैं कैसे व्यक्त भाव मन के
हर पल बदले भाव हैं मन के
पल में तोला पल मे माशा देखा
हर पल में बदलता इसको देखा
करूँ मैं कैसे व्यक्त भाव मन के
( मुंबई )
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