सावन फुहार | Kavita Sawan Fuhaar
सावन फुहार
( Sawan Fuhaar )
रिमझिम जो सावन फुहार बरसी,
जमीं को बुझना था फिर भी तरसी,
जो बिखरीं जुल्फों मे फूटकर के,
वो बूंद जैसे जमीं को तरसी,
रिमझिम जो………….
हमारे हाॅथों मे हाॅथ होता,
पुकार सुनकर ठहर जो जाते,
बहार ऐसे न रूठ जाती,
बरसते सावन का साथ पाते,
अजी चमन मे हॅसी फूल खिलते,
हमारी दुनिया सदा निखरती,
रिमझिम जो……..
पंख झाड़ती फुदक के चिड़िया,
कभी चहकती कभी फड़कती,
हवा के झोंकों से टूटे कोटर,
हालात से वो है लगता लड़ती,
बड़ी लगन से वो बुन के तिनके,
घरों को अपने है फिर से बुनती,
रिमझिम जो………
कहीं पे कजरी गई है खेली,
कहीं पे झूला गया है झूला,
कहीं तो बादल झमक के बरसे,
कहीं बरसने को है वो भूला,
तभी गगन से गिरी वो बिजली,
समा गई फिर चमक के धरती,
रिमझिम जो….
आभा गुप्ता
इंदौर (म. प्र.)