मत बन तू अज्ञान

मत बन तू अज्ञान | Kavita Mat Ban tu Agyaan

मत बन तू अज्ञान

( Mat Ban tu Agyaan )

 

बिन फेरे अजनबियों से तुम करते हो यह सवाल,
मत भूलो गरिमा-व्यवहार करों थोड़ा सा ख़्याल।
आधी उम्र अब निकल चुकी है स्वयं को सम्भाल,
अच्छा नहीं इतना गुरूर बार-बार न कर बवाल‌।‌।

शिक्षित होकर संस्कार विहिन मत बन तू अज्ञान,
अनमोल धन होती है बेटियां इस सत्य को जान।
शारीरिक पीड़ा से ज्यादा है मानसिक पीड़ा यार,
कड़वी बात है अवश्य पर वास्तविकता पहचान।।

शादी सगाई एवं शगून है अपने वतन के संस्कार,
हॅंसी-मजाक न समझ इसे कर थोड़ा सा विचार।
बिन फेरो के हम तुम्हारे है ऐसे ना कहते मेरे यार,
गलतफहमियां ना पालों मन में लाओ सुविचार।।

क्यों अनावश्यक पीड़ा देते हो तुम कुटुंब परिवार,
नही मानते बात किसी की कैसे कैसे तेरे विचार।
पैसे वाले है हम साहब ना जानते क्या है संस्कार,
सकारात्मक सोच रखो ना करो अब यह प्रचार।।

ये लक्ष्मण रेखा मर्यादा है न उलंघन कर बार बार,
नही तो तरसते रह जाओगे घुंघरुओं की झंकार।
रो-पड़ता है ज्योतिष भी देखकर तेरा यह ललाट,
रिश्ता जोड़कर तोड़ना कहां गयी जुबां संस्कार।।

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

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