रैग पिकर और फैशनपुतला | Kavita Ragpicker
रैग पिकर और फैशनपुतला
पहने हो अति सुंदर कपड़े,
पुतले बन कर खड़े हुए ।
फैशन की इस चकाचौंध में,
भरमाने पर अड़े हुए ।।
मैंने कचरे से बीना है,
बोरा परिधान देख लो ।
मैं नंगा भी तुमसे सुंदर,
ध्यान लगा मुझे देख लो।।
तुम में मुझमें फर्क यही तुम,
प्राणहीन मैं जीवित नर ।
मौन बने सजते रहते हो,
प्राणहीनता ले कर वर ।।
शब्द शक्ति श्रम पलता मुझमें,
अपने मन की करता मैं ।
गर्मी सर्दी सह लेता हूँ,
वस्त्रहीन रह लेता हूँ मैं ।।
तुम गुलाम हो मौन रहोगे,
बारिश कैसे सह सकते ।
गल कर मिट्टी बन जाओगे,
टूटन कैसे सह सकते ।।
मैं फौलादी बन कर जन्मा,
पत्थर से टकराता हूँ ।
कचरे से भी चुन-चुन देखो,
अपनी राह बनाता हूँ ।।
पैसों की चादर में लिपटे,
मृत बने सजे रहते हो ।
दीन दुखी को देख-देख कर,
दनुज सम बने रहते हो ।।
कचरे से बोरी को चुन कर,
वस्त्र निज बना लेता हूँ ।
नंगे हाथों से ही अपने,
बना राह भी लेता हूँ ।।
सुशीला जोशी
विद्योत्तमा, मुजफ्फरनगर उप्र