Kavita Raat Kaali | रात काली रही
रात काली रही
( Raat Kaali Rahi )
रात काली रही दिन उजाला भरा,
बीतीं बातों पे चिन्तन से क्या फायदा।
वक्त कैसा भी था, दुख से या सुख भरा,
बीतें लम्हों पे चिन्तन से क्या फायदा।
जब उलझ जाओगे, बीतीं बातों में तुम,
आज की मस्तियाँ ग़म मे ढल जाएगी।
भूल करके सभी रंजो व ग़म को रहो,
ग़म की घण्टी बजाने से क्या फायदा।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )