मन तो मन है | Kavita Man to Man Hai
मन तो मन है
( Man to Man Hai )
मन तो मन है, पर मेरे मन!
मान, न कर नादानी।
वल्गाहीन तुरंग सदृश तू,
चले राह मनमानी।
रे मन!
मान, न कर नादानी।
सुख सपनों की मृग मरीचिका,
का है यह जग पानी।
प्रतिक्षण जीवन घटता जाये,
मोह त्याग अभिमानी।
रे मन!
मान, न कर नादानी।
अवसर बीते पछितायेगा,
होगी शेष कहानी।
सब सम्बन्ध स्वार्थ के जग में,
तज दे आश बिरानी।
रे मन!
मान, न कर मनमानी।
अब भी भज ले राम नाम को,
वही है सब सुख खानी।
रे मन!
मान, न कर मनमानी।
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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