
प्रेम दीवानी बेटी के तर्कों का ज़बाब
( Prem diwani beti ke tarike ka jawab )
बेशक तुमको हक है बेटी, अपना साथी चुनने का।
बेशक तुमको हक है बेटी, सुंदर सपने बुनने का।।
फूंकफूंक कर अब तक हमने, मुंह में कौर खिलाया है।
अब तक जो भी चाहा तुमने, हमने वही दिलाया है।।
रात रात भर जागी माता, कैसे पापा ने पाला।
कैसे उसके हाथ सौंप दें, जो लगता गड़बड़झाला।।
अब तक तुमने दुनिया में बस अच्छा अच्छा देखा है।
घर वालों का प्रेम है देखा, रिश्ता पक्का देखा है।।
बाहर वाली दुनिया बेटी, पर इतनी आसान नहीं है।
वो रिश्ते मजबूत न होते, जिनमें कोई मान नहीं है।।
मम्मी बुरी नहीं है बेटी, बुरे नहीं है पापा जी।
करे तुम्हारा बुरा कोई तो, खो देते हैं आपा जी।।
कल भी चाहा भला तुम्हारा, भला आज भी चाहा है।
बेटी तुमको मां बाबा ने, इसीलिए समझाया है।।
कवि : भोले प्रसाद नेमा “चंचल”
हर्रई, छिंदवाड़ा
( मध्य प्रदेश )
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