
फूले पलाश मेरे फूले पलाश।
( Phoole palash mere phoole palash )
फूले पलाश मेरे फूले पलाश।
धरती मुदित है,मुदित है आकाश ।।
फूले पलाश मेरे फूले पलाश.. …..
चलने लगी है बसंती हवाएं
तन-मन में फागुन की यादें जगाए
अमुआ की बौरें भी मस्ती से झूमें
खकरा के पत्ता भी धरती को चूमें
महुआ की आने लगी फिर सुवास।
फूले पलाश मेरे फूले पलाश।।
हरी-हरी चुनर वो ओढ़े खड़ी है
बांसों के झुरमुट पर मस्ती चढ़ी है
भिलमा भी आए हैं रितु को सजाने
बेरों की झाड़ी लगी है मनाने
होरा चना का लगता है खास।
फूले पलाश मेरे फूले पलाश।।