Vikalp

विकल्प

( Vikalp )

 

हजार अच्छाइयों के होते हुए भी
आई एक बुराई ,बना देती है
दागदार पूरे जीवन को

बादे उसके ,लाख अच्छाइयां भी
धुल नहीं पातीं उसे लगे एक दाग को उम्र भर

आदत नहीं है लोगों की
स्वयं को टटोलकर देखने की
औरों के ताक झांक और
औकात की परखा परखी से
फुर्सत ही नहीं किसी को

व्यक्ति ही समाज है
और वही जब समाज बन जाता है
तब स्वयं को निर्णायक मानकर देने लगता है फैसला
स्वयं के व्यक्तिगत को भुलाकर

खामोशी यूँ तो बेहतर है मगर,
जब चुप रह जाना भी
संकोच की एक और बुराई को जन्म देने लगे
तब जरूरी ना होते हुए भी
नग्नता को इख्तियार कर लेना
मजबूरी हो जाता है

तब, स्पष्ट वक्ता बन जाना ही
एक मात्र पर्याय है
अब दूध का दूध और पानी का पानी हो जाना ही विकल्प
बच जाता है

मोहन तिवारी

( मुंबई )

यह भी पढ़ें :-

जानकी वल्लभ श्री राम | Janaki Vallabh Shri Ram

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here