साथ चलो | Kavita saath chalo

साथ चलो

( Saath chalo )

 

हर हर हर हर महादेव के, नारे के संग साथ चलो।
गंगा के गोमुख से लेकर, गंगा सागर तक साथ चलो।

 

काशी मथुरा और अयोध्या, तक निनाद का जाप करो।
जबतक भारत पूर्ण समागम,ना हो तब तक साथ चलो।

 

काश्मीर अपनी है पर, गिलगित और गारों की घाटी।
हिगंलाज को करो समागम, तब मानो भारत पूरी।

 

टेढी मेढी हर पगदण्डी, का फिर से निर्माण करो।
हर कीचड में कमल खिलाओ,मुख से जय श्रीराम कहो।

 

धर्म धार तुम करो सनातन, हर मूल्यों में ज्ञान भरो।
गीता से उपनिषदों तक, हर वेदो पर अभिमान करो।

 

हम हिन्दू है जिसने सबसे पहले, विधि विधान दिया।
अन्तरिक्ष के हर ग्रह की दूरी का भी विस्तार दिया।

 

मंगल ग्रह को लाल बताया, राम शिला नद मे तैराया।
सागर पर सेतु को बाँध कर,भगवा ध्वज नभ में लहराया।

 

हमने तो उत्कर्ष भी देखा, और पराभव भी झेला।
सोनी की चिडिय़ा भारत को, तिल तिल के जलते देखा।

 

एक वचन खुद को देकर करके,आओ फिर हुंकार भरे।
भारत जय जब तक न होए, तब तक हम संग्राम करे।

 

✍?

कवि :  शेर सिंह हुंकार

देवरिया ( उत्तर प्रदेश )

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शेर सिंह हुंकार जी की आवाज़ में ये कविता सुनने के लिए ऊपर के लिंक को क्लिक करे

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तुम जरा ठहरो | Tum zara thehro

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