सफर का अकेलापन | Kavita Safar ka Akelapan
सफर का अकेलापन
( Safar ka Akelapan )
भीड़ में भी अकेला हूं
अकेले में भी भीड़ बहुत है
इसे कहूँ बाजार, या तन्हाई
या कहूँ अकेलापन!
कोई पढ़ रहा है मुझे
कोई लिख रहा मुझपर
कोई समझ रहा है
कोई लगा है परखने में
अजीब सी कश्मकश है
कईयों की नज़र मे रहकर भी
नजरंदाज मे क्यूँ हूँ
क्यूँ खुद के भीतर की भीड़ में भी
रहता हूँ अकेलेपन मे!
लगते तो हैं सभी अपने से
अपना मगर एक नहीं
सुन लेता हूँ और सभी को मैंमैं
मुझे सुनता कोई क्यों नही
मजरा क्या है इसका
कहता भि नही खुलकर कोई
पता नही सबके साथ यही है
या मैं अकेला तन्हा अलग हूँ
तलाशता रहा उम्र भर यही
मिला न मुझसा कोई एक कहीं
काश ! समझ लेता कोई मुझे
या मैं हि समझ पाया होता किसी को
सफर आसान हो गया होता !!!
( मुंबई )
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