भाई में फौजी बणग्यो

 

छोड़ गाॅंवा की खेती-बाड़ी भाई में फ़ौजी बणग्यो,
मूॅंछ मरोड़ कर निकलूं हूॅं भाई में नौकरी लागग्यो।
गैंती फावड़ों और खुवाडयो‌ं चलाबो अब भूलग्यो,
सीमा पर करुं रखवाली बन्दूक चलाबो सीखग्यो।।

कलतक कोई न पूछतो अब रुतबो म्हारो बढ़ग्यो,
आबा लागी घणी-सगाईया आज में भी परणग्यो।
जनटर मनटर बणर आउॅंला छुट्टी थें भी देखज्यो,
छोड़ गाॅंवा की खेती बाड़ी भाई में फ़ौजी बणग्यो।।

मिले है तनख्वाह हर महीना भाग म्हारो जागग्यो,
लियो अस्यो प्रशिक्षण में फ़ौलादी जिस्म बणग्यो।
करूं हू सीमा पे चौकीदारी शान देश की बणग्यो,
छोड़ गाॅंवा की खेती बाड़ी भाई में फ़ौजी बणग्यो।।

बड़ा-बुज़ुर्गा का आशीष सूं म्हारों घर भी बसग्यो,
रेगिस्तान-रा-जहाज़ रो आज में पायलेट बणग्यो।
घणा बार आतंकवादी म्हारी मूछया सूं ही डरग्यो,
छोड़ गाॅंवा की खेती बाड़ी भाई में फ़ौजी बणग्यो।।

 

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

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