
सलीका सिखाएँगे!
( Salika sikhayenge )
हम सिर्फ जिन्दा रहे,तो मर जाएँगे,
देश के लिए जिएँ, तो जी जाएँगे।
मुबारक हो उन्हें जो सोते रुपयों पे,
हम तो वहाँ खाली हाथ जाएँगे।
तुम खफा न हो जमीं-आसमां से,
हम सितारे जमीं पे उतार लाएँगे।
अपने बसेरों से पंछी लौट न जाएँ,
हम उनका घोंसला खुद संवारेंगे।
चोरों की यहाँ कोई कमी नहीं,
ईमानदारी का शजर लगाएेंगे।
जादू की छड़ी से देश चलता नहीं,
तुम्हें तेजाबी कलम थमा जाएँगे।
मेरे हौसलों के पर मत काटो,
उजाला जमीं में हम बो जाएँगे।
कर्म से बनता आदमी अच्छा-बुरा,
इंकलाबी मशाल जला जाएँगे।
सियासी भाव से उसे मत तौलो,
उसके सत्य का सबूत दे जाएँगे।
ऐतबार नहीं उठा है दुनिया से,
हम फिर खपरैल के घर में जाएँगे।
लोग हैं तनाव में भूल से मुस्कुराते,
इंसानों की नई दुनिया बसाएँगे।
रोज-रोज काट रहे देखो दरख़्त,
कैसे बारिश का बिस्तर बिछाएँगे?
बादलों के टुकड़ों ने आग लगा दी,
उन्हें उड़ने का सलीका सिखाएँगे।
युद्ध है एक बला,खा गई सूरज-चाँद,
अपनों की खातिर कहकशाँ उगाएँगे।
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