पिता का अस्तित्व | Kavita Pita ka Astitva
पिता का अस्तित्व
( Pita ka Astitva )
पिता पी ता है गम जिंदगी के
होती है तब तैयार कोई जिंदगी
गलकर पी जाता है स्वप्न पिता
बह जाती है स्वेद मे हि जिंदगी
औलाद हि बन जाते उम्मीद सारे
औलाद पर हि सजते है स्वप्न सारे
औलाद मे हि देता है दिखाई जहाँ
औलाद हि दिखते हैंभविष्य सारे
औलाद हि बचाती पत पिता की
औलाद हि गंवाती पत पिता की
औलाद से जब हो नाम पिता का
तब हि होता सफल कर्म पिता का
पिता हि है व्यक्ति भी समाज भी
पिता हि है कल भी और आज भी
पिता महज एक आदमी हि नहीं
पिता हि वक्त भी है और युग भी
आसान नहीं होता धर्म पिता का
औलाद समझती नहीं मर्म पिता का
श्रवण जैसा ही हो पुत्र पिता का
दशरथ जैसा हो आदर्श पिता का
( मुंबई )
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