चारों तरफ मैले कुचैले कपड़े पहने बच्चे दिखाई दे रहे थे । बदबू ऐसी आ रही है कि एक-दो मिनट बैठना मुश्किल है । कैसे रहते होंगे ये लोग ? क्या लोगों की जिंदगी ऐसे भी हो सकती है ?जहां जानवर भी ना रहना चाहे वहां मनुष्य रह रहे हैं।
सुरेश को आज नींद नहीं आ रही थी । वह आज जब प्रयागराज के परेड ग्राउंड से लौट रहा था तो सोचा चलो कुष्ठ आश्रम टहल लिया जाए। जब वह वहां गया तो वहां का नजारा देखकर उसे जैसे चक्कर आने लगा।
वहां से भी गया गुजरा दृश्य तो डाट पुल के नीचे रहने वाले की थी जो अपने पत्नी बच्चों के साथ रह रहे थे। लेटे हुए उसके मन में संकल्प उभरा कि उनके लिए कुछ करना चाहिए ।
लेकिन वह सोचने लगा मैं कर भी कह सकता हूं ?मेरे पास तो कुछ है नहीं । घर से जो कुछ पैसे मिल जाते हैं उसी से किसी प्रकार महीने का खर्चा चल पाता है।
फिर उसने सोचा इन्हें आर्थिक नहीं बल्कि शैक्षिक रूप से मदद करनी चाहिए । यह सोचकर वह सो गया अगले दिन से जब वह टहलने जाता तो उसी में कुछ क्षण उनके बच्चों को पढ़ाने में लगाने लगा । वहां कोई बच्चे पढ़ने जाते तो थे नहीं अधिकांश इधर-उधर भीख मांगते या फिर आलोपशंकरी मंदिर में मांगने जाते थे । शिक्षा का कहीं नामोनिशान नहीं था।
एक दिन जब वह वहां गया तो बच्चों के माता-पिता से उसने कहा -” आप इनका नाम विद्यालय में क्यों नहीं लिखवा देते? हमारे इस तरह पढ़ाने से उन्हें अक्षर ज्ञान तो हो जाएगा लेकिन उन्हें कोई प्रमाण पत्र नहीं मिलेगा।
बच्चों के अभिभावकों ने कहा -” क्या बताएं साहब , हमहू तो बहुत चाहत है कि हमारा लड़कवन पढ़-लिखी जाए ।लेकिन उनका पढ़ाई लिखाई की पेट भरीं।”
सुरेश ने कहा -” आजकल सरकारी विद्यालयों में सब कुछ फ्री में पढ़ाई हो रही है । दोपहर का भोजन भी मिलता है। कहो तो पास के प्राइमरी स्कूल में बात करें।”
उनमें से एक अभिभावक ने कहा-” साहब ! हम एक बार अपने लड़कियों के लई के गा रहे लेकिन वहां नाम नहीं लिखे । कह रहे थे मांगतवन के बच्चों का नाम नहीं लिखेंगे।
बहुत प्रयास किया लेकिन नहीं लिखा जा सका।”
रमेश ने कहा-” कोई बात नहीं मैं बात कर लूंगा । पहले तुम लोग बच्चों को साफ सुथरा रखो । यह तुम ऐसे ही बच्चों को लेकर चले जाओगे तो कैसे कोई स्कूल वाला नाम लिखेगा।”
फिर रमेश ने उन बच्चों को जब तक वह शहर में रहा पढ़ाने जाता रहा । यह एक तरह से उसकी दिनचर्या में जुड़ गया था। बच्चों में भी धीरे-धीरे परिवर्तन होने लगे थे । अब यह सब सारे कपड़े अच्छे से पहनते और शालीनता से बोलते।
पढ़ने के साथ ही वह उनको छोटी-छोटी सुंदर कहानियां भी सुनाया करता । कुष्ठ आश्रम में भी पीड़ित लोगों के दुख दर्द में सहभागी बनता। कुष्ठ रोगियों के दुखों को देखकर उसे लगता कि दुनिया कैसे स्वार्थी हो गई है।जिन बच्चों को मां-बाप इतनी अभिलाषाओं से पलकोसकर बड़ा किया वहीं एक दिन थोड़ा रोग होने पर घर से निकाल दिया करते हैं।
सुरेश उनके लिए जैसे भगवान बनकर आया हो । वह सभी उसे बहुत मान सम्मान करते थे। सुरेश उनसे किसी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं रखता था बल्कि उनके हर सुख दुख में सहयोगी रहता जिसके कारण सुरेश उन लोगों के घर परिवार का एक सदस्य जैसा लगता था।
सुरेश की यह आदत वह जहां भी जाता दीन दुखियों गरीबों की सहायता में लगा रहता । जिसके कारण जहां भी जाता वह सबका चहेता बन जाता था। वहां के लोग यह चाहते हैं कि वह और आगे कहीं ना जाए यहीं पर रहे। हमारे बच्चों को पढ़ाये अच्छे-अच्छे गुण बताएं।
कहते हैं मनुष्य का काम प्यारा होता है चाम प्यारी नहीं होती । मनुष्य का यही गुण उसे सब का प्यारा बना देती हैं।
योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )