Kavita Hey Prabhu Ram
Kavita Hey Prabhu Ram

हे प्रभु राम!

( Hey Prabhu Ram )

 

तुमको मेरे प्राण पुकारें।

अंतस्तल की आकुलता को
देख रहे हैं नभ के तारे।
निविड़ निशा की नीरवता में,
हे प्रभु! तुमको प्राण पुकारें।

सब कुछ सूना सा लगता है।
प्रतिपल व्यथा भाव जगता है।
कोई दस्यु सदृश ठगता है।
हे प्रभु राम!
तुमको मेरे प्राण पुकारें।

रोम रोम कंपित हो जाता,
किसी अनागत भय के मारे।
निविड़ निशा की नीरवता में,
हे प्रभु! तुमको प्राण पुकारें।

मेरे इस एकाकीपन में।
उद्वेलन हो रहा है मन में।
कंटक से चुभते हैं तन में।
हे प्रभु राम!
तुमको मेरे प्राण पुकारें।

बांध नहीं पाते हैं क्षण भर,
जगती के संबंध यह सारे।
निविड़ निशा की नीरवता में,
हे प्रभु! तुमको प्राण पुकारें।

जो तुम हो पाये नहिं अपने।
क्या होगा बुनकर के सपने।
छोड़ न देना मुझे तड़पने।
हे प्रभु राम!
तुमको मेरे प्राण पुकारें।

मेरे नष्ट प्राय जीवन को,
बिना तुम्हारे कौन संवारे।
निविड़ निशा की नीरवता में,
हे प्रभु! तुमको प्राण पुकारें।

अनाद्यंत इस जग माया में।
त्राण तुम्हारी कर छाया में।
मोह नहीं नश्वर काया में।
हे प्रभु राम!
तुमको मेरे प्राण पुकारें।

मुझमें आत्म ज्योति बन चमको,
अंधकार में हों उजियारे।
निविड़ निशा की नीरवता में,
हे प्रभु! तुमको प्राण पुकारें।

श्वांस श्वांस है ऋणी तुम्हारी।
भ्रमित हुआ मैं, मति थी मारी।
दिन क्या, एक एक पल भारी।
हे प्रभु राम!
तुमको मेरे प्राण पुकारें।

कर अविलम्ब कृपा करुणाकर
नष्ट करो त्रय ताप हमारे।
निविड़ निशा की नीरवता में,
हे प्रभु! तुमको प्राण पुकारें।

हे प्रभु राम!
तुमको मेरे प्राण पुकारें।

sushil bajpai

सुशील चन्द्र बाजपेयी

लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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