Kavita Samay ke Sath
Kavita Samay ke Sath

समय के साथ

( Samay ke Sath )

 

रहता है वक्त जब मुट्ठी में
तब बढ़ जाता है अभिमान
कुंजी ताली हाथ में अपने
दुनिया लगती धूल समान

बदल जाती सब बोली भाषा
जुड़ती जाती नित नव आशा
चल पड़ते हैं तब पाने को गगन
बढ़ती रहती मन की अभिलाषा

नज़रों से हो जाता कल ओझल
रहता याद नहीं वक्त सदा है चंचल
बहती धारा का भीतर वेग तीव्र
बाहर नदिया बहती कलकल

वक्त की भाषा है होती मौन बड़ी
जुड़ जाती उसकी कड़ियों से कड़ी
आता हरदम वह रूप बदलकर
देता है दर्द बहुत, बिन मारे छड़ी

रहना है आदि साथ वक्त के
तब चलना होगा साथ समय के
नही आज ही सब हाथ तुम्हारे
कल भी होगा चलना साथ समय के

मोहन तिवारी

 ( मुंबई )

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